पद्मिनी एकादशी व्रत 29 जुलाई 2023 (अधिक मास शुक्ल पक्ष)
युधिष्ठिर महाराजने पूछा, "हे जनार्दन ! अधिक मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है? इस एकादशीका पालन कैसे करना चाहिए और इस व्रतके पालन से प्राप्त होनेवाले फल के बारे में कृपया आप विस्तार वर्णन करे।
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "हे राजन! इस पवित्र एकादशी का नाम 'पद्मिनी' है। जो भी इस व्रत का पालन करता है उसे पद्मनाभ भगवान्के धामकी प्राप्ति होती है। इस के पालन से सभी पापोंका नाश होता है। ब्रह्मदेव भी इस एकादशी की महिमा कहने में असमर्थ है। यह एकादशी बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। बहुत पहले ब्रह्मदेवने नारदको व्रत धारण करनेवाले को ऐश्वर्य व मुक्ति प्रदान करनेवाली पद्मिनी एकादशी का महात्म्य बताया था।
दशमी के दिन से ही इस व्रत का पालन करना चाहिए। दूसरोंके द्वारा बनाए हुए अन्न का सेवन वर्जित है। काँस के बर्तन में पकाया हुआ अन्न नहीं खाना चाहिए। उबले चावल, घी और सेंदा हुआ मक्खन नही खाना चाहिए। धरतीपर चटाई बिछाके सोना चाहिए और ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
एकादशी के दिन प्रातः काल को उठकर स्नान करना चाहिए। भगवान को चंदन, पुष्प, धूप, दीप, कर्पूर और जल अर्पण करना चाहिए। भगवान् के नाम का जप करना चाहिए कौनसा भी प्रजल्प नहीं करे। अधिक मास में आनेवाली एकादशीको किसीने भी जल अथवा दूध प्राशन किया तो उसके व्रत का खंडन होता है। रातभर जागरण करके भगवान् के नाम, रूप और गुणका वर्णन करना चाहिए। रात के पहले प्रहर तक जागरण करनेसे अग्निष्टोम यज्ञ करने के फल की प्राप्ति होती है। दूसरे प्रहर तक जागरण करने से वाजपेय यज्ञ का फल,रात्रि के तीन प्रहर तक जागरण करने से अश्वमेध यज्ञ करने का फल तथा पूरी रात जागरण करनेसे राजसूय यज्ञ करनेका पुण्य प्राप्त होता है। द्वादशी के दिन वैष्णवोंको अथवा ब्राह्मणोंको अन्नदान करके व्रत पूर्ण करना चाहिए। इस प्रकार से जो भी इस व्रतका पालन करता है उसे निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है।
हे अनघ! आपकी जिज्ञासानुसार मैंने इस व्रत का विधि महात्म्य बताया। बहुत पहले पुलत्स्य ऋषिद्वारा नारदमुनि को बताई गयी सुंदर कथा सुनो।
एक बार कार्तवियर्जुनने रावण को पकड़कर बंदी बनाया। यह देखकर पुलत्स्य मुनी कार्तवीर्यार्जुनके पास जाकर रावण को छुडवाकर लेके आए। यह सुनकर नारदने पुलत्स्य मुनिकों नम्रतासे पूछा, “हे मुनिवर! जिस रावणने सभी देवताओंको पराजित किया, फिर ऐसे बलवान रावणको कार्तवीर्यार्जुनने कैसे कैद किया? कृपया इस विषय में आप बताएं।'
पुलत्स्य मुनिने कहा, "हे नारद! त्रेयायुग में हैहय कुल में जन्मा हुआ कार्तवीर्य नामक एक राजा था। महिष्मतीपुरी उसकी राजधानी थी। उसे सहस्र रानीयाँ थी। परंतु राज्य योग्य तरीके से संभाले, ऐसा एक भी पुत्र नही था। राजाने सभी व्रतोंका पालन किया था, साधुओं की सेवा की थी फिर भी उसे पुत्रप्राप्ति नही हुई। अपने राज्य की सारी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री को सौंपकर राजा तपस्या करने के लिए घने वन में चले गए। राजभवन छोड़ते समय उनकी रानी पद्मिनी ने उन्हें देखा। वो इक्ष्वाकु वंशके हरिश्चंद्र राजा की पुत्री थी। अपने पतिको तपस्या के लिए जाता हुआ देखकर उसने अपने आभूषणों को त्याग दिया और अपने पति के साथ मंदार पर्वतपर चली गई।
कार्तवीर्य और पद्मिनीने मंदार पर्वत के शिखरपर दस सहस्र वर्ष तक कठोर तपस्या की। अपने पति का क्षीण शरीर को देखकर पद्मिनीने सती अनुसूया को पूछा, "हे पतिव्रते! दस सहस्र वर्ष तपस्या करने के पश्चात भी मेरे पति को भगवान् केशव प्रसन्न नही हुए। कृपया मुझे आप ऐसा व्रत बताए कि जिसके पालनसे भगवान केशव प्रसन्न होकर पुत्र दे जो एक पराक्रमी राजा बने महाराणी पद्मिनी की बातों से सती अनुसूया प्रसन्न हुई और उसने कहा, "हर ३३ महिनों के पश्चात अधिक मास आता है। इस महिनमें दो एकादशीयाँ आती है। पद्मिनी और परम; इस एकादशी के व्रत पालनसे भगवान तुरंत प्रसन्न हो जाएंगे और तुम्हारी सभी इच्छाएँ पूरी हो जाएंगी।"
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "अनुसूया के कहे अनुसार महाराणी पद्मिनी ने इस व्रत का पालन किया। इससे केशव गरुडपर बैठकर वहाँ आए और उन्होंने पद्मिनी को वर माँगने का आदेश दिया। प्रथम रानीने भगवान् को वंदन किया और प्रार्थना करने लगी। उसके बाद उन्होंने पुत्रप्राप्ति के लिए भगवान् से विनती की। भगवान्ने कहा, "हे साध्वी! मैं तुमपर बहुत प्रसन्न हूँ । अधिक मास के इतना कौनसा भी मास मुझे प्रिय नहीं है। इस मास की एकादशी भी मुझे बहुत प्रिय है। तुमने मुझे प्रसन्न किया है, इसलिए निश्चित ही तुम्हारे पति की इच्छा मै पूर्ण करूँगा।"
पद्मिनी से वार्तालाप के पश्चात भगवान् कार्तवीर्य के पास आए और उन्होंने कहा, "तुम्हारी पत्नी ने एकादशी व्रत का पालन किया है इससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। इसलिए जो तुम्हारी इच्छा है वो माँगो।" राजा को बहुत ही प्रसन्नता हुई। 'हमेशा विजय प्राप्त करनेवाला बलवान पुत्र' राजाने भगवान् के पास मांगा। उन्होंने कहा, "हे मधुसूदन ! देवता, मनुष्य, नाग, राक्षस इनसे कभी भी पराजित न होनेवाला पुत्र मुझे आप दीजिए।' इस वर को देकर भगवान् केशव वहाँ से अंतर्धान हो गए।
पहले जैसा अपना शरीर प्राप्त करके राजा-रानी अपने ऐश्वर्य संपन्न राजधानी को लौट आए। थोडे समय के बाद पद्मिनीने बहुत ही पराक्रमी पुत्रको जन्म दिया जिसका नाम जिसका कार्तवीर्य अर्जुन हुआ। उसके जैसा पराक्रमी योद्धा इस विश्व में कोई भी नही था। दशमुखी रावणकों भी उसने पराजित किया था। इस सुंदर कथा को कहकर पुलत्स्य मुनिने वहाँसे प्रस्थान किया।
भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "हे अनघ ! इस प्रकारसे मैंने आपको अधिक मास में आनेवाली एकादशी का महात्म्य कहा है। जो कोई भी इस व्रतका पालन करता है। उसे निश्चित ही वैकुंठ की प्राप्ति होती है।"
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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