Type Here to Get Search Results !

उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला 16 जुलाई 2022

 उत्तराखंड का लोक पर्व हरेला 16 जुलाई 2021

उत्तराखंड पहाड़ी संस्कृति और यहां के त्यौहारों की बात ही निराली होती है हरेला एक हिन्दू  त्यौहार है उत्तराखंड में सुख समृद्धि, पर्यावरण संरक्षण और प्रेम का प्रतीक हरेला लोक पर्व मूल रूप से उत्तराखंड कुमाऊं क्षेत्र में बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है इस वर्ष यह पर्व (कर्क संक्रांति) 16 जुलाई 2021 को मनाया जाएगा।

हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है

1- चैत्र मास में - प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है ।

2- श्रावण मास में - सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है ।

3- आश्विन मास में - आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है ।

चैत्र व आश्विन मास में बोया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव के सूचक है। चैत्र मास में बोया / काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है, तो आश्विन मास की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है।

लेकिन श्रावण मास में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊँ में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है । जैसाकि हम सभी को विदित है कि श्रावण मास भगवान भोलेशंकर का प्रिय मास है , इसलिए हरेले के इस पर्व को कही कही हर - काली के नाम से भी जाना जाता है । क्योंकि श्रावण मास शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है यह तो सर्वविदित ही है कि उत्तराखण्ड एक पहाड़ी प्रदेश है और पहाड़ों पर ही भगवान शंकर का वास माना जाता है। इसलिए भी उत्तराखण्ड में श्रावण मास में पड़ने वाले हरेला का अधिक महत्व है।

हमारी अधिकतम जानकारी के अनुसार हरेला पर्व उत्तराखंड के अतिरिक्त हिमाचल प्रदेश में भी हरियाली पर्व के रूप में मनाया जाता। हरियाली या हरेला शब्द पर्यावरण के काफी करीब है। ऐसे में इस दिन सांस्कृतिक आयोजन के साथ ही पौधारोपण भी किया जाता है। जिसमें लोग अपने परिवेश में विभिन्न प्रकार के छायादार व फलदार पौधे रोपते हैं।

सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में हरेला बोने के लिए किसी थालीनुमा पात्र या टोकरी का चयन किया जाता है । इसमें मिट्टी डालकर गेहूँ , जौ , धान , गहत , भट्ट , उड़द , सरसों आदि 5 या 7 प्रकार के बीजों को बो दिया जाता है । नौ दिनों तक इस पात्र में रोज सुबह को पानी छिड़कते रहते हैं दसवें दिन इसे काटा जाता है । 4 से 6 इंच लम्बे इन पौधों को ही हरेला कहा जाता है । घर के सदस्य इन्हें बहुत आदर के साथ अपने शीश पर रखते हैं । घर में सुख - समृद्धि के प्रतीक के रूप में हरेला बोया व काटा जाता है ! इसके मूल में यह मान्यता निहित है कि हरेला जितना बड़ा होगा उतनी ही फसल बढ़िया होगी ! साथ ही प्रभू से फसल अच्छी होने की कामना भी की जाती है।

हरेला गीत

इस दिन कुमाऊँनी भाषा में गीत गाते हुए छोटों को आशीर्वाद दिया जाता है-

जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,

दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,

हिमाल में यूं छन तक,

गंग ज्यू में पांणि छन तक, यो दिन और यो मास भेट रये,

अगासाक चार उकाव , धरती चार चकाव है जये,

स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad