गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024
गोवर्धन पूजा, जिसे अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है, हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व दिवाली के अगले दिन मनाया जाता है और इसे भगवान कृष्ण की उपासना से जुड़ा माना जाता है। इस दिन गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, जिसे भगवान कृष्ण ने अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गांववालों की रक्षा की थी। इस लेख में हम गोवर्धन पूजा के महत्व, उसकी पौराणिक कथा, पूजा विधि, और इसके सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभावों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त 02 नवंबर को प्रातः काल 06:26 AM से शाम 08:37 AM तक है। इस शुभ समय में गोवर्धन पूजा करना बहुत शुभ होता है।
गोवर्धन पूजा का समय शायान्ह काल मुहूर्त 03:12 PM से 05:24 PM बजे तक
गोवर्धन पूजा का महत्व
गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से भगवान श्रीकृष्ण के अद्भुत कार्यों और उनकी भक्ति का प्रतीक है। इस दिन को मनाने के पीछे सबसे प्रमुख कारण है भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र देव के अभिमान को तोड़ना और गोवर्धन पर्वत को उठाकर अपने भक्तों की रक्षा करना। इसके साथ ही, गोवर्धन पूजा हमें यह संदेश देती है कि प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा करना हमारी ज़िम्मेदारी है, और हमें उनके प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए।
इस पूजा के दौरान अन्नकूट का विशेष आयोजन होता है, जिसमें कई प्रकार के अन्न, फल, मिठाइयां और व्यंजन भगवान को अर्पित किए जाते हैं। यह अन्नकूट भोग इस बात का प्रतीक है कि हमारी समृद्धि और भरण-पोषण के लिए प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाए।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा
गोवर्धन पूजा का संबंध एक प्रसिद्ध पौराणिक कथा से है। यह कथा श्रीमद्भागवत पुराण और विष्णु पुराण में वर्णित है। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण के जन्म के समय मथुरा और उसके आसपास के क्षेत्रों में लोग इंद्र देव की पूजा करते थे, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि इंद्र देव ही बारिश लाते हैं और उनके कारण फसलें अच्छी होती हैं। इंद्र की पूजा से प्रसन्न होकर वे बारिश करते हैं और किसान खुशहाल होते हैं।
लेकिन एक बार बालक कृष्ण ने गोकुलवासियों से कहा कि इंद्र देव को प्रसन्न करने के बजाय, उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि गोवर्धन पर्वत ही असली कारण है जो पशुओं के लिए घास और लोगों के लिए जल, वनस्पति और अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। गोकुलवासी कृष्ण की बात मानकर इंद्र की पूजा छोड़कर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।
इंद्र देव को यह अपमान महसूस हुआ और उन्होंने अपने क्रोध में आकर गोकुल में भयंकर बारिश शुरू कर दी। भारी बारिश और बाढ़ से बचने के लिए गोकुलवासी कृष्ण के पास पहुंचे। भगवान कृष्ण ने उनकी रक्षा के लिए अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सात दिनों तक उसे ऐसे ही थामे रखा। इस दौरान सभी गोकुलवासी, उनके पशु, और अन्य जीव-जन्तु पर्वत के नीचे सुरक्षित रहे। इंद्र देव को अंततः अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने भगवान कृष्ण से माफी मांगी। तब से गोवर्धन पूजा के रूप में इस दिन को मनाया जाता है।
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा विशेष रूप से उत्तर भारत में हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है। इस दिन गोवर्धन पर्वत का प्रतीकात्मक रूप बनाकर उसकी पूजा की जाती है। गोबर और मिट्टी का उपयोग करके गोवर्धन पर्वत का मॉडल तैयार किया जाता है और उसकी विधिपूर्वक पूजा की जाती है। इस पूजा में श्रीकृष्ण, गोवर्धन पर्वत, और गायों की पूजा की जाती है।
पूजा की विधि:
गोवर्धन पर्वत का निर्माण: इस दिन लोग अपने घरों के आंगन में गोबर और मिट्टी से गोवर्धन पर्वत का एक छोटा मॉडल बनाते हैं। इसे सजाने के लिए फूलों और दीयों का उपयोग किया जाता है। इसे प्रतीकात्मक रूप से गोवर्धन पर्वत माना जाता है।
शुद्धिकरण और पूजा स्थल की तैयारी: सबसे पहले पूजा स्थल को अच्छे से स्वच्छ किया जाता है और पवित्र जल का छिड़काव किया जाता है। पूजा स्थल को रंगोली और दीयों से सजाया जाता है।
गोवर्धन की पूजा: इसके बाद गोवर्धन पर्वत के रूप में बनाए गए प्रतीक की पूजा की जाती है। इस पूजा में भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत, और गायों का विशेष स्थान होता है। लोग भगवान को तिलक, फूल, धूप, दीप, और नैवेद्य अर्पित करते हैं।
अन्नकूट का भोग: गोवर्धन पूजा का प्रमुख हिस्सा अन्नकूट है, जिसमें विभिन्न प्रकार के व्यंजन भगवान को अर्पित किए जाते हैं। इस दिन चावल, दाल, सब्जियां, मिठाई, और अन्य खाद्य पदार्थों से भोग तैयार किया जाता है। इसे अन्नकूट कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है 'अन्न का ढेर'। भगवान को अर्पित किए गए इस भोग को बाद में प्रसाद के रूप में सभी में बांटा जाता है।
गायों की पूजा: गोवर्धन पूजा में गायों की पूजा का भी विशेष महत्व है। गाय को भारतीय संस्कृति में माता का स्थान दिया गया है और उसकी पूजा से धन और समृद्धि की प्राप्ति मानी जाती है। इस दिन गायों को सजाया जाता है, उन्हें स्नान कराया जाता है, और उनके गले में घंटी बांधकर पूजा की जाती है।
परिक्रमा: पूजा के बाद गोवर्धन पर्वत के प्रतीकात्मक रूप की परिक्रमा की जाती है। लोग गायों के साथ गोवर्धन की परिक्रमा करते हैं और भक्ति भाव से भगवान श्रीकृष्ण की महिमा का गुणगान करते हैं।
गोवर्धन पूजा का सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
गोवर्धन पूजा न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ी है, बल्कि इसका सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव भी महत्वपूर्ण है। इस पर्व के माध्यम से भारतीय समाज में पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण का संदेश दिया जाता है। गोवर्धन पर्वत के रूप में प्रकृति की पूजा और गोवंश की रक्षा हमें यह याद दिलाती है कि हमारी भौतिक समृद्धि और जीवन की आधारशिला प्रकृति ही है।
साथ ही, यह पूजा ग्रामीण भारत में कृषि और पशुपालन की महत्ता को भी रेखांकित करती है। भारतीय समाज में गाय और अन्य पालतू पशुओं को परिवार का सदस्य माना जाता है, और उनकी देखभाल व पालन-पोषण को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। गोवर्धन पूजा हमें पशुपालन की इस परंपरा का आदर करने और उसे बनाए रखने की प्रेरणा देती है।
गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक महत्व
गोवर्धन पूजा का आध्यात्मिक महत्व अत्यधिक गहरा है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण की लीला और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों की याद दिलाता है। इस पूजा के माध्यम से भगवान कृष्ण ने यह सिखाया कि अहंकार और घमंड से कभी भी कोई लाभ नहीं होता, बल्कि विनम्रता, दया और प्रेम के माध्यम से ही सच्ची भक्ति प्राप्त की जा सकती है।
इस पूजा में गोवर्धन पर्वत को उठाना न केवल श्रीकृष्ण की महिमा का प्रतीक है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि जब भी कोई विपत्ति आती है, तो भगवान अपने भक्तों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। यह पर्व हमें यह विश्वास दिलाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएं, भगवान पर विश्वास और भक्ति के बल पर उन्हें पार किया जा सकता है।
निष्कर्ष
गोवर्धन पूजा एक ऐसा पर्व है जो भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति, प्रकृति की पूजा, और समाज में समृद्धि व खुशहाली का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि हमें अपनी प्रकृति, पशु-पक्षियों और पर्यावरण के प्रति आभार व्यक्त करना चाहिए। इसके साथ ही, यह पूजा हमें भगवान कृष्ण के उपदेशों की याद दिलाती है कि सच्ची भक्ति और श्रद्धा से ही जीवन में उन्नति प्राप्त की जा सकती है।
गोवर्धन पूजा न केवल धार्मिक आस्था का पर्व है, बल्कि यह समाज और प्रकृति के प्रति हमारी ज़िम्मेदारी को भी उजागर करता है। इसे मनाने से हम अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं और अपने जीवन में संतुलन, समृद्धि और शांति बनाए रखने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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