
'सिद्धार्थी' नामक नव - सम्वत्सर, विक्रमी संवत २०८२ तथा दश-पदाधिकारियों का फल
नव-सम्वत्सर का 30 मार्च 2025 ई. में विक्रमी संवत् २०८२ के बार्हस्पत्यमान (गुरुमान) से शिव (रुद्र) विंशति के अन्तर्गत 'एकादश युग' का तृतीय 'सिद्धार्थी' नामक (सम्वत्सरों में 53वाँ) सम्वत्सर का प्रारम्भ हो चुका होगा। (सिद्धार्थी-संवत्सर का आरम्भ लगभग 15 मार्च, 2025 ई. से हो चुका होगा) [संवत् 2082 मध्ये मेषऽर्के समय संवत्सर के भुक्त मासादि ०/२९/३२/५५", भोग्य मास, दिनादि ११/००८/२७/०५ हैं।] अर्थात् 'सिद्धार्थी' नामक सम्वत्सर का काल लगभग 10 मार्च, 2026 ई. तक रहेगा।
नव विक्रमी संवत् का प्रवेश 29 मार्च, 2025 ई., शनिवार (१६ चैत्र प्रविष्टे), उत्तराभाद्रपद नक्षत्र तथा ब्रह्म योग कालीन सिंह लग्न में होगा। शास्त्र एवं प्रचलित परम्परानुसार नवसंवत् का प्रारम्भ तथा राजा का निर्णय चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के वार-अनुसार ही किया जाता है। 'रविवार' से नवसंवत् का प्रारम्भ होने के कारण आगामी वर्ष (संवत्) का राजा 'सूर्य' होगा। सम्वत्सर का निर्णय भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (संवत् के आरम्भ) में विद्यमान सम्वत्सर को ही लिया जाता है। तद्नुसार 'सिद्धार्थी' नामक नव वि. संवत् 2082 तथा चैत्र (वासन्त) नवरात्रों का प्रारम्भ 30 मार्च, रविवार, 2025 ई. (१७ चैत्र प्रविष्टे), उत्तराभाद्रपद नक्षत्रकालीन होगा।
चैत्र (वासन्त) नवरात्र अर्थात् 30 मार्च, रविवार से जप, पाठ, पूजन, दान, व्रतानुष्ठान यज्ञादि धार्मिक अनुष्ठान कृत्यों के आदि में, संकल्पादि प्रयोग कार्यों में 10 मार्च, 2026 ई. तक 'सिद्धार्थी' नामक नव सवत्सर का प्रयोग होगा। ता. 10 मार्च, 2026 ई. के बाद सभी प्रकार के संकल्प कार्यों में संवतारम्भे 'सिद्धार्थी' परं वर्तमाने 'रौद्र' नाम सम्वत्सरे का - प्रयोग (उच्चारण) करना चाहिए।
'सिद्धार्थी' नामक सम्वत्सर का फल शास्त्रों में इस प्रकार वर्णित है-
सिद्धार्थवत्सरे भूयो-ज्ञान-वैराग्य-युक्त प्रजाः।
सकला-वसुधा-भाति-बहुसस्य-अर्ध-वृष्टिभिः ।।
अर्थात् 'सिद्धार्थी' नामक सम्वत्सर में प्रजा ज्ञान, वैराग्य आदि विषयों में विशेष रुप से रूचि रखेगी तथा धार्मिक आयोजन विशेष रूप से अधिक होंगे। वर्ष में अच्छी-उपयुक्त , वर्षा हो, प्रतिकूल जलवायु के बावजूद अच्छा उत्पादन, शासन-तन्त्र की स्थिरता बनी रहेगी। सम्पूर्ण पृथ्वी पर प्रसन्नता रहे। इस संवत्सर का स्वामी सूर्य है। देश में सुकाल के बावजूद प्रजा असन्तुष्ट रहे। धान्यादि की मांग अधिक रहे। चैत्र में धान्य भाव तेज़ रहे। वैशाख में कुछ मन्दी रहे, वैशाख-ज्येष्ठ में लोगों को पीड़ा और युद्ध-भय हो। भाद्रपद में खण्ड वृष्टि हो, वर्षा कम होगी। आश्विन में रोग पीड़ा और धान्य भाव मध्यम हो। मार्गशीर्ष आदि चार महीनों में राज्य-विरोध, प्रजा में अशान्ति तथा धान्यादि आवश्यक वस्तुओं में तेजी का रुख रहे।
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रोहिणी का वास- वि. संवत् 2082 में मेष संक्रान्ति का प्रवेश 'स्वाति' नक्षत्रकालीन हुआ है। अतएव 'वर्षप्रबोध' ग्रन्थानुसार रोहिणी का वास 'तट' पर होगा। यदि विधिधिष्ण्यपतति तटस्थम्। शुभजल वृष्टिः धन-कण वृद्धि ।।
अर्थात् 'तट' पर रोहिणी का वास होने से आगामी वर्ष उपयोगी एवं उत्तम (अच्छी) वर्षा होने के योग बनते है। फलस्वरूप धान्य, चावल, चने, गन्ने, वृक्ष, घास व अन्य जड़ी-बूटियों, पौधों की पैदावार भी अच्छी होगी। प्रजा में अन्न, धन एवं अन्य सुख-साधनों एवं प्रसाधनों की वृद्धि होगी।
परन्तु गतवर्ष की भान्ति इस वर्ष भी 'मेघमहोदय' अनुसार 'स्वाति' नक्षत्रानुसार वैशाख संक्रान्ति प्रवेश होने से रोहिणी का वास तट की बजाए 'सन्धि' में होगा। रोहिणीवास का निर्णय किसी पंचांग में 'वर्षप्रबोध' और किसी में 'मेघमहोदय' के अनुसार किया जाता है। परिणामस्वरूप इन विभिन्न पंचांगों में रोहिणीवास के आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियों (अतिवृष्टि, अल्पवृष्टि आदि) में प्रायः भारी मतभेद रहता है। पंचांगकारों के लिए यह - गम्भीरता से विचारणीय विषय है। भविष्यवाणी में इस प्रकार का विरोधाभास ज्योतिष शास्त्र को उपहास्पद बनाता है।
मेघमहोदय अनुसार 'सन्धि' पर रोहिणी का वास होने से इस वर्ष देश में खण्डवृष्टि अर्थात् असमान वर्षा होगी। कुछ प्रदेशों/क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा के कारण बाढ़ का प्रकोप प्र हो। कहीं भूस्खलन, अग्निकाण्ड, बादल-विस्फोट आदि के कारण लोगों की क्षति हो, जनस धन-कृषि आदि की हानि तथा कुछ प्रदेशों में बहुत कम वर्षा होने के कारण कहीं सूखा, कहीं अनाज एवं कहीं पेयजल की कमी के कारण जनता में कष्ट बढ़ेगा। सब्ज़ियों, दालों के मूल्यों में विशेष वृद्धि हो।
संवत् (समय) का वास- रोहिणी का वास 'तट' पर होने की स्थिति में सम्वत्सर का वास 'धोबी' (रजक) के घर होगा। फलस्वरूप वर्षा विपुल एवं उत्तम मात्रा में होगी-'रजके वृष्टिरूत्तमा' । धान्य, गेहूँ, चना, ईख, मक्की, हरी, सब्जियों, वृक्षों व फलों का उत्पादन अच्छा होगा। लोगों में सुख एवं ऐश्वर्य के साधन बढ़ेंगे। (कुएँ, तालाब, नदी-नाले, बावड़ियां, दरिया आदि जलापूरित रहेंगे। यथा-
वापी पतडागानि नदी नद वनानि च,
जलपूर्णानि दृश्यन्ते वासो रजके ।।
संवत् (संवत्सर) का वाहन- वि. संवत् 2082 का राजा सूर्य होने से सम्वत् का वाहन 'अश्व' (घोड़ा) होगा, जिससे देश में कहीं बहुत अधिक, कहीं अल्प वर्षा होगी अर्थात् असमान (विषम) वर्षा होगी। कुछ प्रदेशों/क्षेत्रों में अति वर्षा के कारण भूस्खलन, बाढ़, कृषि-हानि, भूकम्प आदि प्राकृतिक प्रकोपों का भय रहेगा। तो कहीं अल्प वर्षा के कारण अकाल, दुर्भिक्ष जन्य परिस्थितियां रहेंगी। राजनीतिक क्षेत्रों में मतभेद तथा अनिश्चितताएं रहेंगी। कहीं उलट-फेर (छत्रभंग) हों। अधिकांश लोग बाह्य आकर्षणों में आसक्त रहें। तापमान में वृद्धि हो।
राजानो विग्रहं यान्ति वृष्टिनाशो महर्घता।
भूमिकम्पो भयं घोरं हयारूढ़े तु वत्सरे ।।
संवत् २०८२ के दश-पदाधिकारियों का फल
वर्ष के राजा 'सूर्य' का फल-
सूर्ये नृपे स्वल्पफलाश्च मेघाः स्वल्पं पयो गौषुजनेषु पीडा।
स्वल्पं सुधान्यं फलं अल्पवृक्षाश्चौराग्नि बाधानिधनं नृपाणाम् ।।
अर्थात् संवत् का राजा सूर्य हो, तो उस वर्ष देश के कुछ क्षेत्रों में समयानुसार एवं उपयोगी वर्षा की कमी रहे। गाय-भैंस आदि चौपाय दूध कम देंगे। सामान्य लोगों में दुःख, विग्रह, कलह-क्लेश एवं कष्टादि अधिक हों। धान्य, गन्ना आदि फसलों, वृक्षों पर फल, फूलादि मौसमी फलों का उत्पादन कम हो। प्रशासकों/राजनेताओं में परस्पर टकराव एवं विरोध अधिक रहे। चोरी, ठगी, डकैती, लूटमार, रेलयान, वाहन, अग्निकाण्ड की वारदातें अधिक होंगी। कट्टरवाद एवं साम्प्रदायिक उपद्रव की घटनाएँ अधिक होंगी। लोगों में क्रोध, उत्तेजना, कलह, विचित्र तथा नेत्र सम्बन्धी गम्भीर रोगों की अधिकता रहे। राजसिक प्रवृत्तियां अधिक बढ़ें। किसी विशिष्ट राजकीय नेता के आकस्मिक निधन होने से देश में शोक व्याप्त हो।
अन्य संहिता ग्रन्थानुसार-
तीक्ष्णोऽर्क : स्वल्पसस्यश्च गतमेघेऽतितस्करः ।
बहूरग-व्याधिगणो भास्कराब्दो-रणाकुलः ।।
अर्थात् संवत्सर का राजा सूर्य होने से वर्ष में कृषि, फल, औषधी एवं अन्य सभी उत्पादन कम होते हैं। प्रतिकूल एवं बेमौसमी वर्षा से खड़ी फसलों की हानि होती है। तस्करों, चोरों, पाखण्डियों, अपराधियों व लूटेरों का प्रभुत्व बढ़ेगा। विचित्र एवं असाध्य रोगों का प्रसार व भय, अग्निकाण्ड तथा सीमाप्रान्तों में उग्रवादियों द्वारा छद्म युद्ध में घातक अस्त्रशास्त्रों का खुला प्रयोग हो। राजनीतिक पार्टियों में विरोध व मतभेद चरम सीमा तक पहुँच जाएगा। जंगलों में आग द्वारा वन्य सम्पदा की हानि, शिशिर ऋतु में भी कम सर्दी तथा - साल में गर्मी में अधिक वृद्धि होगी। जंगली जानवरों या रेंगने वाले जीवों का बस्तियों में - प्रवेश हो, सदाचारी लोगों को कष्ट एवं बाढ़/दुर्भिक्ष आदि विपरीत परिस्थितियों में पशु-धन - की हानि आदि फल इस संवत्-काल में घटित होंगे।
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सम्वत् के मन्त्री 'सूर्य' का फल-
'नृपभयं गदतोऽपि हि तस्करात् प्रचुर धान्यधनादि महीतले।
रसचयं हि समर्घतमं तदा रवि रमात्यपदं हि समागतः ।।'
अर्थात् जिस वर्ष सूर्यदेव को मन्त्री पद प्राप्त हो, उस वर्ष राजाओं को भय अर्थात् प्रशासकों व राजनीतिक पार्टियों में परस्पर विरोध एवं टकराव बढ़े (केन्द्र व राज्य सरकारों में मतभेद रहेंगे)। पृथ्वी पर धन-धान्यादि सुख-साधनों का प्रसार अधिक बढ़े, परन्तु साथ - ही साथ कठोर सरकारी नीतियों व गतिविधियों, चोर-लुटेरों के कारण प्रजा में भय, विक्षोभव असन्तोष भी रहे। क्लिष्ट एवं पेचीदा रोगों के आधिक्य से जनता में अराजकता अनुभव करें। पेयजल, गुड़, दूध, तैल, ईख, फल, सब्ज़ियाँ, चीनी इत्यादि रसदार वस्तुओं की कमी एवं उनमें समर्घता (तेजी) हो। अन्य जनोपयोगी वस्तुओं के मूल्यों में भी तेजी होगी।
राजा और मन्त्री पद-एक ही ग्रह 'सूर्यदेव' को-
इस वर्ष राजा और मन्त्री के दोनों पद 'सूर्यदेव' के पास है। जिस वर्ष राजा और मन्त्री के पद एक ही ग्रह के पास हो, तो उस वर्ष विभिन्न देशों के राजनेता निरकुंश, स्वार्थपूर्ण एवं मनमाना आचरण करेंगे। अग्निकाण्ड, भूकम्प, बाढ़ादि प्राकृतिक प्रकोप तथा साम्प्रदायिक हिंसा एवं जातीय उपद्रव अधिक होंगे। कहीं वर्षा में कमी और जलवायु में उष्णता (गर्मी) अधिक रहे। लोगों में क्रोध और आवेश के कारण हिंसक घटनाएं अधिक होंगी। सत्तारूढ़ राजनेताओं एवं विपक्षी नेताओं के मध्य टकराव एवं आरोप-प्रत्यारोप अधिक होंगे। अनाज, फलों, सब्तियों व धान्यादि की पैदावार कम होगी। चोरी, डकैती, लूटमार, अग्निकाण्ड एवं लोगों में क्लिष्ट रोग, तनाव एवं नेत्र, रक्त-पित्तजन्य रोग अधिक होंगे। अनाजादि में तेजी के कारण व्यापारी लोग अच्छा मुनाफा उठाएंगे।
'स्वयं राजा स्वयं मन्त्री जनेषु रोगपीड़ा चौराग्नि,
शंका-विग्रह-भयं च नृपाणाम् ।।'
सस्येश 'बुध' का फल-
'जलधरा जलराशिमुचो भृशं सुखसमृद्धियुतं निरुपद्रवम् ।
द्विजगणाः स्तुतिपाठरताः सदा प्रथमसस्यपतौ सति बोधने ।।'
अर्थात् सस्येश (ग्रीष्मकालीन फसलों का स्वामी) बुध हो, तो देश में वर्षा अधिक हो, लोगों में सुख-समृद्धि का वातावरण रहे, परन्तु महँगाई एवं खर्च भी बढ़ेंगे। सामाजिक स्थिति भी शान्तिपूर्ण रहे। बुद्धिजीवि वर्ग द्वारा शासन-तन्त्र की प्रशंसा हो, आतंक एवं उपद्रव की घटनाओं में अपेक्षाकृत कमी हो। ब्राह्मण लोग (द्विजगण) वेदाध्ययन, हवनादि धार्मिक कार्यों में प्रवृत्त होंगे। बुद्धिजीवि लोग अध्ययन-अध्यापनादि कार्यों में प्रवृत्त होंगे। उच्च-तकनीकि विद्याओं की ओर लोगों का रुझान बढ़ेगा।
धान्येश 'चन्द्र' का फल-
'चन्द्रे धान्याधिपे जाते प्रजावृद्धिः प्रजायते ।
गोधूमा सर्षपाश्चैव गोषुक्षीरं तदाबहु ।।'
अर्थात् धान्य (शीतकालीन फसलों का स्वामी) का स्वामी 'चन्द्रमा' हो, तो उस वर्ष जनसंख्या में विशेष वृद्धि होती है। शीतकालीन फसलों जैसे-कपास, चना, सोयाबीन, सरसों, गेहूँ, अन्य धान्य आदि तथा गोदुग्ध/गोघृत के उत्पादन में विशेष वृद्धि होगी। श्रेष्ठ एवं उपयोगी वर्षा, धरती पर नदियों, तालाबों में जल-स्तर ठीक रहे तथा लोगों में उत्साह बना रहता है।
मेघेश 'सूर्य' का फल-
'जलदपे यदिवासरपे तदा सरसि वै रमते जनतारसम् ।
यव चणेक्षु-निवार सुशालिभिः सुखचयं सुलभं भुविवर्तते ।।'
अर्थात् मेघेश (वर्षा का स्वामी) सूर्य होने से गेहूँ, जौं, चने, ईख, बाजरा, नीवारू, चावल, मूँग की पैदावार अच्छी होगी। पृथ्वी पर सुख-ऐश्वर्य के विविध प्रकार के साधनों का विस्तार होगा। दूध, गुड़, शक्कर, चावल, ईखादि की पैदावार कम हो, कई स्थानों पर नदी, नालों में जलस्तर कम हो। उपयोगी वर्षा की कमी रहे। जनता भय, ढोंग, पाखण्ड से परेशान रहे।
रसेश 'शुक्र' का फल-
'यजन-याजनकोत्सव कोत्सुका जनपदा जलतोषित मानसाः ।
सुख-सुभिक्ष सुमोदवती धरा धरणिपा हत पाप गणप्रियाः ।।'
अर्थात् 'शुक्र' रसेश हो, तो लोग यज्ञ, याजन एवं विविध मांगलिक उत्सवादि करने में उत्सुक रहें। कहीं अनुकूल वर्षा होने से लोग किंचित् प्रसन्न एवं सन्तुष्ट हों। पृथ्वी पर सुभिक्ष, सम्पन्नता एवं सुख-साधनों में वृद्धि हो। मौसमी मेवाजात और कृषि आदि की पैदावार अच्छी हो। शासन लोग लोक-कल्याण के कार्यों में प्रवृत्त हो।
नीरसेश 'बुध' का फल-
'चित्र वस्त्रादिकं चैव शंख-चन्दन-पूर्वकम्।
अर्घवृद्धिः प्रजायेत नीरसेशो बुधो यदि ।।'
अर्थात् 'बुध' नीरसेश (ठोस धातु पदार्थों का स्वामी) हो, तो विभिन्न वर्ण के (रंग-बिरंगे) सुन्दर वस्त्र, शंख, चन्दनादि लकड़ी और हीरा, मोती, पुखराज, पन्ना और जवाहरात तेज भाव होंगे तथा सोना, चाँदी, लोहा, ताँबा आदि धातुओं के भावों में भी विशेष तेजी होगी।
फलेश (फलों का स्वामी) 'शनि' का फल-
'यदि शनिः फलपः फलहा भवेत् जनित पुष्पगणस्य दमः सदा।
हिमभयं वरतस्कर जन्तुभीः जनपदो गदराशि महाकुलः ।।'
अर्थात् फलों का स्वामी शनि हो, तो फलदार वृक्षों पर फलों एवं पुष्पों के उत्पादन में कमी हो। पर्वतीय (पहाड़ी) क्षेत्रों में कहीं प्रतिकूल वर्षा एवं असामयिक बाढ़ादि के कारण हानि हो। चोरी, ठगी, बेईमानी व भ्रष्टाचार की घटनाएँ अधिक हों। पर्वतीय प्रदेशों में कहीं असमय हिमपात (बर्फबारी) से हानि हो। प्रदूषण, श्वास एवं पेचीदा रोगों के कारण अधिकांश लोग दुःखी रहें। शहरों में जनसंख्या का भारी दबाव रहे।
धनेश 'मंगल' का फल-
'धरणिजे धननायकतां गते शरदि ताम्रकरास्तुष-धान्यहा ।
सकल-देश-जनाश्चलितास्तदा नरपतिर्नर-शोकविधायकः ।।'
जिस वर्ष धनपति (कोशपति) मंगल हो, तो उस वर्ष थोक व्यापारिक वस्तुओं के सूचकांक (मूल्यों) में विशेष उतार-चढ़ाव हों अर्थात् व्यापार में अस्थिरता रहे। शेयर एवं वायदा बाज़ार में अस्थिरता का माहौल रहे। माघ मास में वर्षा न होने अथवा असमय (बेमौसमी) वर्षा होने से गेहूँ आदि भूसे से प्राप्त होने वाले अनाजों का कम उत्पादन होता है। सारे देश में अस्थिरता एवं अनिश्चितता का माहौल रहता है। शासन एवं प्रशासन की अधिकांश नीतियां साधारण प्रजा के दुःखों एवं कष्टों का कारण बनेंगी।
दुर्गेश (सेना का स्वामी) 'शनि' का फल-
'रविसुते गढपालिनी विग्रहे सकलदेशगताश्चलिता जनाः।
विविधवैरि-विशेषित-नागरा कृषिधनं शलभैर्मुषितं भुवि ।।'
दुर्गेश अर्थात् सेनापति शनि हो, तो अनेक देशों में आन्तरिक दंगों, फिसाद एवं युद्धमय वातावरण से फैली अराजकता से आतंकित लोग अपना निज (निवास) स्थान छोड़कर अन्यत्र पलायन करने के लिए विवश हो जाएंगे। प्रान्तों में विभिन्न समुदाय के लोगों में जातीय एवं साम्प्रदायिक झगड़े-फिसाद तथा टकराव की घटनाएं अधिक होंगी तथा वातावरणि अशान्त रहे। कहीं चूहों, विषाक्त कीटाणुओं, टिड्डियों, अनावृष्टि, अतिवृष्टि आदि प्राकृतिक ' आपदाओं से कृषि, खड़ी फसलों को भारी हानि हो। (विशेषकर भाद्रपद-आश्विन मासों में)
नोट- वर्ष के उपरोक्त दशाधिकारियों का फल यद्यपि सर्वत्र होता है। परन्तु राजा का फल विशेष रुप से काश्मीर, बंगाल, चीन, तिब्बत एवं हिमाचल, उ.खण्ड के निकटवर्ती क्षेत्र, मन्त्री का फल आन्ध्र प्रदेश, मालवा, उज्जैन आदि मध्य-प्रदेशों में विशेष रूप से होता है। वैसे सामान्यतः राजा एवं मन्त्री का फल देश के प्रायः सभी क्षेत्रों में होता है।
चतुर्मेघ फल विचार- आवर्तकादि चतुर्मेघों में 'संवर्त' नामक मेघ है।
फल- 'संवर्ते जलपूरणम्' - वाक्यानुसार वर्षभर पर्याप्त एवं समयानुसार अनुकूल वर्षा होगी। साधारण जनता व्यक्तिगत या पारिवारिक कार्यों में अधिक व्यस्त रहें तथा धार्मिक/सामाजिक कार्यों में रुचि कम रखेंगे। कहीं कुछ प्रदेशों में बाढ़, वायु-वेग, तूफान आदि से खड़ी फसलों को हानि भी सम्भव है। लोग काम-वासनाओं में अधिक आसक्त रहें।
नवमेघों में 'नील' नामक मेघ का फल-
'सत्पयोदिशति गोकुलपूर्णा वस्त्रताखिल महीपरिपूर्णा ।
नीलनाम्नि जलदे जलवृष्टिः जायते सकल मानव-तुष्टिः ।।'
अर्थात्- इस संवत्सर में 'नील' नामक मेघ होने से फल-फूलों, घास, गन्ना, गाय आदि सभी चौपाय पशु/रस/दूध पर्याप्त मात्रा में देंगे। रूई, कपास, वस्त्रों आदि का उत्पादन भी अधिक हो। वर्षा भी अच्छी होगी, लोगों में सुख-सुविधाओं की वस्तुओं का प्रसार अधिक हो। कृषक वर्ग एवं सर्वसाधारण जनता सन्तुष्ट रहें।
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द्वादश नागों में 'वासुकी' नामक नाग का फल-
'उदेतियत्र वत्सरेस वासुकिः भुजङ्गमः ।
प्रभूतन्धान्य-दायकः सुवृष्टिकारकस्तथा ।।'
अर्थात् जिस वर्ष 'वासुकी' नाम का नाग प्रकट हो, तो उस वर्ष देश में धन-धान्य की समृद्धि रहे। देश के कुछ क्षेत्रों में उत्तम एवं उपयगी वर्षा हो, परन्तु अच्छी वर्षा से कुछ प्रान्तों में बाढ़ से हानि भी होगी। धान्य, ईख, गेहूँ आदि की फसलों का उत्पादन अच्छा होगा।
सिद्धार्थी नामक नव संवत्सर, विक्रम संवत् 2082, 30 मार्च 2025 से आरंभ हो रहा है। इस संवत्सर के राजा और मंत्री दोनों सूर्य देव होंगे, जो शक्ति, ऊर्जा और नेतृत्व के प्रतीक हैं। इस वर्ष की कुंडली सिंह लग्न की है, जिसमें सूर्य, चंद्रमा, बुध, शुक्र और राहु अष्टम भाव में स्थित हैं।
नीचे 12 राशियों के लिए सिद्धार्थी संवत्सर 2025 का विस्तृत फल दिया गया है:
मेष राशि (Aries): इस वर्ष मेष राशि के जातकों को करियर में नए अवसर मिलेंगे। नौकरीपेशा लोगों को प्रमोशन या नई जिम्मेदारियाँ मिल सकती हैं। व्यापारियों के लिए निवेश के अच्छे अवसर उत्पन्न होंगे। स्वास्थ्य का ध्यान रखें और नियमित व्यायाम करें।
वृषभ राशि (Taurus): वृषभ राशि के जातकों के लिए यह वर्ष मिश्रित फलदायी रहेगा। शनि की दृष्टि के कारण मेहनत अधिक करनी पड़ सकती है, लेकिन सफलता अवश्य मिलेगी। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और परिवार में सुख-शांति बनी रहेगी।
मिथुन राशि (Gemini): मिथुन राशि के जातकों के लिए यह संवत्सर शुभ संकेत दे रहा है। शनि की कृपा से करियर में उन्नति के अवसर मिलेंगे। नौकरी बदलने की सोच रहे लोगों को सफलता मिल सकती है। पारिवारिक संबंधों में मधुरता आएगी, विशेषकर पिता के साथ।
कर्क राशि (Cancer): कर्क राशि के जातकों को इस वर्ष धैर्य और संयम से काम लेना होगा। आर्थिक मामलों में सतर्क रहें और अनावश्यक खर्चों से बचें। करियर में स्थिरता बनी रहेगी, लेकिन नए अवसरों के लिए प्रयास जारी रखें। स्वास्थ्य संबंधी छोटी-मोटी परेशानियाँ हो सकती हैं।
सिंह राशि (Leo): सिंह राशि के जातकों के लिए यह वर्ष अनुकूल रहेगा। नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होगी और समाज में मान-सम्मान बढ़ेगा। आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और निवेश से लाभ मिलेगा। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा, लेकिन खानपान पर ध्यान दें।
कन्या राशि (Virgo): कन्या राशि के जातकों के लिए यह संवत्सर शुभ रहेगा। शनि की दृष्टि के बावजूद मेहनत का पूरा फल मिलेगा। विद्यार्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता मिलने के योग हैं। पारिवारिक जीवन सुखमय रहेगा और रिश्तों में मजबूती आएगी।
तुला राशि (Libra): तुला राशि के जातकों को इस वर्ष संतुलन बनाए रखना होगा। करियर में स्थिरता रहेगी, लेकिन नए अवसरों के लिए सतर्क रहें। आर्थिक मामलों में सोच-समझकर निर्णय लें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें और नियमित जांच कराते रहें।
वृश्चिक राशि (Scorpio): वृश्चिक राशि के जातकों के लिए यह वर्ष चुनौतीपूर्ण हो सकता है। करियर में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, लेकिन मेहनत से सफलता मिलेगी। आर्थिक मामलों में सतर्क रहें और निवेश से पहले अच्छी तरह विचार करें। स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही न बरतें।
धनु राशि (Sagittarius): धनु राशि के जातकों के लिए यह संवत्सर शुभ रहेगा। हालांकि ढैय्या का प्रभाव रहेगा, लेकिन गुरु की शुभ दृष्टि से कठिनाइयों के बावजूद सफलता मिलेगी। नए लोगों से संपर्क बनेंगे, जो करियर में मददगार साबित होंगे। कानूनी मामलों में सफलता के योग हैं।
मकर राशि (Capricorn): मकर राशि के जातकों के लिए यह वर्ष सकारात्मक परिवर्तन लेकर आएगा। शनि की साढ़ेसाती का अंतिम चरण आरंभ होगा, जिससे पुराने अटके हुए काम पूरे होंगे। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और नए अवसर मिलेंगे। स्वास्थ्य उत्तम रहेगा।
कुंभ राशि (Aquarius): कुंभ राशि के जातकों के लिए यह संवत्सर विशेष रूप से लाभदायक रहेगा। शनि की साढ़ेसाती का अंतिम चरण रहेगा, जिससे पुराने अटके हुए काम पूरे होंगे। आर्थिक स्थिति में सुधार होगा और नए अवसर मिलेंगे। धार्मिक कार्यों में रुचि बढ़ेगी और समाज में मान-सम्मान मिलेगा।
मीन राशि (Pisces): मीन राशि के जातकों के लिए यह वर्ष मिश्रित फलदायी रहेगा। करियर में स्थिरता रहेगी, लेकिन नए अवसरों के लिए प्रयास जारी रखें। आर्थिक मामलों में सोच-समझकर निर्णय लें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें और नियमित जांच कराते रहें।
कृपया ध्यान दें कि ये भविष्यवाणियाँ सामान्य हैं और व्यक्तिगत फलादेश के लिए कुंडली का विस्तृत अध्ययन आवश्यक है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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