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षट्तिला एकादशी व्रत 25 जनवरी 2025

षट्तिला एकादशी व्रत 25 जनवरी 2025

भविष्योत्तर पुराणमें भगवान् श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर महाराज के संवाद में षट्तिला एकादशी महात्म्य का वर्णन है।

युधिष्ठिरने पूछा हे जगन्नाथ! हे श्रीकृष्ण ! हे आदिदेव ! हे जगत्पते! माघ मास के कृष्ण पक्ष में कौन सी एकादशी आती है. उसे किस प्रकार करना चाहिए उसका फल क्या होता है हे महाप्राज्ञ ! कृपया इस विषय में आप कुछ कहिए !"

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, हे नृपश्रेष्ठ ! माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'षट्तिला' नाम से विख्यात है। सब पापको हरण करने वाली एकादशी की कथा मुनिश्रेष्ठ पुलस्त ने दाल्भ्य को कही थी। वह कथा तुम भी सुनो। दालभ्यने पूछा, हे मुनीवर्य ! मृत्यु लोक में रहने वाला हर एक जीव पाप कर्म में रत है। उन्हें नरक यातना से बचाने के लिए कौनसा उपाय है, कृपया वह आप कथन करें। पुलस्त्य कहने लगे, हे महाभाग ! आपने अच्छी बात पुछी है, तो सुनो। माघ मास में मनुष्य को स्नान करके इंद्रियोंको संयम में रखकर काम, क्रोध, अहंकार, लोभ और निंदा का त्याग करना चाहिए। देवाधीदेव! भगवान् का स्मरण करते हुए पानी से पैरो को धोकर भूमी पर गिरा हुआ गाय का गोवर इकठ्ठा करके उसमें तिल और कपास मिलाकर एक सी आठ पिंड बनाने चाहिए। माघ मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत धारण करे। स्नान से पवित्र शुद्धभाव से श्रीविष्णु की पूजा करे। अपराध क्षमा के लिए श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करें। रात में होम जागरण करे। चंदन, कर्पूर और भोग लगाकर शंख, चक्र, पद्म और गदा धारण करनेवाले श्रीहरि की पूजा करें। बारंबार श्रीकृष्ण के नाम के साथ नारियल और बिजौरे के फल अर्पण करके विधिपूर्वक अर्ध्य दे। दुसरी सामग्री का अभाव हो तो सौ सुपारियोंका उपयोग करके भी पूजन और अर्घ्यदान किया जा सकता है। अर्घ्य मंत्र इस प्रकार है :-

कृष्ण कृष्ण कृपालुस्वमगतीनां गतिर्भव । संसारार्णवमग्नानां प्रसीद पुरुषोत्तम ।। नमस्ते पुंडरीकाक्ष नमस्ते विश्वभावन । सुब्रह्मण्य नमस्तेऽस्तु महापुरूष पूर्वज ।। ऋचाणाम्यं मया दत्तं लक्ष्म्या सह जगत्पते ।

सच्चिदानंद श्रीकृष्ण आप बडे दयालु हैं। हम अनाथ जीवों के आश्रयदाता आप हो। हे पुरूषोत्तम ! हम इस संसार सागर में डूब रहे है, कृपया हमपर प्रसन्न हो, हे विश्वभावन ! हमारा आपको वंदन है। हे कमलनयन ! आपको प्रणाम है। हे सुब्रह्मण्यम ! हे महापुरूष ! हे सभी के पूर्वज ! आपको प्रणाम है। हे जगत्पते! लक्ष्मी के साथ आप इस अर्घ्य को स्वीकार करे।

उसके पश्चात ब्राह्मणों की पूजा करके, उन्हें पानीसे भरा घडा देना चाहिए। साथ में छाता, चप्पल और वस्त्र भी अर्पण करें। इस दान द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण प्रसन्न हो यह कहते हुए दान करना चाहिए। अपनी परिस्थिती अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मण को काली गाय दान में देनी चाहिए। हे द्विजश्रेष्ठ ! विद्वान पुरूषने तिल से भरा हुआ पात्र दान करना चाहिए। तिल के दान से व्यक्ति हजारो वर्ष स्वर्ग में वास करता है।

तिलस्नाची तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी । 

दिलद्रष्टा च भोक्ता च षट्तिला पापनाशिनी ।। 

तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल का हवन करना, तिल डाला हुआ जल पीना, तिल दान करना, तिल का भोजन में उपयोग करना, इस प्रकार छः कार्यों में तिल का उपयोग करने से इसे 'तिला' एकादशी माना जाता है, जो पापहारिणी है।

एक बार षट्तिला एकादशी की महिमा सुनने देवर्षि नारद भगवान् श्रीकृष्ण के पास आए। भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "एक ब्राह्मण स्त्री श्री ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए वह भगवान् की आराधना करती थी । अनेक प्रकार की तपस्याओं के कारण वह बहुत दुर्बल हो गई थी। उसने बहुत दान दिए, परंतु उसने ब्राह्मण और देवताओं को अन्नदान नहीं किया था। अनेक प्रकार के व्रत और तपस्या करने से वह शुद्ध हो गयी थी, परंतु भूखे लोगों को कभी अन्नदान नही किया था। हे ब्राह्मण ! उसकी परीक्षा लेने मैं ब्राह्मण के रूप में उस साध्वी के घर जाकर भिक्षा माँगी।

तभी उस ब्राह्मणी ने पूछा हे ब्राह्मण ! सत्य कहें कि आप कहाँ से आए है. मैंने सुनकर अनजान बनते हुए उसे उत्तर नहीं दिया। उसने क्रोध में भिक्षापात्र में मिट्टी डाली। उसके बाद मैं अपने धाम लौट आया। अपनी तपस्या के प्रभाव से ब्राह्मणी मेरे धाम वापस आई। उसे संपत्ती हीन, सुवर्ण हीन, धान्य हीन सिर्फ एक सुंदर महल मिला । उस महल में कुछ न पाकर वह अस्वस्थ और क्रोधित होकर मेरे पास आई पूछने लगी, "हे जनार्दन ! सब व्रत और तपस्या करके मैने श्रीविष्णु की आराधना की, परंतु मुझे धनधान्य क्यों प्राप्त नही हुआ

मैने कहा हे साध्वी! तुम भौतिक विश्वसे यहाँ आई हो। अब तुम अपने घर लौट जाओ। तुम्हे देखने देवताओं की पत्नियाँ आयेंगी उन्हें षट्तिला एकादशी की महिमा पूछकर पूरा सुनने के बाद ही दरवाजा खोलना अन्यथा नही। यह सुनकर ब्राह्मणी घर वापस आई। 

एक बार ब्राह्मणी दरवाजा बंद करके अंदर बैठी थी तब देवपत्नीयाँ वहाँ पर आकर कहने लगी हे सुंदरी ! हे ब्राह्मणी ! हम तुम्हारे दर्शन करने आए है, कृपया दरवाजा खोले। तब ब्राह्मणी ने कहा आप को मुझे देखने की इच्छा है तो कृपया षट्तिला एकादशी की महिमा का वर्णन करे तभी मैं दरवाजा खोलूंगी। उस समय एक देवपत्नीने उसे वह महात्म्य बताया। महात्म्य सुनने के बाद ब्राह्मणी ने दरवाजा खोला, देवपत्नीयाँ उसके दर्शन से बहुत प्रसन्न हुई।

देवपत्नियों के कहेनुसार ब्राह्मणीने षट्तिला एकादशीका व्रत किया। जिसके प्रभावसे उसे धनधान्य तेज, सौंदर्य प्राप्त हुआ धनधान्य संपादन करने के लोभ दृष्टिसे यह व्रत नही करना चाहिए। इस व्रतके पालन से अपने आप गरीबी दुर्भाग्व नष्ट हो - जाता है। जो कोई भी इस तिथि को तिल दान करेगा वह सब पापों से मुक्त हो जाएगा।

एकादशी के व्रत को खोलने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।

एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत खोलने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत खोलने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातः काल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत खोलने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातः काल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)

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