आषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी 27 जून 2021 को इस दिन की जाती है गणेशजी के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा अर्चना

संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश जी को समर्पित है हिंदू पंचांग के अनुसार हर
महीने में दो चतुर्थी तिथि होती है पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की
चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं इस बार यह व्रत 27 जून 2021 को किया जाएगा इस दिन भगवान गणेश जी और चंद्र देव की उपासना करने का विधान
है ऐसा करने से हर प्रकार की समस्याओं परेशानियां और संकट से बचा जा सकता है।
आषाढ़ महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना और व्रत करना चाहिए इस व्रत में गणेश जी के कृष्णपिंगाक्ष रूप की पूजा की जाती है गणेश पुराण में आषाढ़ महीने की संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में बताएं यह है कि इस व्रत का पूरा फल कथा पढ़ने पर ही मिलता है।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा
प्राचीन काल में रंतिदेव नामक प्रतापी राजा थे उनकी उन्हीं के राज्य में धर्मकेतु नामक ब्राह्मण की दो स्त्रियां थी एक का नाम सुशीला और दूसरे का नाम चंचला था सुशीला नृत्य करती थी जिससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था वही चंचला कभी कोई व्रत उपवास नहीं करती थी । सुशीला को सुंदर कन्या हुई और चंचला को पुत्र प्राप्ति हुई यह देखकर चंचला सुशीला को ताना देने लगी कि इतने व्रत उपवास करके शरीर को जर्जर कर दिया फिर भी कन्या को जन्म दिया मैंने कोई व्रत नहीं किया तो भी मुझे पुत्र प्राप्त हुई।
चंचला के व्यंग से सुशीला दुखी रहती थी और गणेश जी की उपासना करने लगी
जब उसने संकटनाशक गणेश चतुर्थी का व्रत किया तो रात में गणेश जी ने उसे दर्शन दिए
और कहा कि मैं तुम्हारी साधना से संतुष्ट हूं वरदान देता हूं कि तेरी कन्या के मुख
से निरंतर मोती और मूंगा प्रभावित होते रहेंगे।
तुम सदा प्रसन्न रहोगे तुम्हें वेद शास्त्रों का ज्ञाता पुत्र भी प्राप्त होगा और वरदान के बाद से ही कन्या के मुख से मोती और मूंगा निकलने लगे कुछ दिनों के बाद एक पुत्र भी हुआ। बाद में उनके पति धर्मकेतु का स्वर्गवास हो गया उनकी मृत्यु के बाद चंचला घर का सारा धन लेकर दूसरे घर में रहने लगी लेकिन सुशीला पति गृह में रहकर ही पुत्र और पुत्री का पालन पोषण करने लगी। इसके बाद सुशीला के पास कम समय म ही बहुत सारा धन हो गया जिससे चंचला को उससे ईर्ष्या होने लगी एक दिन चंचला ने सुशीला की कन्या को कुएं में धकेल दिया।
लेकिन गणेश जी ने उनकी रक्षा की और वह सकुशल अपनी माता के पास आ गई उस
कन्या को देखकर चंचला को अपने किए हुए पर बहुत दुःख हुआ और उसने सुशीला से माफी
मांगी इसके बाद चंचला ने भी कष्ट निवारक संकटनाशक गणेश चतुर्थी जी के व्रत को किया।
व्रत का महत्व
चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन को बहुत ही शुभ माना जाता है चंद्रोदय के बाद ही व्रत पूर्ण किया जाता है। मान्यता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसकी संतान संबंधी समस्त समस्याओं का निवारण हो जाता है अपयश और बदनामी के योग कट जाते हैं हर तरह के कार्यों की बाधा दूर हो जाती है धन तथा कर्ज संबंधी समस्याओं का समाधान भी हो जाता है।
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