मकर संक्रान्ति पर्व 15 जनवरी 2024
मकर संक्रान्ति भारत का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते है तभी इस पर्व को मनाया जाता है। वर्तमान शताब्दी में यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है, इस दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करते है मकर संक्रान्ति पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायण भी कहते हैं। 15 जनवरी के बाद से सूर्य उत्तर दिशा की ओर अग्रसर होता है। इसी लिऐ इसेउतरायण (सूर्य उत्तर की ओर) भी कहते है। ऐसा इस लिए होता है, पृथ्वी का झुकाव हर 6 माह तक निरंतर उतर ओर 6 माह दक्षिण की ओर बदलता रहता है यह प्राकृतिक प्रक्रिया है।
मकर संक्रान्ति पुण्य काल मुहूर्त 15 जनवरी 2024
मकर संक्रान्ति पुण्य काल - 07:07 AM से 05:34 PM
अवधि - 10 घण्टे 27 मिनट्स
मकर संक्रान्ति महा पुण्य काल - 07:07 AM से 08:52 AM
अवधि - 01 घण्टा 44 मिनट्स
मकर संक्रांति 15 जनवरी 2024 पूजा विधि
मकर संक्रांति के दिन करें ये उपाय
ज्योतिष मान्यताओं के अनुसार, मकर संक्रांति
के दिन सूर्य देव को अर्घ्य देना बेहद शुभ होता है। इस दिन तांबे के लोटे में जल
लेकर उसमें काला तिल, गुड़, लाल चंदन, लाल पुष्प, अक्षत आदि डालें और फिर 'ॐ सूर्याय नम:' मंत्र का जाप
करते हुए सूर्य को अर्घ्य दें।
मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।
उत्तराखंड
में मकर संक्रांति
पर्व
देवभूमि उत्तराखंड में इस मुख्य पर्व मकर सक्रांति को घुघुतिया त्योहार के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं में मकर संक्रांति पर 'घुघुतिया' के नाम एक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार की अपनी अलग ही पहचान है। त्योहार का मुख्य आकर्षण कौवा है। बच्चे इस दिन बनाए गए घुघुते कौवे को खिलाकर कहते हैं- 'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'।
इस त्योहार के संबंध में एक प्रचलित कथा के अनुसार बात उन दिनों की है,
जब कुमाऊं में
चन्द्र वंश के राजा राज करते थे। राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। उनका कोई
उत्तराधिकारी भी नहीं था। उनका मंत्री सोचता था कि राजा के बाद राज्य मुझे ही मिलेगा। एक बार राजा
कल्याण चंद सपत्नीक बाघनाथ मंदिर में गए और संतान के लिए प्रार्थना की। बाघनाथ की
कृपा से उनका एक बेटा हो गया जिसका नाम निर्भयचंद पड़ा। निर्भय को उसकी मां प्यार
से 'घुघुति' के नाम से बुलाया
करती थी। घुघुति के गले में एक मोती की माला थी जिसमें घुंघुरू लगे हुए थे। इस
माला को पहनकर घुघुति बहुत खुश रहता था। जब वह किसी बात पर जिद करता तो उसकी मां
उससे कहती कि जिद न कर, नहीं तो मैं माला कौवे को दे दूंगी।
उसको डराने के लिए कहती कि 'काले कौवा काले
घुघुति माला खा ले'। यह सुनकर कई बार कौवा आ जाता जिसको देखकर
घुघुति जिद छोड़ देता। जब मां के बुलाने पर कौवे आ जाते तो वह उनको कोई चीज खाने को
दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की कौवों के साथ दोस्ती हो गई।
उधर मंत्री, जो राजपाट की उम्मीद लगाए बैठा था, घुघुति को मारने की सोचने लगा ताकि उसी को राजगद्दी मिले। मंत्री ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था, तब वह उसे चुप-चाप उठाकर ले गया।
जब वह घुघुति को जंगल की ओर लेकर जा रहा था, तो एक कौवे ने उसे देख लिया और जोर-जोर से कांव-कांव करने लगा। उसकी आवाज
सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा और अपनी माला को उतारकर दिखाने लगा।
इतने में सभी कौवे इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों पर मंडराने लगे। एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपटकर ले गया। सभी कौवों ने एकसाथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच और पंजों से हमला बोल दिया। मंत्री और उसके साथी घबराकर वहां से भाग खड़े हुए।
घुघुति जंगल में अकेला रह गया। वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया तथा सभी कौवे भी
उसी पेड़ में बैठ गए। जो कौवा हार लेकर गया था, वह सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांगकर जोर-जोर से बोलने लगा।
जब लोगों की नजरें उस पर पड़ीं तो उसने घुघुति की माला घुघुति की मां के सामने डाल दी। माला सभी ने पहचान ली। इसके बाद कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा। सबने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है।
राजा और उसके घुडसवार कौवे के पीछे लग गए। कौवा आगे-आगे और घुड़सवार पीछे-पीछे। कुछ दूर जाकर कौवा एक पेड़ पर बैठ गया।
राजा ने देखा कि पेड़ के नीचे उसका बेटा सोया हुआ है। उसने बेटे को उठाया, गले से लगाया और घर को लौट आया। घर लौटने पर
जैसे घुघुति की मां के प्राण लौट आए। मां ने घुघुति की माला दिखाकर कहा कि आज यह
माला नहीं होती तो घुघुति जिंदा नहीं रहता।
राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्युदंड दे दिया। घुघुति के मिल जाने पर मां ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान अपने दोस्त कौवों को बुलाकर खिला दे। घुघुति ने कौवों को बुलाकर खाना खिलाया। यह बात धीरे-धीरे सारे कुमाऊं में फैल गई और इसने बच्चों के त्योहार का रूप ले लिया। तब से हर साल इस दिन धूमधाम से इस त्योहार को मनाते हैं। इसके लिए हमारे यहां एक कहावत भी मशहूर है कि श्राद्धों में ब्राह्मण और उत्तरायनी को कौवे मुश्किल से मिलते हैं।
मीठे आटे से यह पकवान बनाया जाता है जिसे 'घुघुत' नाम दिया गया है। इसकी माला बनाकर बच्चे मकर संक्रांति के दिन अपने गले में डालकर कौवे को बुलाते हैं और कहते हैं -
'काले कौवा काले घुघुति माला खा ले'।
'लै कौवा भात में कै दे सुनक थात'।
'लै कौवा लगड़ में कै दे भैबनों दगड़'।
'लै कौवा बौड़ मेंकै दे सुनौक घ्वड़'।
'लै कौवा क्वे मेंकै दे भली भली ज्वे'।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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