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नहाय-खाय के साथ आज 17 नवंबर से छठ पूजा शुरू, जानिए इस पर्व का महत्व

 छठ पूजा  20  नवंबर 2023

आस्था का महापर्व छठ पूजा हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस बार षष्ठी तिथि 20 नवंबर 2023 को है। छठ पूजा बिहार और झारखंड के निवासियों का प्रमुख त्योहार लेकिन इसका उत्सव पूरे उत्तर भारत में देखने को मिलता है। सूर्य उपासना के इस पर्व को प्रकृति प्रेम और प्रकृति पूजा का सबसे उदाहरण भी माना जाता है।


चार दिन तक चलने वाले छठ पूजा पर्व पर यूपी, बिहार और झारखंड में जबरदस्त उत्सव और उत्साह का महौल देखने को मिलता है। इस बार कोरोना महामारी का प्रकोप होने के चलते कई सार्वजनिक कार्यक्रमों में पाबंदियां लगी हुई हैं। इसके बादजूद भी लोगों का जुनून और आस्था कम होती नहीं दिख रही।

छठ पूजा का पहला दिन: नहाय-खाय- 17 नवंबर, शुक्रवार 

छठ पूजा का दूसरा दिन: खरना - 18 नवंबर, शनिवार 

छठ पूजा का तीसरा दिन: छठ पूजा, संध्या अर्घ्य- 19 नवंबर, रविवार 

छठ पूजा का चौथा दिन: उषा अर्घ्य - 20 नवंबर, सोमवार


कब है नहाय-खाय

छठ पूजा की शुरुआत षष्ठी तिथि से दो दिन पूर्व चतुर्थी से हो जाती है। चतुर्थी को नहाय-खाय होता है। नहाय-खाय के दिन लोग घर की साफ- सफाई / पवित्र करके पूरे दिन सात्विक आहार लेते हैं। इसके बाद पंचमी तिथि को खरना शुरू होता है जिसमे व्रती को दिन में व्रत करके शाम को सात्विक आहार जैसे- गुड़ की खीर / कद्दू की खीर आदि लेना होता है। पंचमी को खरना के साथ लोहंडा भी होता है जो सात्विक आहार से जुड़ा है।

षष्ठी को रखते हैं निर्जला व्रत

छठ पूजा के दिन षष्ठी को व्रती को निर्जला व्रत रखना होता है। यह व्रत खरना के दिन शाम से शुरू होता है। छठ यानी षष्ठी तिथि के दिन शाम को डूबते सूर्य को अर्घ देकर अगले दिन सप्तमी को सुबह उगते सूर्य का इंतजार करना होता है। सप्तमी को उगते सूर्य को अर्घ देने के साथ ही करीब 36 घंटे चलने वाला निर्जला व्रत समाप्त होता है। छठ पूजा का व्रत करने वालों का मानना है कि पूरी श्रद्धा के साथ छठी मइया की पूजा-उपासना करने वालों की मनोकामना पूरी होती है।


छठ व्रत पूजन का महत्व

छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है। इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती हैं। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। जिसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम माना गया है। इस व्रत को 36 घंटों तक निर्जला रखा जाता है।


छठ पूजा व्रत / विधि

कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं।

घाट पर ईख का घर बनाकर बड़ा दीपक जलाया जाता है। व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए रात्रभर जागरण किया जाता है। जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं। सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचें। इस दौरान अपने साथ पकवानों की टोकरियां, नारियल और फल भी रखें।


छठ पूजा की सामग्री

प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई

प्रसाद : ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।

फल सब्जी : टोकरी में नई फल सब्जियां भी रखी जाती हैं जैसे कि केला, अनानास, सेब, सिंघाड़ा, मूली, अदरक पत्ते, गन्ना, कच्ची हल्दी, नारियल।


छठी माता की कथा

प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं। नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया।


लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुई। देवी ने राजा को कहा कि मैं षष्ठी देवी हूं। मैं लोगों को पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती 1 हूं। इसके अलावा जो सच्चे भाव से मेरी पूजा करता है, मैं उसके सभी प्रकार के मनोरथ को पूर्ण कर देती हूं। यदि तुम मेरी पूजा करोगे तो मैं तुम्हें पुत्र रत्न प्रदान करूंगी। देवी की बातों से प्रभावित होकर राजा ने उनकी आज्ञा का पालन किया। राजा और उनकी पत्नी ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी पक्षी की पूरे विधि-विधान से पूजा की। इस पूजा के फलस्वरूप उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। तभी से छठ का पावन पर्व मनाया जाने लगा। छठ व्रत के संदर्भ में एक अन्य कथा के अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। इस व्रत के प्रभाव से उसकी मनोकामनाएं पूरी हुई तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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