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प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि का शुभ संयोग 8 मार्च 2024

प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि का शुभ संयोग 8 मार्च 2024

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि का बहुत अधिक अधिक महत्व होता है। हर माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत और चतुर्दशी तिथि में शिवरात्रि पड़ती है। फाल्गुन माह में पड़ने वाली महाशिवरात्रि का महत्व सबसे अधिक होता है। इस दिन मां पार्वती और शिवजी का विवाह हुआ था। प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की विशेष पूजा अराधना की जाती है। फालगुन माह में प्रदोष व्रत और महाशिवरात्रि एक ही दिन यानी 8 मार्च 2024 को है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार महाशिवरात्रि और प्रदोष व्रत का संयोग बेहद शुभ और खास माना जाता है।

प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है। असंभव को संभव में बदल देता है यह प्रदोष व्रत अत: शिव भक्तों को यह व्रत अवश्य करना चाहिए। माह की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है। मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। जो भी लोग अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।

महाशिवरात्रि मनाने का कारण 

फाल्गुन कृष्ण चतुर्दश्याम आदिदेवो महानिशि।

शिवलिंग तयोद्भूत: कोटि सूर्य समप्रभ:॥

ईशान संहिता में दिए इस श्लोक के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महानिशीथकाल में भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभाव वाले लिंग रूप में प्रकट हुए थे। इस कारण इस दिन शिवलिंग की पूजा करना शुभ माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती से भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी और महाशिवरात्रि के दिन माता पार्वती की तपस्या सफल हुई थी और माँ पार्वतीजी का विवाह भगवान शिवजी के साथ संपन्न हुआ था। महाशिवरात्रि का व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्त के लिए रखती हैं।


चार बार की जाती है भगवान शिव की पूजा

महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की पूजा चार बार की जाती है. मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान की पूजा रात्रि के समय एक बार या फिर संभव हो तो चार बार करनी चाहिए. वेदों में रात्रि के चार प्रहर बताए गए हैं. इस दिन हर प्रहर में भगवान शिव पूजा की जाती है।

प्रथम प्रहर में- ह्रीं ईशानाय नमः

दूसरे प्रहर में- ह्रीं अघोराय नम:

तीसरे प्रहर में- ह्रीं वामदेवाय नमः

चौथे प्रहर में- ह्रीं सद्योजाताय नमः


महाशिवरात्रि मुहूर्त 8 मार्च 2024 

निशिता काल पूजा समय - 11:57 PM  से 12:46 AM, 09 मार्च

अवधि - 00 घण्टे 49 मिनट्स

9 मार्च 2024 को शिवरात्रि पारण समय - 06:28 AM से 03:19 PM


महाशिवरात्रि चार प्रहर पूजा मुहूर्त

रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:15 PM से 09:18 PM, 8 मार्च

रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:18 PM से 12:22 AM, 9 मार्च

रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:22 AM से 03:25 AM, 9 मार्च

रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:25 AM से 06:28 AM, 9 मार्च


चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – 8 मार्च 2024 को 09:57 PM से

चतुर्दशी तिथि समाप्त – 9 मार्च 2024 को 06:17 PM तक


कृपया ध्यान दें इस पोस्ट में दिए गए उपरोक्त पूजा मुहूर्त उत्तराखंड के अनुसार है अन्य राज्यों में कुछ अंतर आ सकता है।

महाशिवरात्रि की कथा

शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार माँ पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा ऐसा कौन-सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं? उत्तर में शिवजी ने पार्वती को 'शिवरात्रि' के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- 'एक बार चित्रभानु नामक एक शिकारी था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधित साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी।

शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि व्रत की कथा भी सुनी। संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण चुकाने के विषय में बात की। शिकारी अगले दिन सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया। अपनी दिनचर्या की भांति वह जंगल में शिकार के लिए निकला। लेकिन दिनभर बंदी गृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था। शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल-वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा। बेल वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो विल्वपत्रों से ढका हुआ था। शिकारी को उसका पता न चला।

पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियां तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं। इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ गए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुंची। शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली, 'मैं गर्भिणी हूं। शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे, जो ठीक नहीं है। मैं बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे समक्ष प्रस्तुत हो जाऊंगी, तब मार लेना।' शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी जंगली झाड़ियों में लुप्त हो गई।

कुछ ही देर बाद एक और मृगी उधर से निकली। शिकारी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया। तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया, 'हे पारधी! मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी।' शिकारी ने उसे भी जाने दिया। दो बार शिकार को खोकर उसका माथा ठनका। वह चिंता में पड़ गया। रात्रि का आखिरी पहर बीत रहा था। तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली। शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था। उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर नहीं लगाई। वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली, 'हे पारधी!' मैं इन बच्चों को इनके पिता के हवाले करके लौट आऊंगी। इस समय मुझे शिकारी हंसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूं, मैं ऐसा मूर्ख नहीं। इससे पहले मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे। उत्तर में मृगी ने फिर कहा, जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी। इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान मांग रही हूं। हे पारधी! मेरा विश्वास कर, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूं।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उस मृगी को भी जाने दिया। शिकार के अभाव में बेल-वृक्षपर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था। पौ फटने को हुई तो एक हृष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया। शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा। शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृगविनीत स्वर में बोला, हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मारने में विलंब न करो, ताकि मुझे उनके वियोग में एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े। मैं उन मृगियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण का जीवन देने की कृपा करो। मैं उनसे मिलकर तुम्हारे समक्ष उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटनाचक्र घूम गया, उसने सारी कथा मृग को सुना दी। तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूं।' उपवास, रात्रि-जागरण तथा शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल हो गया था। उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था। धनुष तथा बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गया। भगवान शिव की अनुकंपा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया। वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा।

थोड़ी ही देर बाद वह मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसुओं की झड़ी लग गई। उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया। देवलोक से समस्त देव समाज भी इस घटना को देख रहे थे। घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प-वर्षा की। शिव कृपा से शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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