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गंगा दशहरा पर्व 16 जून 2024 - गंगावतरण की कथा

गंगा दशहरा पर्व 16 जून 2024 - गंगावतरण की कथा

युधिष्ठिर ने लोमश ऋषि से पूछा, "हे मुनिवर! राजा भगीरथ गंगा को किस प्रकार पृथ्वी पर लाये कृपया इस प्रसंग को सुनायें।" लोमश ऋषि ने कहा, "धर्मराज ! इक्ष्वाकु वंश में सगर नामक एक बहुत ही प्रतापी राजा हुये। उनके वैदर्भी और शैव्या नामक दो रानियाँ थीं। राजा सगर ने कैलाश पर्वत पर दोनों रानियों के साथ जाकर शंकर भगवान की घोर आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उनसे कहा कि हे राजन्! तुमने पुत्र प्राप्ति की कामना से मेरी आराधना की है। अत एव मैं वरदान देता हूँ कि तुम्हारी एक रानी के साठ हजार पुत्र होंगे किन्तु दूसरी रानी से तुम्हारा वंश चलाने वाला एक ही सन्तान होगा। इतना कहकर शंकर भगवान अन्तर्ध्यान हो गये।

"समय बीतने पर शैव्या ने असमंज नामक एक अत्यन्त रूपवान पुत्र को जन्म दिया और वैदर्भी के गर्भ से एक तुम्बी उत्पन्न हुई जिसे फोड़ने पर साठ हजार पुत्र निकले। कालचक्र बीतता गया और असमंज का अंशुमान नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। असमंज अत्यन्त दुष्ट प्रकृति का था इसलिये राजा सगर ने उसे अपने देश से निष्कासित कर दिया। फिर एक बार राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ करने की दीक्षा ली। अश्वमेघ यज्ञ का श्यामकर्ण घोड़ा छोड़ दिया गया और उसके पीछे-पीछे राजा सगर के साठ हजार पुत्र अपनी विशाल सेना के साथ चलने लगे। सगर के इस अश्वमेघ यज्ञ से भयभीत होकर देवराज इन्द्र ने अवसर पाकर उस घोड़े को चुरा लिया और उसे ले जाकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। उस समय कपिल मुनि ध्यान में लीन थे अतः उन्हें इस बात का पता ही न चला। इधर सगर के साठ हजार पुत्रों ने घोड़े को पृथ्वी के हरेक स्थान पर ढूँढा किन्तु उसका पता न लग सका। वे घोड़े को खोजते हुये पृथ्वी को खोद कर पाताल लोक तक पहुँच गये जहाँ अपने आश्रम में कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे और वहीं पर वह घोड़ा बँधा हुआ था। सगर के पुत्रों ने यह समझ कर कि घोड़े को कपिल मुनि ही चुरा लाये हैंकपिल मुनि को कटुवचन सुनाना आरम्भ कर दिया। अपने निरादर से कुपित होकर कपिल मुनि ने राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया।

 

"जब सगर को नारद मुनि के द्वारा अपने साठ हजार पुत्रों के भस्म हो जाने का समाचार मिला तो वे अपने पौत्र अंशुमान को बुलाकर बोले कि बेटा! तुम्हारे साठ हजार दादाओं को मेरे कारण कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में भस्म हो जाना पड़ा। अब तुम कपिल मुनि के आश्रम में जाकर उनसे क्षमाप्रार्थना करके उस घोड़े को ले आओ। अंशुमान अपने दादाओं के बनाये हुये रास्ते से चलकर कपिल मुनि के आश्रम में जा पहुँचे। वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपनी प्रार्थना एवं मृदु व्यवहार से कपिल मुनि को प्रसन्न कर लिया। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर उन्हें वर माँगने के लिये कहा। अंशुमान बोले कि मुने! कृपा करके हमारा अश्व लौटा दें और हमारे दादाओं के उद्धार का कोई उपाय बतायें। कपिल मुनि ने घोड़ा लौटाते हुये कहा कि वत्स! जब तुम्हारे दादाओं का उद्धार केवल गंगा के जल से तर्पण करने पर ही हो सकता है।

"अंशुमान ने यज्ञ का अश्व लाकर सगर का अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण करा दिया। यज्ञ पूर्ण होने पर राजा सगर अंशुमान को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये इस प्रकार तपस्या करते-करते उनका स्वर्गवास हो गया। अंशुमान के पुत्र का नाम दिलीप था। दिलीप के बड़े होने पर अंशुमान भी दिलीप को राज्य सौंप कर गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के उद्देश्य से तपस्या करने के लिये उत्तराखंड चले गये किन्तु वे भी गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में सफल न हो सके। दिलीप के पुत्र का नाम भगीरथ था। भगीरथ के बड़े होने पर दिलीप ने भी अपने पूर्वजों का अनुगमन किया किन्तु गंगा को लाने में उन्हें भी असफलता ही हाथ आई।

"अन्ततः भगीरथ की तपस्या से गंगा प्रसन्न हुईं और उनसे वरदान माँगने के लिया कहा। भगीरथ ने हाथ जोड़कर कहा कि माता! मेरे साठ हजार पुरखों के उद्धार हेतु आप पृथ्वी पर अवतरित होने की कृपा करें। इस पर गंगा ने कहा वत्स! मैं तुम्हारी बात मानकर पृथ्वी पर अवश्य आउँगीकिन्तु मेरे वेग को भगवान शिव के अतिरिक्त और कोई सहन नहीं कर सकता। इसलिये तुम पहले भगवान शिव को प्रसन्न करो। यह सुन कर भगीरथ ने भगवान शिव की घोर तपस्या की और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी हिमालय के शिखर पर गंगा के वेग को रोकने के लिये खड़े हो गये। गंगा जी स्वर्ग से सीधे शिव जी की जटाओं पर जा गिरीं। इसके बाद भगीरथ गंगा जी को अपने पीछे-पीछे अपने पूर्वजों के अस्थियों तक ले आये जिससे उनका उद्धार हो गया। भगीरथ के पूर्वजों का उद्धार करके गंगा जी सागर में जा गिरीं और अगस्त्य मुनि द्वारा सोखे हुये समुद्र में फिर से जल भर गया।"

महिमा

भविष्य पुराण में लिखा हुआ है किजो मनुष्य इस दशहरा के दिन गंगा के पानी में खड़ा होकर दस बार इस स्तोत्र को पढ़ता है. उसके सभी पाप उसी क्षण समाप्त हो जाते हैं और स्वर्ग लोग की प्राप्ति होती है। 

गंगा स्तोत्र और उसे पढ़ने की विधि - सब अवयवों से सुंदर तीन नेत्रों वाली चतुर्भुजी जिसके किचारों भुजरत्नकुंभश्वेतकमलवरद और अभय से सुशोभित हैंसफेद वस्त्र पहने हुई है। मुक्ता मणियों से विभूषित हैसौम्य हैअयुत चंद्रमाओं की प्रभा के सम सुख वाली है जिस पर चामर डुलाए जा रहे हैंवाल श्वेत छत्र से भलीभाँति शोभित हैअच्छी तरह प्रसन्न हैवर के देने वाली हैनिरंतर करुणार्द्रचित्त हैभूपृष्ठ को अमृत से प्लावित कर रही हैदिव्य गंध लगाए हुए हैत्रिलोकी से पूजित हैसब देवों से अधिष्ठित हैदिव्य रत्नों से विभूषित हैदिव्य ही माल्य और अनुलेपन हैऐसी गंगा के पानी में ध्यान करके भक्ति पूर्व मंत्र से अर्चना करें।

गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती। नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु।।

गंगाजी की पंचोपचार पूजा करें और पुष्पांजलि समर्पण करें। 

निम्नलिखित श्लोक 'सरस्वतीस्तोत्रसे लिया गया है-

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता

सा मां पातु सरस्वति भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥

विष्णुरूपिणी के लिए और तुझ ब्रह्म मूर्ति के लिए बारंबार नमस्कार है।। 1।।

तुझ रुद्ररूपिणी के लिए और शांकरी के लिए बारंबार नमस्कार हैभेषज मूर्ति सब देव स्वरूपिणी तेरे लिए नमस्कार है।। 2।।

सब व्याधियों की सब श्रेष्ठ वैद्या तेरे लिए नमस्कारस्थावर जंगमों के विषयों को हरण करने वाली आपको नमस्कार।। 3।।

संसाररूपी विष के नाश करने वाली एवं संतप्तों को जिलाने वाली तुझ गंगा के लिए नमस्कार ; तीनों तापों को मिटाने वाली प्राणेशी तुझ गंगा को नमस्कार।। 4।।

मूर्ति तुझ गंगा के लिए नमस्कारसबकी संशुद्धि करने वाली पापों को बैरी के समान नष्ट करने वाली तुझ...।। 5।।

भुक्तिमुक्तिभद्रभोग और उपभोगों को देने वाली भोगवती तुझ गंगा को।। 6।।

तुझ मंदाकिनी के लिए देवे वाली के लिए बारंबार नमस्कारतीनों लोकों की भूषण स्वरूपा तेरे लिए एवं तीन पंथों से जाने वाली के लिए बार-बार नमस्कार।

कोई इस श्लोक में 'त्रिपथायैइसके स्थान में 'जगद्धात्रैयऐसा पाठ करते हैं। इसका अर्थ होता है किजगत् की धात्री के लिए नमस्कार।। 7।। 

तीन शुक्ल संस्थावाली को और क्षमावती को बारंबार नमस्कार तीन अग्नि की संस्थावाली तेजोवती के लिए नमस्कार हैलिंग धारणी नंदा के लिए नमस्कार तथा अमृत की धारारूपी आत्मा वाली के लिए नमस्कार कोई 'नारायण्यै नमोनम:नारायणी के लिए नमस्कार है ऐसा पाठ करते हैं।। 8।। 

संसार में आप मुख्य हैं आपके लिए ‍नमस्काररेवती रूप आपके लिए नमस्कारतुझ बृहती के लिए नमस्कार एवं तुझ लोकधात्री के लिए नम: है।। 9।।

संसार की मित्ररूपा तेरे लिए नमस्कारतुझ नंदिनी के‍ लिए नमस्कारपृथ्वी शिवामृता और सुवृषा के लिए नमस्कार।। 10।। 

पर और अपर शतों से आढया तुझ तारा को बार-बार नमस्कार है। फंदों के जालों को काटने वाली अभित्रा तुझको नमस्कार है।। 11।। 

शान्तावरिष्ठा और वरदा जो आप हैं आपके लिए नमस्कारउत्रासुखजग्धी और संजीवनी आपके लिए नमस्कार।। 12।। 

ब्रहिष्ठाब्रह्मदा और दुरितों को जानने वाली तुझको बार-बार नमस्कार।। 13।। सब आपत्तियों को नाश करने वाली तुझ मंगला को नमस्कार।। 14।। 

सबकी आर्तिको हरने वाली तुझ नारायणी देवी के लिए नमस्कार है। सबसे निर्लेप रहने वाली दुर्गों को मिटाने वाली तुझ दक्षा के लिए नमस्कार है।। 15।। 

पर और अपर से भी जो पर है उस निर्वाण के लिए देने वाली गंगा के लिए प्रणाम है। हे गंगे! आप मेरे अगाडी हों आप ही मेरे पीछे हों।। 16।।

मेरे अगल-बगल हे गंगे! तू ही रह हे गंगे! मेरी तेरे में ही स्थिति हो। हे गंगे! तू आदि मध्य और अंत सब में है। सर्वगत है तू ही आनंददायिनी है।। 17।। 

तू ही मूल प्रकृति हैतू ही पर पुरुष हैहे गंगे ! तू परमात्मा शिवरूप हैहे शिवे! तेरे लिए नमस्कार है।। 18।। जो कोई इस स्तोत्र को श्रद्धा के साथ पढ़ता या सुनता है वो वाणी शरीर और चित्त से होने वाले पापों से दस तरह से मुक्त होता है।। 19।। 

रोगीरोग से विपत्ति वाला विपत्तियों सेबंधन से और डर से डरा हुआ पुरुष छूट जाता है।। 20।। 

सब कामों को पाता है मरकर ब्रह्म में लय होता है। वो स्वर्ग में दिव्य विमान में बैठकर जाता है।। 21।।

जो इस स्तोत्र को लिखकर घर में रख छोड़ता है उसके घर में अग्नि और चोर से भय नहीं होता एवं पापी ही वहाँ सताते हैं। ज्येष्ठ शुक्ला हस्तसहित बुधवारी दशमी तीनों तरह के पापों को हरती है। उस दशमी के दिन जो कोई गंगाजल में खड़ा होकर इस स्तोत्र को दस बार पढ़ता है जो दरिद्र हो या असमर्थ हो। वो गंगाजी को प्रयत्नपूर्वक पूजता है तो उसे भी वही फल मिल जाता है जो कि पहले विधान से फल कहा है।जैसी गौरी है वैसी ही गंगाजी है इस कारण गौरी के पूजन में जो विधि कही है वही विधि गंगा के पूजन में भी होती है। जैसे शिव वैसे ही विष्णु और शिव में तथा श्री और गौरी में तथा गंगा और गौरी में जो भेद बताता है वो निरा मूर्ख है। वो रौरवादिक घोर नरकों में पड़ता है। अदत्त का उपादानअविधान की हिंसा। दूसरे की स्त्री के साथ रमणये तीन (कायिक) शारीरिक पाप। पारुष्यअनृत और चारों ओर की पिशुनता।असंबद्ध प्रलाप ये चार तरह की वाणी। पापदूसरे के धन की चाहमन से किसी का बुरा चीतना। मिथ्‍या का अभिनिवेश ये तीन तरह का मन का पापइन दसों तरह के पापों को हे गंगे आप दूर कर दें। ये दस पापों को हरती हैइस कारण इसे दशहरा भी कहते हैंकोटि जन्म के होने वाले इन दस तरह के पापों से।छूट जाता है इसमें संदेह नहीं है। हे गदाधर! यह सत्य हैसत्य हैइसमें संशय नहीं है ! यदि इस मंत्र से गंगा का पूजन करा दिया तो तीनों के दसतीस और सौ पितरों को संसार से उबारती है। कि, 'भगवती नारायणी दस पापों को हरने वाली शिवा गंगा विष्णु मुख्या पापनाशिनी रेवती भागीरथी के लिए नमस्कार है' ज्येष्ठमासशुक्ल पक्षदशमी तिथिबुधवार हस्त नक्षत्र गरआनंद व्यतिपातकन्या के चंद्रवृष के रवि इन दशों के योग में जो मनुष्य गंगा स्नान करता है वो सब पापों से छूट जाता है।

मैं उस गंगादेवी को प्रणाम करता हूँ जो सफेद मगर पर बैठी हुई श्वेतवर्ण की है तीनों नेत्रों वाली हैअपनी सुंदर चारों भुजाओं में कलशखिला कमलअभय और अभीष्ट लिए हुए हैं जो ब्रह्माविष्णु शिवरूप है चांदसमेद अग्र भाग से जुष्ट सफेद दुकूल पहने हुई जाह्नवी माता को मैं नमस्कार करता हूँ जो सबसे पहले तो ब्रह्माजी के कमण्डल में विराजती थी पीछे भगवान के चरणों का धोवन नकर शिवजी की जटाओं में रह जटाओं का भूषण बनी पीछे जन्हु महर्षि की कन्या बनीयही पापों को नष्ट करने वाली भगवती भागीरथी दिखती है।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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