ज्येष्ठ पूर्णिमा वट सावित्री व्रत 3 जून 2023
वट सावित्री पूर्णिमा पूजा विधि :- वट सावित्री पूर्णिमा व्रत में वट यानि बरगद के वृक्ष के साथ - साथ सत्यवान सावित्रि और यमराज की पूजा की जाती है । माना जाता है कि वटवृक्ष ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनों देव वास करते हैं । अतः वट वृक्ष के समक्ष बैठकर पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं । वट सावित्री व्रत के दिन सुहागिन स्त्रियों को प्रातःकाल उठकर स्नान करना चाहिये । इसके बाद रेत से भरी एक बांस की टोकरी लें और उसमें ब्रहमदेव की मूर्ति के साथ सावित्री की मूर्ति स्थापित करें । इसी प्रकार दूस टोकरी में सत्यवान और सावित्री की मूर्तियाँ स्थापित करे । दोनों टोकरियों को वट के वृक्ष के नीचे रखे और ब्रहमदेव और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करें । तत्पश्चात सत्यवान और सावित्री की मूर्तियों की पूजा करें और वट वृक्ष को जल दे । वट वृक्ष की पूजा हेतु जल , फूल रोली - मौली कच्चा सूत , भीगा चना , गुड़ इत्यादि चढ़ाएं और . जलाभिषेक करे।
जहां उत्तर भारत में में भक्त ज्येष्ठ अमावस्या के दिन उपवास का पालन करते हैं, वहीं दक्षिण भारत में, लोग ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन व्रत रखते हैं। वट सावित्री व्रत में विवाहित महिलाएं व्रत रखने से साथ वट सावित्री व्रत कथा का श्रवण करती हैं और इसके बाद पूरे विधि विधान से वट वृक्ष का पूजन करती हैं।
वट सावित्री पूर्णिमा व्रत एक ऐसा व्रत जिसमें हिंदू धर्म में आस्था रखने वाली स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र और संतान प्राप्ति की कामना करती हैं उत्तर भारत में तो यह व्रत काफी लोकप्रिय है । इस व्रत की तिथि को लेकर पौराणिक ग्रंथों में भी भिन्न - भिन्न मत मिलते है । दरअसल इस व्रत को ज्येष्ठ माह की अमावस्या और इसी मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है । एक और जहां निर्णयामृत के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को किया जाता है तो वहीं स्कंद पुराण एवं भविष्योत्तर पुराण इसे ज्येषठ पूर्णिमा पर करने का निर्देश देते हैं वट सावित्री पूर्णिमा व्रत दक्षिण भारत में किया जाता है , वहीं वट सावित्री अमावस्या व्रत उत्तर भारत में विशेष रूप से किया जाता है आइये जानते हैं क्या है वट सावित्रि व्रत की कथा और क्या है इस पर्व महत्व
महत्व :-
जैसा कि इसकी कथा से ही ज्ञात होता है कि यह पर्व हर परिस्थिति में अपने जीवनसाथी का साथ देने का संदेश देता है । इससे ज्ञात होता कि पतिव्रता स्त्री में इतनी ताकत होती है कि वह यमराज से भी अपने पति के प्राण वापस ला सकती है । वहीं सास - ससुर की सेवा और पत्नी धर्म की सीख भी इस पर्व से मिलती है । मान्यता है कि इस दिन सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु , स्वास्थ्य और उन्नति और संतान प्राप्ति के लिये यह व्रत रखती हैं ।
वट सावित्री व्रत कथा :-
वट सावित्रि कथा सत्यवान सावित्रि के नाम से उत्तर भारत में विशेष रूप से प्रचलित हैं । कथा के अनुसार एक समय की बात कि मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था । उनकी कोई भी संतान नहीं थी । राजा ने संतान हेतु यज्ञ करवाया । कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन्होंने सावित्री रखा । विवाह योग्य होने पर सावित्री के लिए युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पतिरूप में वरण किया । सत्यवान वैसे तो राजा का पुत्र था लेकिन उनका राज - पाट छिन गया था और अब वह बहुत ही दरिद्रता जीवन जी रहे थे । उसके माता पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी । सत्यवान जंगल से लकड़ियों काटकर लाता और उन्हें बेचकर जैसे - तैसे अपना गुजारा कर रहा था जब सावित्रि और सत्यवान विवाह की बात चली तो नारद मुनि ने सावित्रि के पिता राजा अश्वपति बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष बाद ही उनकी मृत्यु हो जाएगी । हालांकि राजा अश्वपति सत्यवान देखकर पहले ही चिंतित थे और सावित्रि को समझाने की कोशिश में लगे थे । नारद की बात ने उन्हें और चिंता में डाल दिया लेकिन सावित्रि ने एक न सुनी और अपने निर्णय पर अडिग रही अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया । सावित्री सास - ससुर और पति की सेवा में लगी रही नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु का जो दिन बताया था , उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को चली गई । वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी और वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया । कुछ देर बाद उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे जब यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे , पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी । आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा , ' हे पतिव्रता नारी ! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है , तुमने अपने पति का साथ दे दिया । अब तुम लौट जाओ । ' इस पर सावित्री ने कहा , जहां तक मेरे पति जाएंगे , वहां तक मुझे जाना चाहिए । यही सनातन सत्य है । " 1 यमराज सावित्री की वाणी सुनकर मांगने को कहा सावित्री ने कहा , ' मेरे सास - ससुर अंधे हैं , उन्हें नेत्र ज्योति दें ' यमराज ने ' तथास्तु ' कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे । किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही । यमराज ने प्रसन्न होकर पुनः वर मांगने को कहा , सावित्री ने वर मांगा , ' मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए ' यमराज ने ' तथास्तु ' कहकर पुनः उसे लौट जाने को कहा , परंतु सावित्री अपनी बात पर अटल रही और वापस नहीं गयी सावित्री की पति भक्ति देखकर यमराज पिघल गए और उन्होंने सावित्री से एक और वर मांगने के लिए कहा , तब सावित्री वर मांगा , मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूँ कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें । ' सावित्री की पति - भक्ति से प्रसन्न हो इस अंतिम वरदान को देते हुए यमराज ने सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया और अदृश्य हो गए । सावित्री जब उसी वट वृक्ष के पास आई तो उसने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है । कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया । सत्यवान के माता - पिता की आंखें भी ठीक हो गई और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
👉 "पूजा पाठ, ग्रह अनुष्ठान, शादी विवाह, पार्थिव शिव पूजन, रुद्राभिषेक, ग्रह प्रवेश, वास्तु शांति, पितृदोष, कालसर्पदोष निवारण इत्यादि के लिए सम्पर्क करें वैदिक ब्राह्मण ज्योतिषाचार्य दिनेश पाण्डेय जी से मोबाइल नम्वर - +919410305042, +919411315042"
आपकी अमूल्य टिप्पणियों हमें उत्साह और ऊर्जा प्रदान करती हैं आपके विचारों और मार्गदर्शन का हम सदैव स्वागत करते हैं, कृपया एक टिप्पणी जरूर लिखें :-