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नरक चतुर्दशी पर बन रहा है दुर्लभ योग, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

नरक चतुर्दशी: पापों का विनाश और रोशनी का पर्व 30 अक्टूबर 2024

नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली, काली चौदस या रूप चौदस भी कहा जाता है, दीपावली के एक दिन पहले मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है। यह पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है, जो आमतौर पर अक्टूबर-नवंबर के बीच पड़ता है। नरक चतुर्दशी का धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व बहुत गहरा है, क्योंकि इसे पापों के नाश और आत्मा की शुद्धि से जोड़ा जाता है। साथ ही, इस दिन शरीर और मन की शुद्धि के लिए स्नान, उपवास और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व होता है।


नरक चतुर्दशी तिथि और शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि 30 अक्टूबर को दोपहर 01:15 बजे से शुरू होगी। वहीं, इसका समापन 31 अक्टूबर को दोपहर 03:52 बजे होगा। इस दौरान अमृत काल का समय 30 अक्टूबर दोपहर 02:56 बजे से शाम 04:45 बजे तक रहेगा।


नरक चतुर्दशी - भद्रावास योग

पंचांग के अनुसार आज कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को भद्रावास योग बन रहा है। इसका आरंभ 30 अक्टूबर को दोपहर 01:16 बजे होगा। वहीं, इसका समापन 31 अक्टूबर को देर रात 02:35 बजे होगा। यह ऐसा समय है जब सभी जीवों को लाभ मिलेगा।


 नरक चतुर्दशी - सर्वार्थ सिद्धि योग

आज छोटी दिवाली पर 30 अक्टूबर सुबह 06:32 बजे से रात 09:43 बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग बनेगा। इस शुभ योग में भगवान श्री कृष्ण की विधि-विधान से पूजा करें। कहा जाता है कि इस योग में कृष्ण की पूजा करने से सभी शुभ कार्यों में सफलता मिलती है।


नरक चतुर्दशी - नक्षत्र योग

आज छोटी दिवाली के दिन हस्त नक्षत्र का संयोग बन रहा है। यह 31 अक्टूबर को रात 09:43 बजे समाप्त होगा। इसके बाद चित्रा नक्षत्र शुरू हो जाएगा। ज्योतिष शास्त्र में हस्त नक्षत्र को बहुत शुभ माना जाता है। इस योग में पूजा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।


पौराणिक कथा और धार्मिक महत्व

नरक चतुर्दशी का सबसे प्रमुख धार्मिक महत्व एक पौराणिक कथा से जुड़ा हुआ है, जिसमें भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर नामक राक्षस का वध किया गया था। नरकासुर एक अत्याचारी राजा था, जिसने 16,000 स्त्रियों को बंदी बना रखा था और धरती पर आतंक फैला रखा था। उसकी क्रूरता से धरती और स्वर्ग दोनों जगह के लोग परेशान थे। नरकासुर ने इंद्र सहित देवताओं को भी पराजित किया और उनकी अमूल्य वस्तुएं छीन लीं।

नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने देवी सत्यभामा के साथ युद्ध में नरकासुर का वध किया। इस युद्ध में देवी सत्यभामा की महत्वपूर्ण भूमिका थी, क्योंकि नरकासुर को केवल स्त्री द्वारा मारा जा सकता था। सत्यभामा के रूप में शक्ति ने राक्षस का अंत किया। भगवान कृष्ण ने नरकासुर के बंदीगृह से 16,000 स्त्रियों को मुक्त किया और उन्हें समाज में सम्मान दिलाया। इस विजय के उपलक्ष्य में नरक चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है।

इस कथा के आधार पर नरक चतुर्दशी को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह दिन यह संदेश देता है कि चाहे कितनी भी बड़ी बाधा हो, धर्म और सत्य की विजय निश्चित होती है। साथ ही, इस दिन पापों के नाश और आत्मा की शुद्धि का विशेष महत्व होता है।

रूप चौदस और सौंदर्य की पूजा

नरक चतुर्दशी को रूप चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को विशेष रूप से सौंदर्य और रूप की पूजा के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध करके प्रातः काल स्नान किया और अपने शरीर को सजाया। इसलिए इस दिन स्नान करके शरीर को सजाना और सुंदरता की आराधना करना शुभ माना जाता है।

रूप चौदस पर महिलाएं विशेष रूप से उबटन का उपयोग करती हैं, जिससे शरीर की शुद्धि और सुंदरता को बढ़ावा मिलता है। उबटन में हल्दी, बेसन, चंदन और अन्य प्राकृतिक सामग्रियों का मिश्रण होता है, जिसे शरीर पर लगाने से त्वचा में निखार आता है। इस दिन सुंदरता और सौंदर्य की पूजा करके लोग शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की कामना करते हैं। यह त्योहार यह संदेश भी देता है कि आंतरिक सुंदरता के साथ-साथ बाहरी सौंदर्य भी जीवन में महत्वपूर्ण है।

यम दीपदान और अकाल मृत्यु से मुक्ति

नरक चतुर्दशी से जुड़ी एक अन्य प्रमुख परंपरा यम दीपदान की है। यह परंपरा मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित होती है। यम दीपदान का मुख्य उद्देश्य अकाल मृत्यु से बचाव और परिवार की सुरक्षा के लिए प्रार्थना करना है। इस दिन घर के बाहर और दरवाजे पर दीप जलाकर यमराज से प्रार्थना की जाती है कि वे परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु से बचाएं।

यम दीपदान की परंपरा से जुड़ी एक लोक कथा है, जिसके अनुसार एक बार राजा हिमा के पुत्र की कुंडली में भविष्यवाणी की गई थी कि उसकी मृत्यु विवाह के चौथे दिन सांप के डसने से होगी। उसकी पत्नी ने उसे बचाने के लिए धनतेरस की रात को जागरण किया और दरवाजे पर ढेर सारी कीमती वस्तुएं रख दीं। यमराज जब सांप के रूप में आए, तो वह इन वस्तुओं की रोशनी से चकाचौंध हो गए और राजा के पुत्र को नहीं डसा। इस प्रकार, उसकी जान बच गई।

यम दीपदान की यह परंपरा हमें मृत्यु के भय से मुक्त होने और जीवन को सकारात्मक दृष्टिकोण से जीने की प्रेरणा देती है। दीपक जलाना जीवन की नश्वरता और आत्मा की अमरता का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति अपने जीवन को सार्थक बनाने के लिए प्रेरित होता है।

पूजा विधि और रीति-रिवाज

नरक चतुर्दशी की पूजा विधि और रीति-रिवाज बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इस दिन लोग प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करते हैं, जिसे "अभ्यंग स्नान" कहा जाता है। माना जाता है कि इस दिन तिल के तेल से स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है और पापों का नाश होता है। इस दिन स्नान के बाद भगवान कृष्ण, देवी काली, और यमराज की पूजा की जाती है।

पूजा के दौरान दीपक जलाने का विशेष महत्व होता है। लोग घरों में दीप जलाकर अंधकार को दूर करने और अपने जीवन में प्रकाश लाने की कामना करते हैं। साथ ही, घरों की साफ-सफाई और सजावट भी इस दिन की जाती है, ताकि घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास हो। घर के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती है और दीयों से घर को रोशन किया जाता है। इस दिन विशेष रूप से भगवान कृष्ण और मां काली की आराधना की जाती है और उनसे पापों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्रार्थना की जाती है।

छोटी दिवाली के रूप में महत्व

नरक चतुर्दशी को छोटी दिवाली भी कहा जाता है, क्योंकि यह दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाती है। छोटी दिवाली का महत्व मुख्य रूप से दीपों की रोशनी और पापों के नाश से जुड़ा हुआ है। यह दिन हमें यह सिखाता है कि अज्ञान और अंधकार को दूर करके ज्ञान और प्रकाश की ओर बढ़ना ही जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए।

इस दिन लोग एक-दूसरे को बधाई देते हैं और मिठाइयों का आदान-प्रदान करते हैं। यह पर्व सामाजिक समरसता और एकजुटता का प्रतीक है, जहां लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं और दीपावली के प्रमुख पर्व की तैयारी करते हैं। छोटी दिवाली के दिन लोग अपने घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों को सजाते हैं और वहां दीप जलाते हैं, ताकि देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके।

नरक चतुर्दशी का सांस्कृतिक महत्व

नरक चतुर्दशी केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि इसका सांस्कृतिक महत्व भी व्यापक है। इस दिन घरों में विशेष व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनमें विशेष रूप से मीठे और तले हुए पकवान शामिल होते हैं। लोग अपने रिश्तेदारों और मित्रों को बुलाकर भोजन का आयोजन करते हैं और मिलकर इस पर्व का आनंद लेते हैं। इस तरह, यह दिन सामाजिक और पारिवारिक बंधनों को मजबूत बनाने का भी एक अवसर है।

इसके अलावा, नरक चतुर्दशी पर शरीर और मन की शुद्धि के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं। लोग स्नान करके शरीर की शुद्धि करते हैं और पूजा-पाठ के माध्यम से अपने मन को शांत और पवित्र बनाते हैं। यह दिन आत्मनिरीक्षण और आत्मसाक्षात्कार का भी अवसर प्रदान करता है, जहां व्यक्ति अपने भीतर के अंधकार को दूर करके जीवन में नई ऊर्जा और प्रकाश का संचार करता है।

आधुनिक संदर्भ में नरक चतुर्दशी

आधुनिक समय में भी नरक चतुर्दशी का महत्व कम नहीं हुआ है। हालांकि, समय के साथ कुछ परंपराएं बदल गई हैं, लेकिन इस पर्व का मूल उद्देश्य अब भी वही है—पापों का नाश, आत्मा की शुद्धि और जीवन में रोशनी का संचार। आज के युग में लोग इस दिन को अपने व्यस्त जीवन से थोड़ी देर के लिए छुट्टी लेकर आत्ममंथन और आत्मशुद्धि के रूप में मनाते हैं।

इसके अलावा, पर्यावरण की दृष्टि से भी यह दिन महत्वपूर्ण होता जा रहा है। लोग अब अधिक जागरूक हो रहे हैं और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना दीप जलाने और प्रदूषण से बचने के तरीकों को अपना रहे हैं। इस प्रकार, नरक चतुर्दशी एक आधुनिक और पर्यावरण-हितैषी त्योहार के रूप में उभर रहा है, जो परंपरा और प्रगति के बीच संतुलन बनाए रखता है।

निष्कर्ष

नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या रूप चौदस भी कहा जाता है, हिंदू संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है, जो पापों के नाश, आत्मा की शुद्धि और सौंदर्य की पूजा का प्रतीक है। इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर का वध भी किया गया था

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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