
अवन्तिपुरीमेंट शिवशर्मा नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण रहते थे, उनके पाँच पुत्र थे। इनमें से जो सबसे छोटा था, वह पापाचारी हो गया था; इसलिए पिता और स्वजनोंने उसे बलिदान दिया। अपने बुरे कर्मो के कारण निर्वासित होकर वह बहुत दूर वनगमन चला गया। दैवोगसे एक दिन वह तीर्थराज प्रयागमें जा रहा है। भूखसे दुर्बल शरीर और दीन मुख के लिए उसने त्रिवेणीमेँ स्नान किया। फिर क्षुधासे पीड़ित होकर वह वहाँ मुनियोंके आश्रम को ढूंढ लिया। उनमें हरिमित्र मुनिका उत्तम आश्रम दिखायी दी। पुरुषोत्तम मासमें वहाँ बहुत - से मनुष्य एकत्रित हुए थे। आश्रमपर पापनाशक कथा कहनेवाले ब्राह्मणोंके मुखसे ने श्रद्धापूर्वक 'कमला' एकादशीकी महिमा सुनी, जो परम पुण्यमयी और भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाली है।जयशर्मने विधिपूर्वक 'कमला' एकादशीकी कथा सुनकर उन सबके साथ मुनिके आश्रमपर ही व्रत किया। जब आधी रात हुई तो भगवती लक्ष्मी उसके पास आकर बोलीं- 'ब्रह्मन्! इस बार 'कमला' एकादशीके व्रतके प्रभावसे मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ और देवाधिदेव श्रीहरिकी आज्ञा पाकर वैकुण्ठधामसे आयी हूँ। मैं तुम्हें वर दूंगी। 'ब्राह्मण बोला - माता लक्ष्मी! यदि आप मुझपर प्रसन्न होते हैं तो वह व्रत बताइये, जिसकी कथा - वार्ताएँ साधु - ब्राह्मण सदा संलग्न रहते हैं।) लक्ष्मीने कहा - ब्राह्मण! एकादशी - व्रत माहात्म्य श्रोतोंके सुनने योग्य श्रेष्ठ विषय है। यह पवित्र वस्तु सबसे उत्तम है। इससे दुःस्वप्नका नाश और पुण्यकी प्राप्ति होती है, अतः इसके यत्नपूर्वक श्रवण करना चाहिए। उत्तम पुरुष श्रद्धासे युक्त हो एक या आधा श्लोकका पाठ करनेसे भी करोड़ों महापातकोंसे तत्काल मुक्त हो जाता है। जैसे मासोंमें पुरुषोत्तम मास, पक्षीगण गरुड़ और नदियों गंगा श्रेष्ठ; उसी प्रकार तिथियों को द्वादशी तिथि उत्तम है। संपूर्ण देवता आज भी [एकादशी व्रतके ही लोभसे] भारतवर्षमे जन्म लेनेकी इच्छा रखते हैं। देवगण सदा ही रोग - शोकसे रहित भगवान् नारायणक पूजन करते हैं। जो लोग मेरे प्रभु भगवान नारायणके नामका सदा भक्तिपूर्वक जप करते हैं, उनके ब्रह्मा आदि देवता सर्वदा पूजा करते हैं। जो लोग श्रीहरिके नाम - जपमेंट संलग्न हैं, उनकी लीला कथाओंके कीर्तनमें तत्पर हैं और निरन्तर श्रीहरिकी पूजामें ही प्रवृत्त रहते हैं, वे मनुष्य कलियुगमें कृतार्थ हैं। अगर दिनमे एकादशी और द्वादशी हो और रात्रि बीतते बीतते त्रयोदशी आ जाय तो उस त्रयोदशीके पारणें सौ यज्ञोंका फल प्राप्त होता है। व्रतकर्ता पुरुष चक्रसुदर्शनधारी देवाधिदेव श्रीविष्णुके समक्ष निम्ननायक मन्त्रका वर्णन करके भक्तिभावसे संतुष्टचित्त होकर उपवासुरे। वह मन्त्र इस प्रकार है वे मनुष्य कलियुगमें कृतार्थ हैं। अगर दिनमे एकादशी और द्वादशी हो और रात्रि बीतते बीतते त्रयोदशी आ जाय तो उस त्रयोदशीके पारणें सौ यज्ञोंका फल प्राप्त होता है। व्रतकर्ता पुरुष चक्रसुदर्शनधारी देवाधिदेव श्रीविष्णुके समक्ष निम्ननायक मन्त्रका वर्णन करके भक्तिभावसे संतुष्टचित्त होकर उपवासुरे। वह मन्त्र इस प्रकार है एकादश्यां निराहार: स्थित्वाहमपरेनिहिणी निर भोक्षमयी पुंडरीकाक्ष शरणं मे भवाच्युत पु (६४.३४) ’कमलनयन! भगवान् अच्युत! मैं एकादशीको निराहार रहकर दूसरे दिन भोजन करूँगा। तुम मुझे बता दो। '
तत्पश्चात व्रत करनेवाला मनुष्य मन और इन्द्रियोंको वशमें करके गीत, वाद्य, नृत्य और पुराण - पाठ आदिके द्वारा रा भगवानों के समक्ष जागरण करे। फिर द्वादशीके दिन उठकर स्नानके पश्चात जितेन्द्रिय भावसे विधिपूर्वक श्रीविष्णुकी पूजा करे। एकादशीको पञ्चमृतसे जनार्दनको नवलाकर द्वादशीको केवल दूध स्नान कराने से श्रीहरिका सायुज्य प्राप्त होता है। पूजा करके भगवानसे इस प्रकार प्रार्थना करे अज्ञानिमिरंगधास व्रतेनानेन केशव। प्रसीद सुमुखो भूत्वा ज्ञानादश्चिप्रदो भव ।। (६४.३ ९) ' केशव! मैं अज्ञानरूपी रतौंधीसेन्द्र हो गया हूँ। आप इस व्रतसे प्रसन्न हों और प्रसन्न होकर मुझे ज्ञान दृष्टि प्रदान करें। इस प्रकार के देवके स्वामी देवाधिदेव भगवान् गदाधरसे निवेदन करके भक्तिपूर्वक ब्राह्मणोंको भोजन कराये और उन्हें दक्षिणा दे। उसके बाद भगवान् नारायणके शरणागत होकर बलिवैश्वदेवकी विधिसे पञ्चमहायज्ञोंका अनुष्ठान द्वारा स्वयं मौन हो अपने बन्धु बान्धवोंके साथ भोजन करे। इस प्रकार जो शुद्ध भावसे पुण्यमय एकादशीका व्रत करता है, वह पुनरावृत्तिसे रहित वैकुण्ठधामको प्राप्त होता है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं - राजन्! ऐसा कहकर लक्ष्मीदेवी उस ब्राह्मणको वरदान दे अन्तर्धान हो गयीं। फिर वह ब्राह्मण भी धनी होकर पिताके घरपर आ गया। इस प्रकार जो 'कमला' का उत्तम व्रत करता है और एकादशीके दिन इसकी माहात्म्य सुनता है, वह सब पापोंसे मुक्त हो जाता है।
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