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देवभूमि उत्तराखंड चारों धामों के कपाट बंद होने की तिथि घोषित

देवभूमि उत्तराखंड चारों धामों के कपाट बंद होने की तिथि घोषित

देवभूमि उत्तराखंड श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट नवंबर में बंद होंगे। कपाट 17 नवंबर को रात 9:07 बजे बंद होंगे। श्री बद्रीनाथ धाम-केदारनाथ धाम मंदिर समिति (बीकेटीसी) ने मंदिर के कपाट बंद होने की तिथि घोषित कर दी है। यह घोषणा विजयादशमी के दिन की गई है। अभी तक चारधाम यात्रा में 38 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। बद्रीनाथ धाम में अभी तक 11 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। जबकि  केदारनाथ धाम में 13 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। चारधाम के सभी मंदिरों के कपाट बंद होने की तिथि घोषित कर दी गई है।  यमुनोत्री धाम के कपाट तीन नवंबर को भैया दूज के अवसर पर दोपहर 12.05 बजे बंद होंगे। वहीं, गंगोत्री धाम के कपाट दो नवंबर को बंद होंगे। रुद्रनाथ के कपाट 17 अक्तूबर, तुंगनाथ के चार नवंबर और मद्महेश्वर के कपाट 20 नवंबर को बंद होंगे।

श्री बद्रीनाथ धाम, जिसे बद्रीनारायण के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित एक प्रमुख हिंदू तीर्थस्थल है। यह स्थान हिंदू धर्म के चार धामों में से एक है और विशेष रूप से वैष्णव संप्रदाय के अनुयायियों के लिए अत्यधिक महत्व रखता है। बद्रीनाथ धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी भौगोलिक और प्राकृतिक सुंदरता भी इसे अनूठा बनाती है। यहां की प्राचीन संस्कृति, पवित्रता और अध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करती है।

बद्रीनाथ धाम का भूगोल

बद्रीनाथ धाम हिमालय की गोद में स्थित है, जो समुद्र तल से लगभग 3,300 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह धाम अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है, जो गंगा नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। बद्रीनाथ धाम की प्राकृतिक सुंदरता और चारों ओर बर्फ से ढके पहाड़ों का दृश्य यहां के वातावरण को आध्यात्मिक और पवित्र बनाता है। मंदिर के चारों ओर के पर्वत और घाटियां प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। इन पर्वतों में प्रमुख है नर और नारायण पर्वत, जो बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित हैं। इसके अलावा, मंदिर के निकट ही तप्त कुंड नामक एक गर्म पानी का स्रोत भी है, जिसका जल भक्तों के लिए पवित्र माना जाता है।

बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास

बद्रीनाथ धाम का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा हुआ है। माना जाता है कि इस धाम का निर्माण आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में किया था। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, बद्रीनाथ धाम का वर्णन महाभारत, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। यहां भगवान विष्णु की पूजा बद्रीनारायण के रूप में की जाती है। मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्ति काले पत्थर की है, जो शालिग्राम पत्थर से बनी है। यह मूर्ति योग मुद्रा में है, जिसमें भगवान विष्णु पद्मासन में बैठे हुए हैं। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति स्वयंभू है, अर्थात् इसे किसी इंसान द्वारा नहीं बनाया गया, बल्कि यह स्वयं प्रकट हुई है।

आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर को पुनर्स्थापित किया और इसे हिंदू धर्म के चार धामों में शामिल किया। चार धाम यात्रा में बद्रीनाथ धाम के साथ यमुनोत्री, गंगोत्री और केदारनाथ शामिल हैं। यह यात्रा विशेष रूप से धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है। बद्रीनाथ धाम की यात्रा को मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है, और यह मान्यता है कि यहां भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पापों से मुक्ति मिलती है।

बद्रीनाथ धाम की धार्मिक मान्यताएं

बद्रीनाथ धाम से जुड़ी कई धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं हैं। माना जाता है कि भगवान विष्णु ने यहां तपस्या की थी, और देवी लक्ष्मी ने उन्हें बद्री वृक्ष के रूप में छांव दी थी। इसीलिए यहां के मंदिर का नाम बद्रीनाथ पड़ा। इसके अलावा, महाभारत में वर्णित है कि पांडव भी मोक्ष प्राप्ति के लिए बद्रीनाथ धाम आए थे। यह स्थान न केवल विष्णु भक्तों के लिए, बल्कि शैव भक्तों के लिए भी पवित्र है, क्योंकि यह स्थान शिव और विष्णु दोनों के प्रति श्रद्धा का केंद्र है।

बद्रीनाथ धाम का मुख्य मंदिर भगवान बद्रीनारायण को समर्पित है। इसके साथ ही मंदिर परिसर में कुबेर, नारद और उद्धव जी की मूर्तियां भी स्थापित हैं। बद्रीनाथ धाम की धार्मिक गतिविधियों में विशेष रूप से वैदिक मंत्रोच्चारण, पूजा-अर्चना, आरती और भजन-कीर्तन शामिल होते हैं। यहां प्रतिदिन सुबह और शाम की आरती में बड़ी संख्या में भक्त शामिल होते हैं और भगवान के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते हैं।

यात्रा का समय और महत्व

बद्रीनाथ धाम की यात्रा का समय विशेष होता है। यह धाम साल भर खुला नहीं रहता, बल्कि केवल छह महीने के लिए ही खुला रहता है। आमतौर पर मंदिर के कपाट अप्रैल-मई महीने में अक्षय तृतीया के दिन खोले जाते हैं और नवंबर महीने में दीपावली के बाद बंद किए जाते हैं। कपाट बंद होने के बाद यहां की मूर्ति को जोशीमठ ले जाया जाता है, जहां सर्दियों के दौरान भगवान बद्रीनाथ की पूजा होती है।

सर्दियों के दौरान इस क्षेत्र में भारी बर्फबारी होती है, जिस कारण यह स्थान आम लोगों के लिए दुर्गम हो जाता है। इस दौरान केवल स्थानीय निवासियों और पुजारियों को ही यहां पूजा-अर्चना करने की अनुमति होती है। बद्रीनाथ की यात्रा करने का सबसे अच्छा समय मई से अक्टूबर तक का माना जाता है, जब मौसम अनुकूल होता है और रास्ते खुलते हैं।

बद्रीनाथ धाम की वास्तुकला

बद्रीनाथ धाम का मंदिर अपनी अद्वितीय वास्तुकला के लिए भी प्रसिद्ध है। यह मंदिर नागर शैली में बना हुआ है, जो उत्तर भारतीय मंदिर वास्तुकला की एक प्रमुख शैली है। मंदिर की संरचना पत्थरों से बनी हुई है, और इसके शिखर पर एक सुनहरी कलश स्थापित है, जो इसे और भी पवित्र बनाता है। मंदिर के गर्भगृह में भगवान बद्रीनारायण की मूर्ति स्थापित है, और इसके मंडप में भक्त पूजा-अर्चना करते हैं। मंदिर का मुख्य द्वार रंग-बिरंगा और आकर्षक है, जिसे "सिंह द्वार" कहा जाता है।

मंदिर के अंदर भगवान विष्णु के विभिन्न रूपों और अवतारों का चित्रण भी मिलता है, जो इस धाम की धार्मिक महत्ता को और बढ़ाता है। इसके अलावा, मंदिर के आसपास कई छोटे-छोटे मंदिर भी स्थित हैं, जो विभिन्न देवताओं और ऋषियों को समर्पित हैं।

प्रमुख त्यौहार और आयोजन

बद्रीनाथ धाम में हर साल कई प्रमुख त्यौहार और धार्मिक आयोजन होते हैं। इन आयोजनों के दौरान यहां की आध्यात्मिकता और भी अधिक प्रबल हो जाती है। कुछ प्रमुख त्यौहारों में बद्रीनाथ धाम की यात्रा के शुभारंभ का त्यौहार, अक्षय तृतीया, रक्षाबंधन, विजयदशमी, मकर संक्रांति और दीपावली शामिल हैं।

अक्षय तृतीया के दिन मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, और इस दिन को यहां के भक्त विशेष रूप से पवित्र मानते हैं। इस दिन भगवान बद्रीनाथ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, और भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। इसी तरह, दीपावली के बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होते हैं, और इस अवसर पर भी विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है।

इसके अलावा, बद्रीनाथ धाम में वैदिक यज्ञ और हवन भी नियमित रूप से आयोजित किए जाते हैं, जिनमें भाग लेने से भक्तों को आत्मिक शांति और मोक्ष की प्राप्ति का अनुभव होता है। यहां आने वाले श्रद्धालु तप्त कुंड में स्नान कर अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं और भगवान बद्रीनारायण के दर्शन कर अपने जीवन को धन्य मानते हैं।

बद्रीनाथ धाम के आसपास के प्रमुख स्थान

बद्रीनाथ धाम के आसपास कई अन्य धार्मिक और पर्यटन स्थलों का भी विशेष महत्व है। इनमें माणा गांव, जो भारत का आखिरी गांव माना जाता है, विशेष रूप से दर्शनीय है। यह गांव बद्रीनाथ से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और यहां से सरस्वती नदी का उद्गम होता है। इसके अलावा, भीम पुल और वसुधारा जलप्रपात जैसे स्थल भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं।

नीलकंठ पर्वत, जो बद्रीनाथ मंदिर के पास स्थित है, अपनी विशालता और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। इसे भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। नीलकंठ पर्वत का दृश्य सुबह की पहली किरण के साथ अत्यंत मनमोहक लगता है, और इसे देखना भक्तों के लिए एक अद्वितीय अनुभव होता है।

समापन

श्री बद्रीनाथ धाम न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह आस्था, श्रद्धा, और भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। यह धाम हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए मोक्ष का द्वार माना जाता है, जहां आकर भक्त अपनी आत्मा को शांति और पुण्य की प्राप्ति के लिए भगवान बद्रीनारायण की शरण में आते हैं। हिमालय की गोद में स्थित यह धाम न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यहां की प्राकृतिक सुंदरता भी अद्वितीय है।

श्री बद्रीनाथ धाम की यात्रा एक अद्भुत आध्यात्मिक अनुभव है, जो जीवन के संघर्षों से मुक्ति दिलाने का मार्ग दिखाता है।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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