अपरा एकादशी व्रत 2 जून 2024
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली अपरा एकादशी का वर्णन ब्रह्मांड पुराण में महाराज युधिष्ठिर और भगवान् श्रीकृष्ण के संवाद मे आता है। युधिष्ठिर महाराज ने भगवान् श्रीकृष्ण को पूछा, “हे कृष्ण ! हे जनार्दन! ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है ? उसके महात्म्य के बारे में कृपया आप वर्णन करें।
भगवान् श्रीकृष्ण युधिष्ठिर महाराजको कहने लगे, "हे महाराज युधिष्ठिर! अपने सचमुच बहुत ही समझदारी का और वास्तविकतासे देखा जाए तो सबके लिए हितकारक प्रश्न पूछा है। इस एकादशी का नाम अपरा है। जो भी इस व्रत पालन करता है वह समस्त पापोंसे मुक्त होकर अमर्यादित पुण्य संचय करता है । इस व्रत के पालन से अनेक घोर पापोंसे, जैसे कि ब्रह्महत्या, भ्रूणहत्या, दूसरोंकी निंदा करना, अनैतिक स्त्री-पुरुष संग, झूठ बोलना, झूठी गवाही देना, अभिमान करना, पैसे के लिए अध्यापन तथा वेद पठण, अपनी मर्जी से ग्रंथ लिखना, साथ ही झूठे भविष्य कहनेवाले, फँसाने वाले वैद्य मुक्त होते है। लड़ाई से डरकर भागकर आए हुए क्षत्रिय को नरकद्वार मिलता है, क्योंकि उन्होंने अपने धर्म का पालन न करके अपने पतन के लिए जिम्मेदार वह होते है। परंतु इस व्रत के पालन से ऐसे क्षत्रिय को भी स्वर्गप्राप्ति होती है।
भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा, "हे राजन् ! अपने गुरुसे ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात उनकी निंदा करनेवाले शिष्यको पाप की राशियाँ मिलती है। उस निंदित व्यक्तिने भी इस व्रतका पालन किया तो वह भी सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है। हे राजाधिराज ! कार्तिक मास में पुष्कर तीर्थमें स्नान करनेसे प्राप्त किया हुआ पुण्य, माघ मास में प्रयाग तीर्थमें स्नान करनेसे, काशीमें जाकर महाशिवरात्री पालन करनेसे, गयामें जाकर विष्णुपादपर पिंडदान करनेसे, गुरु जब भी सिंह राशी में आता है, उस समय गौतमी में स्नान करनेसे, कुंभ मेले के समय केदारनाथ जानेसे, बद्रिनाथ यात्रा करनेसे, सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्री ब्रह्मसरोवर में स्नान करनेसे तथा हाथी, अन्य, सुवर्ण और भूमिदान से प्राप्त किया हुआ फल केवल अपरा एकादशी के पालन से सहज प्राप्त होता है। यह व्रत बहुत ही तीक्ष्ण कुल्हाडी से पापवृक्ष को तोड़ देता है अथवा आगके जैसे सारे पापवृक्षोंको जलाकर भस्म करता है। यह व्रत तेजस्वी सूर्य से पापों के अंधःकार को दूर भगाता है, हिरनरूपी पापोंको भगानेवाला यह सिंहव्रत है। इस अपरा एकादशीका पालन करनेसे और भगवान्के त्रिविक्रम रूप की पूजा करनेसे वैकुंठ की प्राप्ति होती है। दूसरोंके हित के लिए जो कोई भी यह महात्म्य पढेगा अथवा जो सुनेगा वह सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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