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"कालयुक्त" नामक नव संवत्सर में विक्रमी संवत् 2081 के दश पदाधिकारियों का फल

"कालयुक्त" नामक नव संवत्सर में विक्रमी संवत् 2081 के दश पदाधिकारियों का फल

आप सभी को हिंदू नव वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

इस वर्ष विक्रमी संवत् 2081 में ग्रह मंडल में चुनाव सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। राजा का पद मंगल ग्रह को मिला एवं शनि महाराजजी को मंत्री का पद प्राप्त हुआ। और भी जानें  किन ग्रहों को कोन-कोन से पद प्राप्त हुए

(1) वर्ष (वि. संवत् 2081) के राजा 'मंगल' का फल- 

'अग्नि-तस्कर-रोगाढयो नृपविग्रहः दायकः । 
गतसस्यो बहुव्यालो भौमाब्दो बालहा भृशम् ।।


अर्थात् संवत्सर का राजा 'मंगल' होने से इस वर्ष वायु-वेग (आँधी-तूफान) तीव्र रहेगा, वायुयान दुर्घटनाएँ, अग्निकाण्ड, भूकम्प आदि प्राकृतिक उत्पातों में विशेष वृद्धि होगी। आतंकी साम्प्रदायिक घटनाओं, तस्करी, ठगी, लूटपाट तथा विभिन्न पेचीदा रोगों में वृद्धि से साधारण जनता परेशान व पीड़ित रहेगी। तीव्र वायुवेग एवं बादल होने पर भी वर्षा की कमी अनुभव होगी तथा तूफान, चक्रवात, आँधी, ओलावृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं से कृषि-उत्पादन में कमी तथा पशुधन की भी हानि होगी। आरोप-प्रत्यारोप एवं सामाजिक वातावरण के कारण कुछ क्षेत्रों में शासकवर्ग की कर्त्तव्यपालन के प्रति उदासीनता रहे। प्रजा में पित्त, रक्त एवं विषाणु जनित रोगों की बहुलता रहेगी। बालक-बालिकाओं के प्रति क्रूरता तथा अपहरण सम्बन्धी घटनाएँ, अपमृत्यु तथा प्रियजन-विछोह से लोग दुःखी रहें। सर्पादि जीव खबरों में बने रहेंगे। अन्य संहिताकार के मतानुसार-


'भौमे नृपे वह्निभयं जनक्षयं चौराकुलं पार्थिव-विग्रहश्च । 

दुःखं प्रजा-व्याधि-वियोगपीड़ा स्वल्पं पयो मुञ्चति वारिवाहः ।।'

अर्थात् वर्ष का राजा 'मंगल' होने से देश में चोरी, ठगी, बेईमानी, भ्रष्टाचार, हिंसा- उपद्रव की घटनाएं तथा प्राकृतिक उत्पात विशेष रूप से भूकम्प व अग्निकाण्ड/विस्फोट से विशेष जन-धन हानि की घटनाएं घटित होंगी। राजनेताओं में परस्पर विरोध एवं टकराव रहे। प्रजा अनेक विविध रोगों-व्याधियों, वायरल, अपहरण तथा प्रियजन-विछोह से दुःखी एवं पीड़ित रहें। देश में आगजनी, साम्प्रदायिक हिंसा, उग्रवाद जन्य घटनाओं से जन-धन हानि होगी। कहीं अनावृष्टि या अतिवृष्टि से दुर्भिक्ष (सूखा) एवं कहीं बाढ़ की स्थिति बने। लोगों में धर्म-कर्म की ओर रूचि कम रहे।


(2) सम्वत् के मन्त्री 'शनि' का फल-

'रविसुते यदि मन्त्रिणि पार्थिवा विनय संरहिता बहुदुः खदाः । 

न जलदा जलदा जनतापदा जनपदेषु सुखं न धनं क्वचित् ।।'

अर्थात् वर्ष का मन्त्री 'शनि' होने से प्रशासक वर्ग एवं राजनेताओं का व्यवहार सामान्य लोगों (प्रजा) के प्रति अत्यन्त कठोर, नीति-विरुद्ध तथा निर्दयतापूर्ण रहेगा, जिससे लोगों को कष्ट व असन्तोष रहे। देश के कुछ भागों में वर्षा की कमी रहने से खाद्यान्नों में कमी एवं प्राकृतिक प्रकोप होने का भय व्याप्त रहे। सामान्य लोगों के पास धन-सम्पदा एवं पर्याप्त सुख-संसाधनों की कमी हो एवं उनमें गहन असन्तोष की भावनाएँ व्याप्त हों। लोहा, स्टील, ताँबा, जिस्त, सिक्का, तैल आदि खाद्यान्न पदार्थ, पैट्रोल, डीजलादि तेज भाव होंगे।


विशेष-राजा एवं मन्त्री-दोनों मुख्य पदाधिकार-दो परस्पर विरोधी ग्रहों 'मंगल- शनि' के पास होने से राजनीतिक एवं सामाजिक पटल पर परस्पर वैर-विरोध एवं विरोधाभासी घटनाएँ अधिक होंगी। जातीय एवं साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं से वातावरण विषाक्त रहेगा। विश्व में भी अनेक देशों के मध्य युद्ध एवं जनहानि के समाचार मिलेंगे।

(3) सस्येश 'मंगल का फल-

'अथ च सस्यपतौ धरणीसुते गजतुरंगखरोष्ट्रगवामपि। 

भवति रोगहतिश्च घना जलं ददर्ति नैव तुषान्नविनाशनम् ।।'


सस्येश (चौमासा फसलों का स्वामी) 'मंगल' होने से हाथी, घोड़े, गधे आदि चौपायों तथा गाय, बैल, भैंस, ऊँट आदि दुधारू पशुओं में भी विचित्र प्रकार के रोग फैलने की आशंका रहेगी। कहीं उपयुक्त वर्षा की कमी के कारण खड़ी फसलों (जैसे-धान्य, जौं, चना, सोयाबीन आदि), अनाज, सब्ज़ियों आदि की फसलों को हानि पहुंचेगी एवं च इनके भावों में विशेष तेजी बनेगी।


(4) धान्येश 'सूर्य' का फल-

'पश्चाद् धान्याधिपे सूर्ये पश्चाद धान्यं तदानहि। 

विग्रहं भूभृतां धान्यं महर्घ ज्वरपीडनम् ।।'


धान्यपति 'सूर्य' हो, तो पीछे वाले धान्य अर्थात् शीतकाल में पैदा होने वाली फसलों (जैसे-मूंग, मोठ, बाजरा, ईख, धान्य, तिलहन, दलहनादि) की पैदावार में कमी हो, अथवा प्राकृतिक प्रकोपों के कारण फसलों व कृषि उत्पादन को हानि पहुँचे। फलतः दलहन, तिलहन व धान्यादि अनाजों के मूल्यों में वृद्धि होगी। प्रशासकों (राजनेताओं) में परस्पर वैर-विरोध, टकराव एवं विवाद उत्पन्न होंगे। देश में कटु राजनैतिक वातावरण एक युद्ध जैसा वातावरण बना देगा। सर्वप्रकार के अनाज तेज भाव हों, लोगों में विचित्र प्रकार के ज्वर एवं रोगों आदि के कारण कष्ट रहे।


(5) मेघेश 'शुक्र का फल-

'भृगुसुतो जलदस्यपतिः यदा जलमुचो जलदादि-विशोभजनाः । 

धन-निधानयुता द्विजपालकाः नृपतयो जनता सुखदायकाः ।।'


अर्थात् मेघेश (वर्षा का स्वामी) 'शुक' होने से आगामी वर्ष वर्षा बहुत अच्छी होगी।


उच्चप्रतिष्ठित राजनेता एवं शासकवर्ग ब्राह्मणों एवं विद्वानों का हित व सम्मान करने में प्रयत्नशील रहेंगे। अधिकांश राजनेता एवं प्रशासक धन-धान्य से समृद्ध होंगे। कुछ विशिष्ट नेता व प्रशासक वर्ग प्रजा की भलाई व कल्याण हेतु प्रयासरत रहेंगे तथा नई-नई कल्याणकारी नीतियों की घोषणा होंगी।


(6) रसेश 'गुरु' का फल- 

'यदि गुरौ रसपे सुखिनो जनाः समधिकेन फलादियुता दुमाः।

 जनपदा जननायक-सैनिका हव-हयायुध वाह-विगाहिताः ।।'


अर्थात् यदि गुरु रसाधिपति हो, तो उस वर्ष विशिष्ट साधन-सम्पन्न लोगों में भौतिक सुखों में विशेष वृद्धि होगी। घास, तृण, फल-फूलदार आदि वृक्षों की पैदावार अच्छी होगी। जनसाधारण विद्वान् पण्डितों-ब्राह्मणों की सेवा-सत्कार में तत्पर हों। परन्तु (साम्प्रदायिक दंगों के कारण) किसी जनपद अथवा सीमावर्ती प्रान्त में शासक-प्रशासक, पुलिस-सैन्याधिकारी अपने वाहनों एवं शस्त्रबलों की परेड व परीक्षण करें।


(7) नीरसेश (धातुओं का स्वामी) 'मंगल' का फल -

'नीरसेशो-यदा-भौमः प्रवाल-रक्त-वाससाम् । 

रक्त-चन्दन-ताम्राणां-अर्ध-वृद्धिर्दिने-दिने ।।'


नीरसेश अर्थात् धातुओं का स्वामी मंगल होने से माणिक्य, मूँगा, पुखराज, हीरे आदि रत्न, लाल-वस्त्र, गर्म-वस्त्र, लाल-चन्दन, सोना, पीतल, ताँबा, लाख, खल-बिनौले आदि तथा अन्य लाल वर्ण के पदार्थ व धातुएँ दिन-प्रतिदिन महँगे होंगे।


(8) फलेश (फलों का स्वामी) 'शुक्र का फल-

'यदि फलस्यपतौ भृगुजे धरा-मृदुकुमार-मही-रुहराशयः । 

बहुफला-नरनाथ-सुभोगदा-द्विजवराः श्रुतिपाठ-परायणाः ।।'


अर्थात् फलों का स्वामी 'शुक्र' हो, तो उस साल वर्षा अच्छी होगी। पृथ्वी पर कोमल घास, तृण, फल-फूल एवं लघु पौधों के समूहों की पैदावार अधिक होगी अर्थात् इनका श्रेष्ठ प्ररोहण होगा। राजनेता एवं प्रशासक लोग विभिन्न प्रकार की धन-सम्पदा एवं ऐश्वर्यों से सम्पन्न होंगे। द्विजवर्ग अर्थात् कर्मकाण्डी पण्डित पाठ, यज्ञादि अनुष्ठान आदि कृत्य करते हुए लाभान्वित होंगे।

(9) धनेश (धन का स्वामी) 'चन्द्र' का फल-

'धनपतिः मृगलांछनको यदा रसचय-क्रय-विक्रयतो धनम् । 
वसनशालि सुगन्धरसं बहु द्रविण-तैलयुतं नृपसौख्यदम् ।।'


जिस वर्ष धनपति (कोशपति) चन्द्रमा हो, तो उस वर्ष रसादि पदार्थों (दूध, घी, शर्बत, गुड़, जूस, तैल, सेब, मौसम्मी आदि रसकस) के क्रय-विक्रय (खरीद/बेच) द्वारा धन का लाभ अच्छा होगा। इसके अतिरिक्त वस्त्र, अनाज, तैल, सुगन्धित तैल, दूध, घी, गुड़, चावल, इत्र, खुशबू, मिठाई आदि तथा करियाना वस्तुओं के व्यापार से भी अच्छे लाभ की सम्भावना बढ़ती है। अवसरवादी नेता विशेष प्रकार के सुख-साधनों से सम्पन्न होंगे और प्रजा कानूनों का सहर्ष पालन करते हुए अपने योग्य करों/ टैक्सों का उचित भुगतान करेंगे।


(10) दुर्गेश (सेना का स्वामी) 'शुक्र' का फल-

'नगर-देश विशेष पतिर्यदा भृगुसुतो बहुसौख्यकरो मतः । 

विनयवाणिज-गोहसमः सुखोनगवने निकटेऽपि च दूरतः ।।'


दुर्गेश अर्थात् सेनापति 'शुक्र' हो, तो देश के विशिष्ट राजनेता तथा विशिष्ट वर्ग के लोग ही सुख-साधनों से सम्पन्न एवं समृद्ध होंगे। दृढ़ शासन तथा सर्वत्र शान्ति बनी रहेगी। विनय एवं वाणी के व्यवहार से गृह जैसा सुख एवं शान्ति प्राप्ति होगी। दूरस्थ जनों एवं पर्वतीय स्थलों पर भी सर्व प्रकार की सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी अर्थात् दूरस्थ पर्वतीय स्थलों में भी आवागमन के साधन सुलभ होंगे।


नोट-वर्ष के उपरोक्त दशाधिकारियों का फल यद्यपि सर्वत्र होता है। परन्तु राजा का फल विशेष रूप से काश्मीर, बंगाल, चीन, तिब्बत एवं हिमाचल, उ. खण्ड के निकटवर्ती क्षेत्र, मन्त्री का फल आन्ध्र प्रदेश, मालवा, उज्जैन आदि मध्य-प्रदेशों में विशेष रूप से होता है। वैसे सामान्यतः राजा एवं मन्त्री का फल देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में होता है। चतुर्मेघ फल विचार-आवर्तकादि चतुर्मेघों में 'आवर्त' नामक मेघ है।


फल- 'आवर्ते वृष्टिहानिः स्यात्'- अर्थात् इस वर्ष देश के अनेक प्रान्तों में खण्ड एवं अनोपयोगी वर्षा होगी। कुछ क्षेत्रों में वर्षा की विशेष कमी रहे तथा कुछ में अकाल व दुर्भिक्ष की स्थिति रहे।

नवमेघों में 'वरुण' नामक मेघ का फल-

'अग्निहोत्रकरणादराद्विजाः स्युः सदाधिकमुदोखिलाः प्रजाः। 

अर्णवेण सहितं महीतलं वारुणे जलधरे भुवेदलम्।।'


अर्थात् यदि 'वरुण' नाम का मेघ हो, तो समाज में कर्मकाण्डी एवं अग्निहोत्रादि करने वाले ब्राह्मणों का आदर बढ़े। प्रजा में सुख-साधनों की वृद्धि होगी। अनाज, धान्यादि का उत्पादन अच्छा होगा। कहीं अनुकूल एवं अच्छी वर्षा हो, कहीं अधिक वर्षा से भयंकर बाढ़ की स्थिति बनेगी।


द्वादश नागों में 'पृथुश्रव' नामक नाग का फल-

'पृथुश्रवाभुजंगेन्द्रो जायते यत्रवत्सरे। तत्रकीलालमल्पं स्यात् सस्यहानिरसंशयम् ।।' अर्थात् जिस वर्ष पृथुश्रव नामक नाग उदय हो, तो उस वर्ष उपयोगी वर्षा की कमी रहे। गेहूँ, चने, धान्य, ईख, चावल आदि की फसलों को क्षति (हानि) पहुँचेगी।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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