काल भैरव अष्टमी तिथि निर्णय
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kaal-bhairav |
मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी
तिथि को श्रीभैरव - जयन्ती ( कालाष्टमी / कालभैरवाष्टमी ) मनाई जाती है । इस तिथि
के निर्णय सम्बन्धी दो मत प्रचलित हैं । प्रथम मतानुसार इसे मध्याह्न - व्यापिनी
और दूसरे मतानुसार प्रदोषव्यापिनी मार्ग . कृष्ण अष्टमी को मनाना चाहिए।
धर्मसिन्धु अनुसार - यदि
अष्टमी पहिले दिन केवल प्रदोषव्यापिनी और दूसरे दिन केवल मध्याह्न - व्यापिनी हो , तो अधिकांश
ग्रन्थों के अनुसार पहिले दिन प्रदोषव्यापिनी अष्टमी वाले दिन यह पर्व मनाना चाहिए।
यथा - 'पूर्वत्र प्रदोषव्याप्तिरेव परत्र मध्याह्न एव
तदा बहुशिष्टाचार अनुरोधात्प्रदोषगा पूर्वैव।।' (धर्मसिन्धुः)
इसवर्ष काल भैरव अष्टमी 5 दिसम्बर 2023 को मनाई जाएगी।
काल भैरव जयंती का महत्व
काल भैरव जयंती काल भैरव
अष्टमी के नाम से भी जानी जाती है मान्यता है कि जो व्यक्ति काल भैरव जयंती के दिन
का काल भैरव जी का विधि विधान से पूजा अर्चना करता है भैरव जी उससे से प्रसन्न हो
जाते हैं|
भैरव जी की पूजा अर्चना
करने से भूत प्रेत ऊपरी बाधाएं आदि जैसी समस्याओं का निवारण हो जाता है हिंदू धर्म
में काल भैरव जी की पूजा अर्चना करने का विशेष महत्व है काल भैरव को भगवान शिवजी
के स्वरूप माने जाते हैं|
काल भैरव जी को प्रसन्न करने के लिए एवं भैरव जी की कृपा प्राप्त करने के लिए भैरव अष्टमी के दिन भैरव भगवान जी की प्रतिमा के सामने सरसों के तेल का चौमुखा दीपक जलाना चाहिए भैरव जी को रोट का भोग अवश्य लगाना चाहिए। इस दिन प्रातः काल जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए भगवान काल भैरव को काले तिल, उड़द और सरसों का तेल अर्पित करना चाहिए साथ ही मंत्रों के साथ विधि विधान से पूजा अर्चना करने से भगवान काल भैरव प्रसन्न हो जाते हैं और उनकी कृपा होती है|
पौराणिक कथा के अनुसार भैरव जी की उत्पत्ति
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार ब्रह्मा विष्णु महेश में स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने को लेकर बहस हो गई बहस के बीच में ब्रह्मा जी ने भगवान शिवजी का अघोर निंदा की इससे भगवान शिवजी अत्यंत क्रोधित हो गए और उन्होंने रौद्र रूप धारण करके थोड़ी जटा निकाल कर शिला पर फेंकी जिससे काल भैरव प्रकट हो गए|
काल भैरव ने ब्रह्मा जी से लिया अपमान का बदला
क्रोध में आकर भगवान शिव ने अपने रौद्र रूप से काल भैरव को जन्म दिया। काल भैरव ने भगवान के अपमान का बदला लेने के लिए अपने नाखून से ब्रह्माजी के उस पांचवा सिर को काट दिया जिससे उन्होंने भगवान शिव की निंदा की थी। इस कारण से उन पर ब्रह्रा हत्या का पाप लग गया।
ब्रह्म हत्या के पाप से ऐसे मिली मुक्ती
ब्रह्रा हत्या के पाप से मुक्ति के लिए भगवान शिव ने काल भैरव को पृथ्वी पर जाकर प्रायश्चित करने को कहा और बताया कि जब ब्रह्रमा जी का कटा हुआ सिर हाथ से गिर जाएगा उसी समय से ब्रह्रा हत्या के पाप से मुक्ति मिल जाएगी। अंत में जाकर काशी में काल भैरव की यात्रा समाप्त हुई थी और फिर यहीं पर स्थापित हो गए और शहर के कोतवाल कहलाए।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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