
इन्दिरा एकादशी व्रत 21 सितम्बर 2022
युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन् ! अब आप कृपा पूर्वक आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी की कथा को कहिये । इस एकादशी का नाम क्या है तथा इस एकादशी के व्रत करने से कौन से फल मिलते हैं ? यह सब समझाकर कहिये ।
इस पर श्री कृष्ण भगवान् बोले कि हे राजन् ! आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम इन्दिरा है । इस एकादशी के व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं । इस व्रत के करने से नरक में गये हुए पितरों का उद्धार हो जाता है । हे राजन् ! इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही बाजपेय यज्ञ का फल मिलता है । प्राचीन सतयुग में महिष्मती नाम की नगरी में इन्द्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा राज्य करता था । वह पुत्र , पौत्र , धन - धान्य आदि से पूर्ण और सदैव शत्रुओं का नाश करने वाला था । एक समय जबकि राजा अपनी राज सभा में सुख पूर्वक बैठा था , महर्षि नारद आकाश मार्ग से उतर कर वहाँ आये । नारदजी को देखकर राजा आसन से उठा और अर्घ्य आदि से उनकी पूजा करके आसन दिया । महर्षि नारद बोले कि हे राजन् ! आपके राज्य में सब कुशल से तो है । मैं आपकी धर्म परायणता देखकर अत्यन्त प्रसन्न हूँ ।
तब राजा बोला - हे महर्षि ! आपकी कृपा से मेरे राज्य में सब कुशल पूर्वक है तथा आपकी कृपा से मेरे समस्त यज्ञ कर्म आदि सफल हो गये हैं । हे देव ! अब आपकी क्या आज्ञा है । इस पर नारद जी बोले कि हे राजन् ! मुझे एक महान आश्चर्य हो रहा है कि एक समय जब मैं ब्रह्मलोक से यमलोक गया था उस समय यमराज की सभा के मध्य में तुम्हारे पिता को बैठे देखा । तुम्हारा पिता महान् ज्ञानी , दानी तथा धर्मात्मा था । वह एकादशी के व्रत के बिगड़ जाने से यमलोक को गया है । तुम्हारे पिता ने मुझ से तुम्हारे लिये एक समाचार भेजा है कि आप मेरे पुत्र के पास जायें । मेरे पुत्र का नाम इन्द्रसेन है , जो कि महिष्मती नाम की नगरी में राज्य करता है । मुझे किसी पूर्व जन्म के बुरे कर्म के कारण ही यह लोक मिला है ।
यदि मेरा पुत्र इन्द्रसेन , आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की इन्दिरा एकादशी का व्रत करे और उस व्रत के फल को मुझे दे दे तो मेरी मुक्ति हो जाय । इस लोक से छूटकर स्वर्गलोक में वास करूँ । जब राजा ने महर्षि नारद जी से पिता के ऐसे दुःख पूर्ण वाक्यों को सुना तो उसे महान् दुःख हुआ और इन्दिरा एकादशी के व्रत की विधि पूछने लगा कि हे नारदजी ! अब आप मुझे इस एकादशी के व्रत की विधि बतलाइये ।
इस पर नारद जी बोले कि हे राजन् ! आश्विन मास की कृष्णपक्ष की दशमी के दिन प्रातःकाल श्रद्धासहित स्नान करना चाहिये । इसके पश्चात् दोपहर को भी स्नान करना चाहिये । उस समय जल से निकल कर श्रद्धा पूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और उस दिन एक समय भोजन करें और रात्रि को पृथ्वी पर शयन करें । इसके दूसरे दिन अर्थात् एकादशी के दिन प्रातःकाल दातुन करे और स्नान करे । उसके पश्चात् भक्तिपूर्वक व्रत को धारण करे और कहना चाहिये कि मैं आज निराहार रहूँगा और समस्त भोगों को त्याग दूंगा । इसके पश्चात् कल भोजन करूंगा । हे भगवान् ! आप मेरी रक्षा करने वाले हैं । आप मेरे व्रत को सम्पूर्ण कराइये , इस प्रकार आचरण करके दोपहर को सालिगरामजी की मूर्ति को स्थापित करे और उत्तम ब्राह्मण को बुलाकर भोजन करायें और दक्षिणा दे । भोजन में से कुछ हिस्से को गौ को दे और विष्णु भगवान की धूप , दीप , नैवेद्य आदि से पूजा करे और रात्रि को जागरण करे । इसके उपरान्त द्वादशी के दिन मौन होकर बन्धु - बान्धवों सहित भोजन करे । हे राजन् ! यह इन्दिरा एकादशी के व्रत की विधि है ।
हे राजन् ! यदि तुम आलस्य रहित होकर इस एकादशी के व्रत को करोगे तो तुम्हारे पिताजी अवश्य ही स्वर्ग जायेंगे । महर्षि नारद राजा को सब उपदेश देकर अन्तर्ध्यान हो गये । राजा ने इन्दिरा एकादशी के आने पर उसका विधि पूर्वक व्रत किया । बन्धु - बान्धव सहित इस व्रत के करने से आकाश से पुष्पों की वर्षा हुई और राजा का पिता यमलोक से रथ पर चढ़कर स्वर्ग को गया । राजा इन्द्रसेन भी इस एकादशी के प्रभाव से इस लोक में सुख भोग कर अन्त में स्वर्ग लोक को गया ।
श्री कृष्ण भगवान कहने लगे कि , धर्मराज युधिष्ठिर ! यह मैंने तुम्हारे सामने इन्दिरा एकादशी का महास्य वर्णन किया । इस कथा के पढ़ने व सुनने मात्र से ही समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में मनुष्य स्वर्ग लोक में जाकर वास करता है ।





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