विजया एकादशी व्रत 6 मार्च 2024
स्कंद पुराण में इस एकादशी के महिमा का वर्णन किया गया है। महाराज युधिष्ठिर ने पूछा हे वासुदेव ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी आती है ? कृपया आप मुझे बताईये।
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे युधिष्ठिर ! एक बार कमल पर विराजमान ब्रह्माजी को नारदजी ने पूछा हे सुरश्रेष्ठ ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष में 'विजया' एकादशी आती है। उसका पालन करने से कौन सा पुण्य प्राप्त होता है इसके बारे में आप मुझे बताइये। ब्रह्मदेव ने कहा हे नारद ! सुनो मैं तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ, जो सब पापोंका हरण करने वाली है। यह व्रत बहुत प्राचीन और पवित्र है। यह 'विजया एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करने वाली है। बहुत पहले जब राजा रामचंद्र १४ वर्षों के लिए वन में गए थे, तो पंचवटी में सीता और लक्ष्मण के साथ निवास कर रहे थे। वहाँ से रावण ने सीता हरण किया।
इस दुख से उन्हें व्याकुलता हुई। सीताजी की तलाश में वन-वन भटकते हुए उन्हे जटायु मिला जो मरणासन्न था। उसके पश्चात उन्होंने वनमें कबन्ध राक्षसका वध किया । सुग्रीव से मित्रता करके श्रीरामचन्द्रजी ने वानर सेना को संगठित किया । हनुमानजी श्रीरामचन्द्रजी की मुद्रा लेकर लंका गए और सीताजी की तलाश करके लौट आए । वहाँ से लौटते ही लंका कथन के पश्चात सुग्रीव से अनुमति लेकर श्रीरामचन्द्रजी ने लंका जाना निश्चित किया । सागर तीर आने पर वे लक्ष्मणसे कहने लगे, "हे सुमित्रानंदन ! इस अगाध सागर में अनेक भयानक जीवजंतु है। इसे सुगमता से कैसे पार करे मुझे कोई सा भी उपाय सूझ नही रहा है।
लक्ष्मणने कहा महाराज ! आप ही आदिदेव और पुराण पुरूष पुरूषोत्तम है। आपसे कुछ भी छिपाना असंभव है। इस द्वीप में प्राचीन काल से बकदाल्भ्य मुनि रहते है। पास में ही उनका आश्रम है। हे रघुनन्दन ! उन्हें इस समस्या का समाधान पूछते है।
लक्ष्मण के कथनानुसार प्रभु रामचंद्रजी मुनिवर्य बकदाल्भ्य के पास मिलने उनके आश्रम गए उन्हें सादर प्रणाम किया। तब मुनिवर्य ने पहचाना कि यही परम पुरूषोत्तम श्रीराम है। अत्यंत आनंदपूर्वक उन्होंने पूछा श्रीराम आपका आगमन किस हेतु हुआ ?
रामचंद्रजी ने कहा हे मुनिवर्य ! रावण का संहार करने मै यहाँ आया हूँ। कृपा करके यह सागर पार करनेका उपाय बताएँ ।
बकदाल्भ्यजी ने कहा हे श्रीराम ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की 'विजया' एकादशी के पालन से विजय मिलता है। हे राजन! इस व्रत की विधि इस प्रकार है । दशमी दिन सोने, चांदी, पीतल, तांबा अथवा मिट्टी के एक कलश की स्थापना करे । उसमें पानी भरके पत्ते डाले। उसपर भगवान् नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करे ।
एकादशी के दिन प्रातः काल उठकर स्नान करे। उसके बाद पुष्पमाला, चंदन, सुपारी, नारियल अर्पण करके उस कलश की पूजा करनी चाहिए। दिन भर कलश के सामने बैठकर कथा करनी चाहिए, साथ ही जागरण भी करना चाहिए। घी का दीपक जलाने से व्रतकी अखंड सिद्धी प्राप्त होती है। उसके पश्चात द्वादशी के दिन नदी या तालाब के किनारे उस कलश की विधिवत पूजा करके वो कलश ब्राह्मण को दान करना चाहिए । महाराज ! कलश के साथ और भी बडे बडे दान करने चाहिए। हे श्रीराम ! आप इस व्रत का पालन कीजिए, इससे आपको विजय प्राप्त होगी।
ब्रह्माजी कहने लगे हे नारद ! मुनिवर्य के कहेनुसार प्रभु श्रीरामचंद्रजी ने 'विजया' एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से श्रीरामचंद्रजी विजयी हुए । हे पुत्र ! इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को इस जीवन में विजय प्राप्त होता है और अक्षय परलोक प्राप्त होता है !
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा इस एकादशी का पालन करना चाहिए! इसका महात्म्य सुननसे वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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