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उत्तराखंड का लोक पर्व घी संक्रांति त्यौहार 16 अगस्त 2024

उत्तराखंड का लोक पर्व घी संक्रांति त्यौहार 16 अगस्त 2024

जब सूर्य एक राशि में संचरण करते हुए दूसरी राशि में प्रवेश करते है तो उसे संक्रांति कहा जाता है इस तरह से 1 साल में 12 संक्रांति आती हैं इस वर्ष भाद्रपद माह में 16 अगस्त 2024 को घी संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा इस दिन सूर्य देव सिंह राशि में प्रवेश करेंगे ज्योतिष ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद संक्रांति का पुण्य काल 16 अगस्त को 12:15 PM से 06:51 PM तक रहेगा

सिंह संक्रांति का महत्व    

हिंदू धर्म में घी संक्रांति को एक पर्व के रूप में मनाया जाता है सिंह (घी) संक्रांति के दिन सूर्य अपनी स्वराशि में आ जाता है जिसके चलते सूर्य बली अवस्था में होता है बली होने के कारण इसका प्रभाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है ज्योतिष के अनुसार देखें तो सूर्य एक आत्म कारक ग्रह है सूर्य का प्रभाव बढ़ने की वजह से व्यक्ति के पुराने रोग खत्म होने लगते हैं और मनुष्य के भीतर आत्मविश्वास बढ़ने लगता है सिंह (घी) संक्रांति में स्थित सूर्य देव की पूजा विशेष फलदाई बताई गई है लगभग 1 महीने के इस समय अंतराल में सूर्य की पूजा हर रोज करनी चाहिए सूर्य संक्रांति के दिन सूर्य देव, विष्णु जी और भगवान नरसिंह की पूजा करनी चाहिए और पवित्र नदियों तालाबों या कुंड में स्नान कर के गंगाजल व दूध आदि से देवताओं का नित्य प्रतिदिन अभिषेक करना चाहिए

सिंह संक्रांति के दिन घी खाने का महत्व

घी (सिंह) संक्रांति  के दिन पूजा-पाठ स्नान ध्यान और दान पुण्य के साथ घी खाने का भी महत्व है आयुर्वेद में चरक संहिता के अनुसार गाय का घी बेहद शुद्ध और पवित्र होता है ऐसी मान्यता है कि जो भी जातक घी संक्रांति के दिन घी का सेवन करता है उसके यादाश्त, बुद्धि, बल, ऊर्जा और ओज में वृद्धि होती है इसके अलावा गाय का घी वसावर्धक है जिसे खाने से व्यक्ति को वात, कफ और पित्त दोष जैसी परेशानियां नहीं होती हैं

गाय का घी हमारे शरीर से विषैले पदार्थ को बाहर निकाल देता है घी संक्रांति के दौरान लगभग 1 महीने के इस समय में रोजाना सूर्य देव को जल चढ़ाना चाहिए पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यदि कोई व्यक्ति घी संक्रांति के दिन घी नहीं खाता है तो अगले जन्म में वह घोंघे के रूप में जन्म लेता है यही कारण है कि घी संक्रांति के दिन घी खाने का विशेष महत्व बताया गया है

सदियों से चली आ रही लोक परंपरा

कुमाऊं और गढ़वाल के लोग घी संक्रांति के दिन अवश्य रूप से घी खाते हैं क्योंकि यह एक सदियों से चली आ रही परंपरा है उत्तराखंड वासियों को लगता है कि अगर घी संक्रांति पर उन्होंने घी नहीं खाया तो उन्हें अगले जन्म में घोंघा बनना पड़ेगा

घोंघा अगले जन्म में ना बन जाए इस डर से कुमाऊं और गढ़वाल के लोग सिर और पांव के तलवे पर घी लगाते हैं और इसका सेवन भी करते हैं जिससे कि अगले जन्म में घोंघा ना बन जाय

हालांकि इन सभी बातों एवं तथ्यों का कोई भी वैज्ञानिक आधार नहीं है लेकिन चली आ रही परंपरा मान्यताओं के अनुसार उत्तराखंड का यह एक लोक पर्व है और इस दिन घी जरूर खाते हैं

घी त्यौहार को लेकर एक यह भी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन घी का सेवन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी अत्यधिक फायदा मिलता है कहा जाता है कि इस घी संक्रांति के दिन घी खाने से राहु और केतु का मनुष्य के जीवन पर नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि व्यक्ति सकारात्मक सोच रखते हुए जीवन के हर क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते रहता है

घी त्यौहार पर मुख्य व्यंजन है बेडू की रोटी

घी त्यौहार पर बनने वाला मुख्य व्यंजन के रूप में बेडू की रोटी शामिल है यह बेडू की रोटी उड़द की दाल से बनाई जाती है उत्तराखंड में चली आ रही परंपरा के अनुसार बेडू की रोटी को घी और अरबी की सब्जी के साथ खाना अत्यधिक शुभ माना जाता है


 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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