परम एकादशी व्रत 12 अगस्त 2023 (अधिक मास कृष्ण पक्ष)
एक बार युधिष्ठिर महाराजने भगवान श्रीकृष्ण को पूछा, "हे भगवान! अधिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है ? इस एकादशी व्रत को कैसे करना चाहिए। इस बारे में आप विस्तारसे कहिए।'
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन! इस एकादशी का नाम 'परम' है। यह एकादशी भुक्ती तथा मुक्ति देनेवाली है। अन्य एकादशी जैसेही इस एकादशी को करना चाहिए। इस दिन व्रतधारी व्यक्ति को सभी का पालन करनेवाले भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। कांपिल्य नगर के ऋषिद्वारा सुनी हुई कथा मैं आपको कहता हूँ, वह सुनिए।"
"सुमेध नामक एक पवित्र ब्राह्मण था । वो अपने पवित्रा नामक पतिव्रता पत्नी के साथ कांपिल्य नगरमें रहता था। गत जन्मों में किए गए पापकर्म के कारण वह बहुत दरिद्र था। उसे भिक्षा भी नही मिलती। इसलिए उसे खाने के लिए अन्न, वस्त्र और सोने के लिए जगह का अभाव था। परंतु उसके सुंदर पत्नीने बहुत ही श्रद्धासे उसकी सेवा की बहुत बार अतीथी की सेवा करते हुए वह स्वयं भूखी रहती । फिर भी उसने अपने पतिको कुछ न कहा ।
दिन-ब-दिन कमजोर हो रही अपने पत्नी को देखकर ब्राह्मण स्वयं को धिक्कारने लगा और अपनी पत्नी से कहा, “प्रिये ! बडे बडे लोगों के पास भिक्षा माँगकर भी, मुझे कुछ प्राप्त नही होता। क्या मुझे परदेस जाकर धन प्राप्त करना चाहिए ? शायद जो मेरे नसीब में होगा वह मुझे प्राप्त होगा। उत्साह के बिना कौनसा भी कार्य सिद्ध नही होता। इसलिए विद्वान, मनुष्य लोगों के उत्साह की प्रशंसा करते है।"
सुमेधके कथन के पश्चात उसकी पत्नी पवित्रा ने कहा, “आप जैसा बुद्धिमान यहाँ पर कोई नहीं है। इस विश्व में हर एक को जो भी प्राप्त होता है, वो उसके पूर्वजन्म के कर्मोंके अनुसार पूर्व जन्म में पुण्यकर्म नही होंगे तो कितने भी कठोर परिश्रम से भी जितना प्राप्त होना है उतनाही मिलेगा। पूर्व जन्म में अगर किसीने ज्ञान और धन दान किया होगा तो ही इस जन्म में उसे ज्ञान अथवा धन प्राप्त होता है। हे द्विजवर ! मुझे तो लगता है कि पूर्वजन्म में आपने और मैंने कोई पूण्य ही नही किए है, जिससे इस जन्म में हमारी यह परिस्थिती है। हे स्वामी! मैं आपके सिवा एक पल के लिए भी नहीं रह सकती अगर मैं यहाँ रहूँ, तो सभी लोग मेरा धिक्कार करेंगे। इसीलिए इधर आपको जो कुछ भी प्राप्त होता है उसमें ही हम सुखसे गुजारा कर लेंगे। इस नगर में ही निश्चित ही आपको सुख की प्राप्ति होगी।"
पत्नी का कथन सुनकर ब्राह्मणने परदेश जानेका विचार त्याग कर दिया। दैवयोग से एक दिन कौडिण्य ऋषि वहाँपर आए। उन्हें देखकर सुमेध और उनकी पत्नी ने आनंदित होकर प्रणाम किया। उन्हें आसन देकर योग्य प्रकारसे उनकी पूजा की। सुमेधने कहा, “ऋषिवर! आपके दर्शनसे हमारा जीवन धन्य हो गया।" अपनी क्षमता के अनुसार उन्होंने ऋषि को भोजन दिया। उसके पश्चात पवित्रा ने उनको पूछा, "मुनिवर! दरिद्रता कैसे दूर होगी? धन प्राप्ति के लिए मेरे पति परदेस जा रहे थे, मैंने उन्हे जाने के लिए मना किया है। निश्चित ही यह हमारा सौभाग्य है कि आज आप यहाँ आए है। कृपया ऐसा कोई उपाय बताइये कि जिससे हमारी दरिद्रता दूर हो जाए।"
पवित्रा की बात सुनकर कौंडिण्य ऋषिने कहा, “बहुत ही मंगल करनेवाली यह एकादशी अधिक मास के कृष्ण पक्ष में आती है और उसका नाम परम है। इसका सबसे पहले पालन कुबेरने किया था जिससे भगवान शिवजी उनपर प्रसन्न हुए थे और उन्होंने उसे ऐश्वर्य प्राप्त करनेका वर प्रदान किया। राजा हरिश्चंद्र ने भी इसी व्रतका पालन करके अपनी पत्नी, संतान और राज्य को पुनः प्राप्त किया। इसीलिए हे सुंदरी तुम भी इस व्रतका पालन करो। "
भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "हे पांडु पुत्र ! परम एकादशी के विषय के पश्चात कौण्डिण्य मुनिने पंचरात्री व्रत के बारे में कहा। पंचरात्री व्रत का पालन करनेसे मुक्ति प्राप्त होती है। परम एकादशी के दिन से ही पंचरात्री व्रत का पालन करने के लिए शुरुवात करनी चाहिए। जो भी पाँच दिन इस व्रत का पालन करता है वह अपने माता-पिता के साथ वैकुंठ लोक को प्राप्त करता है।"
कौण्डिण्य ऋषिके कहे अनुसार पति-पत्नीने इस व्रत का पालन किया। पंचरात्री व्रत के पालन से ब्रह्मदेव की प्रेरणा से राजकुमार उनके घर आया और उन्हे सुविधाएँ उपलब्ध है ऐसा घर दिया। साथ ही गाय भी ब्राह्मण को दान में दी। इस कृत्य से राजकुमार को भी मृत्यु के पश्चात वैकुंठ प्राप्त हुआ।
जिस प्रकार मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ है, चतुष्पाद प्राणियों में गाय, देवताओं में इंद्र उसी प्रकार सभी मास में अधिक मास श्रेष्ठ है। इस महीने की पद्मिनी और परम ये दोनों एकादशी भगवान् हरिको बहोत ही प्रिय है मानव देह प्राप्त करके भी कोई भी एकादशी व्रत का पालन नहीं करता तो उसे ८४ लाख योनी में सुख प्राप्त नही होता। केवल उसे दुख ही प्राप्त होता है। पूर्व जन्म के पुण्य से ही मनुष्य देह की प्राप्ति होती है। इसीलिए हर एक को अवश्य ही एकादशी व्रत का पालन करना चाहिए। यह सुनकर पांडवोंने अपनी पत्नी सहित इस पवित्र एकादशी के व्रत का पालन किया।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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