हरिप्रबोधिनी एकादशी व्रत 25 नवंबर 2020
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हरिप्रबोधिनी एकादशी व्रत द्वादशी तिथि की वृद्धि हो जाने पर स्मार्त गृहस्थी ) द्वादशीयुक्ता एकादशी वाले दिन और वैष्णव सम्प्रदाय वाले षष्टिघटयात्मक ( ६० घड़ी ) द्वादशी के दिन व्रत करते हैं । दशमी तिथि द्वारा अरुणोदय के वेध और अवेध - दोनों स्थितियों में यह नियम इसी प्रकार होगा।
इस स्थिति में नारद , माधव और हेमाद्रि के वचनों में परस्पर विरोधाभास है अत्रशुद्धत्वात्स्मार्तानाम् एकादश्यामेवोपवासो न द्वादश्यामिति ॥ ' ( माधव ) -यहाँ माधव मतानुसार स्मार्तों का व्रत द्वादशीयुता एकादशी वाले दिन और वैष्णवों का व्रत षष्ठिघटयात्मक ( ६० घड़ी ) द्वादशी वाले दिन होना चाहिए , जबकि हेमाद्रि , पदमपुराण नारद के मतानुसार स्मार्तों ( गृहस्थियों ) और वैष्णवों ( सन्यासी , विधवा आदि सम्प्रदाय वालों - दोनों का व्रत षष्टिघट्यात्मक द्वादशी के दिन होना चाहिए । ' सर्वत्रैकादशी कार्या द्वादशीमिश्रिताः नरैः ॥ ' ( पद्मपुराण ) मार्कण्डेय के वचनानुसार भी सन्देह होने पर द्वादशी में ही उपवास करें - ' संधिग्धेषु च वाक्येषु द्वादशी समुपोषयेत् ॥ ' तथा ' विवादेषु च सर्वेषु द्वादश्यां समुपोषणम् ॥ ' पारणं च त्रयोदशयामाज्ञेयं । परन्तु यहाँ माधव के मत को ही अधिक अधिमान्यता दी गई है । इस वर्ष कार्तिक शुक्ल द्वादशी की वृद्धि हुई है । यह 26 नवम्बर , 2020 ई . को अहोरात्र व्यापिनी है । इसलिए उपरोक्त माधव - मतानुसार हरिप्रबोधिनी एकादशी स्मार्तों ( गृहस्थियों ) हेतु 25 नवम्बर , बुधवार को मनाई जाएगी|
तुलसी विवाह 25 नवंबर 2020
तुलसी विवाह कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की हरि बोधिनी एकादशी के दिन मनाया जाता है इस वर्ष तुलसी विवाह 25 नवंबर बुधवार के दिन मनाया जाएगा| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जो लोग कन्या सुख से वंचित होते हैं यदि वे इस दिन भगवान शालिग्राम से तुलसी का विवाह करें तो उन्हें कन्यादान के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है|
इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है
पौराणिक कथा के अनुसार एक बार माता तुलसी ने विष्णु जी को गुस्से में आकर श्राप दे दिया था जिसके कारण भगवान विष्णु पत्थर बन गए थे इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए विष्णु जी ने शालिग्राम का अवतार लिया इसके बाद भगवान विष्णु ने माता तुलसी से विवाह किया ऐसा कहा जाता है कि मां लक्ष्मी का अवतार माता तुलसी जी हैं|
तुलसी विवाह पूजन विधि
तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे के चारों और मंडप बनाया जाता है फिर तुलसी के पौधे को एक लाल चुनरी अर्पित की जाती है साथ ही सभी श्रृंगार की चीजें भी अर्पित की जाती हैं इसके बाद गणेश जी और शालिग्राम भगवान की पूजा अर्चना की जाती है शालिग्राम भगवान की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी के साथ सात परिक्रमा कराएं परिक्रमा उपरांत आरती करें और विवाह मांगलिक गीत अवश्य गाए|
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