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देवभूमि उत्तराखंड के न्यायप्रिय देवता हैं ग्वेलज्यू

देवभूमि उत्तराखंड के न्यायप्रिय गोलू देवता

उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर के लिए विश्व प्रसिद्ध है। यहां हर गांव, हर पर्वत, और हर घाटी किसी न किसी देवी-देवता की आस्था से जुड़ी होती है। गढ़वाल और कुमाऊं की पहाड़ियों में रहने वाले लोग अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को पीढ़ियों से निभाते आ रहे हैं। इन परंपराओं में ग्वेल देवता की पूजा एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। ग्वेल देवता को न्याय, साहस, और शक्ति का प्रतीक माना जाता है और उनकी पूजा विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में की जाती है।

ग्वेल देवता कौन हैं?

ग्वेल देवता, जिन्हें "ग्वेलज्यू" या "गोलू देवता" के नाम से भी जाना जाता है, कुमाऊं के लोक देवता हैं। उन्हें न्याय के देवता के रूप में पूजा जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, ग्वेल देवता अत्यंत दयालु और न्यायप्रिय हैं, जो अपने भक्तों को न्याय दिलाने के लिए हर संभव मदद करते हैं। ग्वेल देवता की पूजा विशेष रूप से उन लोगों द्वारा की जाती है, जो किसी अन्याय का शिकार हुए हैं या जिन्हें अपने जीवन में किसी संकट का सामना करना पड़ रहा है।

ग्वेल देवता की कहानियां और लोक कथाएं कुमाऊं की संस्कृति और इतिहास का अभिन्न हिस्सा हैं। ग्वेल देवता का संबंध चंद वंश के राजाओं से भी जोड़ा जाता है। यह कहा जाता है कि ग्वेल देवता चंद वंश के एक राजा थे, जो अपनी प्रजा के लिए न्यायप्रिय और साहसी शासक थे। उनकी मृत्यु के बाद, लोगों ने उन्हें देवता का रूप दिया और उनकी पूजा करना शुरू कर दिया।

ग्वेल देवता की पूजा का तरीका

ग्वेल देवता की पूजा कुमाऊं क्षेत्र में विशेष महत्व रखती है। उनकी पूजा का विशेष तरीका है, जो अन्य देवी-देवताओं से भिन्न है। ग्वेल देवता की मूर्ति या प्रतिमा किसी भी स्थान पर स्थायी रूप से स्थापित नहीं होती है। उनके मंदिर में घंटियों को लटकाना और वहां प्रार्थना पत्र चढ़ाना एक विशेष परंपरा है। लोग अपनी समस्याओं और परेशानियों को कागज पर लिखकर ग्वेल देवता के मंदिर में चढ़ाते हैं, ताकि देवता उनकी प्रार्थनाओं को सुनें और उनका समाधान करें।

ग्वेल देवता के मंदिरों में एक विशेष रूप से बड़ी संख्या में घंटियां देखी जाती हैं। यह घंटियां भक्तों द्वारा तब चढ़ाई जाती हैं जब उनकी प्रार्थनाएं पूरी हो जाती हैं। लोग मानते हैं कि अगर वे ग्वेल देवता से सच्चे दिल से न्याय की प्रार्थना करते हैं, तो उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं और वे संकटों से मुक्त होते हैं। इसके अलावा, लोग मन्नत पूरी होने के बाद नारियल, घी, और मिठाई भी चढ़ाते हैं।

ग्वेल देवता की पूजा में श्रद्धा और विश्वास का अत्यधिक महत्व है। लोग अपनी समस्याओं को देवता के समक्ष रखते हैं और उनसे न्याय की गुहार लगाते हैं। यह प्राचीन परंपरा आज भी कुमाऊं क्षेत्र में जीवित है और हर साल हजारों लोग ग्वेल देवता के मंदिरों में आकर अपनी मन्नतें मांगते हैं।

ग्वेल देवता के प्रमुख मंदिर

उत्तराखंड में ग्वेल देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन इनमें से कुछ विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। अल्मोड़ा, नैनीताल, चंपावत और पिथौरागढ़ जिलों में ग्वेल देवता के प्रमुख मंदिर स्थित हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध मंदिर "चंपावत" में स्थित है, जिसे "ग्वेल देवता का मुख्य मंदिर" कहा जाता है। इस मंदिर में भक्तों की भीड़ हर समय लगी रहती है, खासकर जब किसी को न्याय की आवश्यकता होती है।

इसके अलावा नैनीताल जिले के घोड़ाखाल में भी ग्वेल देवता का प्रसिद्ध मंदिर स्थित है। यह मंदिर अपनी घंटियों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है। मंदिर के चारों ओर हजारों घंटियां लटकी हुई हैं, जो यह दर्शाती हैं कि ग्वेल देवता ने कितने भक्तों की प्रार्थनाएं सुनी हैं और उनके दुखों का निवारण किया है। इस मंदिर में न्याय के लिए किए गए प्रार्थनाओं की संख्या अत्यधिक होती है और यहां आने वाले लोग अपनी मन्नत पूरी होने के बाद घंटियां चढ़ाते हैं।

ग्वेल देवता और न्याय की अवधारणा

ग्वेल देवता को मुख्य रूप से न्याय का देवता माना जाता है। उनकी पूजा का उद्देश्य जीवन में न्याय प्राप्त करना और किसी भी प्रकार के अन्याय से मुक्ति पाना होता है। उत्तराखंड की लोक मान्यताओं में ग्वेल देवता का स्थान विशेष है, क्योंकि यहां के लोग अपने जीवन के हर संकट में उन्हें याद करते हैं।

ग्वेल देवता के बारे में यह मान्यता है कि वे किसी भी परिस्थिति में अन्याय सहन नहीं करते। अगर कोई व्यक्ति या परिवार किसी अत्याचार का शिकार होता है, तो वे ग्वेल देवता की शरण में जाते हैं और उनसे न्याय की गुहार लगाते हैं। यहां तक कि जिन मामलों में न्यायिक प्रक्रियाएं काम नहीं आतीं, लोग ग्वेल देवता से उम्मीद करते हैं कि वे सही और गलत का निर्णय करेंगे।

ग्वेल देवता के प्रति यह विश्वास इतना गहरा है कि लोग बिना किसी संदेह के मानते हैं कि देवता उन्हें अवश्य न्याय दिलाएंगे। उनके मंदिरों में प्रार्थना पत्र लिखकर लटकाने की परंपरा इसी विश्वास का प्रतीक है। भक्त अपने पत्र में अपनी परेशानियां, दुख और शिकायतें लिखते हैं और फिर उन्हें ग्वेल देवता के पास छोड़ देते हैं, ताकि देवता उन्हें न्याय दिलाएं।

ग्वेल देवता की लोक कथाएं

ग्वेल देवता से जुड़ी कई लोक कथाएं उत्तराखंड की संस्कृति और साहित्य का हिस्सा हैं। इनमें से एक प्रमुख कथा के अनुसार, ग्वेल देवता राजा कल्याण चंद के पुत्र थे। राजा ने उनके साथ अन्याय किया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन ग्वेल देवता ने मृत्यु के बाद भी न्याय का रास्ता चुना और देवता बनकर अपने अनुयायियों को न्याय दिलाने लगे।

एक अन्य लोक कथा के अनुसार, ग्वेल देवता ने कई बार अपने भक्तों की सहायता की और उन्हें संकटों से बाहर निकाला। यह माना जाता है कि ग्वेल देवता की पूजा करने से न्याय अवश्य मिलता है, भले ही परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।

ग्वेल देवता और वर्तमान समाज

आज भी उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में ग्वेल देवता की पूजा उतनी ही श्रद्धा से की जाती है, जितनी पहले की जाती थी। समय के साथ-साथ भले ही जीवनशैली में बदलाव आया हो, लेकिन ग्वेल देवता के प्रति लोगों की आस्था और विश्वास में कोई कमी नहीं आई है।

वर्तमान समय में भी लोग अपनी न्यायिक समस्याओं और व्यक्तिगत संकटों के समाधान के लिए ग्वेल देवता की शरण में आते हैं। यहां तक कि आधुनिक न्यायिक प्रणाली से निराश लोग भी ग्वेल देवता के मंदिर में जाकर न्याय की प्रार्थना करते हैं। ग्वेल देवता के प्रति यह आस्था बताती है कि कैसे उत्तराखंड की जनता अपनी परंपराओं और धार्मिक विश्वासों को संजोकर रखे हुए है।

समापन

ग्वेल देवता की पूजा उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह पूजा न केवल न्याय प्राप्ति का साधन है, बल्कि यह लोगों के विश्वास, श्रद्धा, और उनके जीवन के संकटों से मुक्ति का प्रतीक भी है। ग्वेल देवता के मंदिरों में भक्तों की अपार भीड़ और उनके प्रति असीम श्रद्धा इस बात का प्रमाण है कि यह प्राचीन परंपरा आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितनी सैकड़ों साल पहले थी।

उत्तराखंड के लोग ग्वेल देवता को न्याय और सत्य का देवता मानते हैं, और उनकी पूजा के माध्यम से वे अपने जीवन में संतुलन और शांति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। ग्वेल देवता की यह पूजा आज भी कुमाऊं की संस्कृति और धार्मिक जीवन का अभिन्न अंग है, जो आने वाली पीढ़ियों को भी प्रेरणा देती रहेगी।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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