
कामदा एकादशी व्रत कथा 8 अप्रैल 2025
व्रत की कथा इस प्रकार है:
प्राचीन काल में रत्नपूर नाम का एक नगर था। यह नगर बहुत ही सुंदर, समृद्ध और विशाल था। रत्नपूर पर राजा पुंडरीक का शासन था। राजा बहुत धर्मात्मा था और अपनी प्रजा का हमेशा ध्यान रखता था। उस नगर में गंधर्व, किन्नर, अप्सराएं, सिद्ध तथा चारण आदि निवास करते थे और संगीत, नृत्य व कला में पारंगत थे।
इसी नगर में एक गंधर्व था जिसका नाम ललित था। वह अत्यंत सुंदर, युवा और श्रेष्ठ गायक था। उसकी पत्नी का नाम ललिता था, जो कि बहुत ही सुंदर और पतिव्रता स्त्री थी। दोनों पति-पत्नी एक-दूसरे से अत्यधिक प्रेम करते थे।
एक बार राजा पुंडरीक के दरबार में भव्य संगीत सभा का आयोजन हुआ। ललित भी वहाँ गाने के लिए आमंत्रित किया गया। वह सभा में गया, परंतु उसकी दृष्टि निरंतर अपनी पत्नी ललिता को याद कर रही थी, जिससे उसका मन एकाग्र नहीं हो पाया और वह ठीक से गा नहीं सका। उसकी वाणी में वह माधुर्य नहीं था जो सामान्यतः होता था।
राजा के दरबार में उपस्थित एक नाग नामक गंधर्व को यह बात असहनीय लगी। उसने राजा से कहा, "राजन! ललित आज असावधान और अनुशासनहीन भाव से गा रहा है। यह राजसभा का अपमान है।" राजा ने भी उसकी बात से सहमति जताई और क्रोधित होकर ललित को शाप दे दिया, "हे ललित! तू गंधर्व होते हुए भी अपनी मर्यादा नहीं समझता। अतः तू राक्षस रूप में परिवर्तित हो जा!"
राजा का शाप लगते ही ललित का शरीर भयंकर राक्षस में परिवर्तित हो गया। वह कुरूप, विकराल, दुर्गंधयुक्त और अत्यंत भयावह बन गया। उसके हाथों में नाखूनों जैसे पंजे, लाल नेत्र और मुँह से लपटें निकलने लगीं। वह कराहता हुआ जंगल की ओर चला गया।
उसकी पत्नी ललिता अत्यंत दुःखी हो गई। वह अपने पति के साथ वन-वन भटकने लगी और उसके उद्धार के लिए प्रयत्नशील रही। वर्षों बीत गए, लेकिन उसका शाप नहीं मिटा। वह निरंतर भगवान विष्णु की आराधना करती रही। एक दिन वन में घूमते हुए वह ऋषि श्रृंगी के आश्रम पहुँची।
वह ऋषि को देखकर रो पड़ी और उनसे अपने पति की व्यथा कह सुनाई। ऋषि श्रृंगी करुणामय थे। उन्होंने कहा, “हे साध्वी! तुम भाग्यशालिनी हो जो अपने पति के उद्धार हेतु कष्ट सह रही हो। मैं तुम्हें एक ऐसा व्रत बताता हूँ, जिससे तुम्हारे पति को इस शाप से मुक्ति मिल सकती है।”
ऋषि ने बताया, “चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहते हैं। यह एक अत्यंत प्रभावशाली व्रत है। यदि तुम श्रद्धापूर्वक इस व्रत का पालन करो और उसका पुण्य अपने पति को अर्पण करो, तो निश्चित ही तुम्हारे पति को इस शाप से मुक्ति मिल जाएगी।”
ललिता ने विधिपूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। उसने उपवास रखा, रात भर जागरण किया, भगवान विष्णु की पूजा की और द्वादशी के दिन व्रत का फल अपने पति को समर्पित किया। उसी क्षण दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ और राक्षस रूपी ललित का शरीर पुनः गंधर्व स्वरूप में परिवर्तित हो गया।
उसने ऋषि श्रृंगी, भगवान विष्णु और अपनी पत्नी को धन्यवाद दिया। ललिता के त्याग, प्रेम और श्रद्धा से वह शापमुक्त हो गया। दोनों गंधर्व प्रसन्न होकर आकाश मार्ग से अपने लोक को चले गए।
फलश्रुति (व्रत का महत्व):
व्रत विधि (संक्षेप में):
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व्रत से एक दिन पूर्व (दशमी) को सात्विक भोजन करें और व्रत का संकल्प लें।
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एकादशी के दिन प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
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दिन भर उपवास रखें। फलाहार कर सकते हैं।
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रात्रि को जागरण करें और विष्णु सहस्त्रनाम, भजन-कीर्तन करें।
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द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाकर व्रत का पारण करें।
जो व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण श्रद्धा से करता है, उसकी समस्त कामनाएँ पूर्ण होती हैं और अंततः वह भगवान विष्णु के धाम को प्राप्त करता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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