गंगा सप्तमी 14 मई 2024
गंगा सप्तमी का त्योहार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन मां गंगा का पृथ्वी पर पुनर्जन्म हुआ। गंगा सप्तमी को गंगा जयंती के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन मां गंगा को समर्पित है। कहा जाता है कि गंगा सप्तमी के दिन गंगा नदी में स्नान करने से सभी पापों का नाश हो जाता है। इस दिन दान-पुण्य करना बहुत शुभ फलदायी माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार इस दिन गंगा स्नान, तप और दान करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही यह मंगल दोष और अन्य दोषों से भी मुक्ति दिलाता है।
गंगा पूजन का महत्व
इस दिन मां गंगा का स्मरण, पूजन और स्नान करने से धन, सुख, यश और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है और सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार इस दिन गंगा पूजन करने से ग्रहों के अशुभ प्रभाव कम होते हैं। गंगा की पूजा मोक्ष प्रदायक और अमोघ फलदायी मानी जाती है और इस दिन किया गया दान जीव को कई जन्मों तक पुण्य के रूप में मिलता है।
गंगा सप्तमी शुभ मुहूर्त
गंगा सप्तमी मध्याह्न मूहूर्त - 10:46 AM से 01:30 PM
अवधि - 02 घण्टे 43 मिनट
सप्तमी तिथि प्रारम्भ - 14 मई 2024 को 02:50 AM बजे
सप्तमी तिथि समाप्त - 15 मई 2024 को 04:19 AM बजे।
गंगा सप्तमी के दिन शिव पूजन
गंगा सप्तमी के दिन शाम को (प्रदोष काल) में भगवान शिव जी को एक लोटा जल अर्पित करें। और बेलपत्र, चंदन, धूप, दीप, नैवेद इत्यादि से पूजन करें इस दिन भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना करने से मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
शास्त्र - पुराणों के अनुसार पौराणिक कथा
हिन्दु पौराणिक कथाओं के अनुसार, गंगा दशहरा के दिन देवी गंगा पृथ्वी पर अवतरित हुई थीं। देवी गंगा का प्रवाह इतना तीव्र व शक्तिशाली था कि उसके कारण समूची पृथ्वी का सन्तुलन अनियन्त्रित हो सकता था। अतः देवी गंगा के वेग को नियन्त्रित करने हेतु भगवान शिव ने देवी गंगा को अपनी जटाओं में धारण कर लिया। कुछ समय पश्चात्, भगवान शिव ने देवी गंगा को जटाओं से मुक्त किया ताकि वह भागीरथ के पूर्वजों की श्रापित आत्माओं को शुद्ध करने का अपना उद्देश्य पूर्ण कर सकें।
भागीरथ के राज्य की ओर जाते समय, देवी गंगा के शक्तिशाली प्रवाह एवं प्रचण्ड वेग से ऋषि जाह्नु का आश्रम नष्ट हो गया। अतः ऋषि जाह्नु क्रोधित हो गये तथा उन्होंने गंगा का समस्त जल पी लिया। इस घटना के पश्चात्, भागीरथ समेत सभी देवताओं ने ऋषि जाह्नु के समक्ष क्षमा-याचना कर उनसे देवी गंगा को मुक्त करने का आग्रह किया, ताकि देवी गंगा जनकल्याण के अपने उद्देश्य की पूर्ति कर सकें। सभी देवताओं एवं भागीरथ की प्रार्थना से प्रसन्न होकर जाह्नु ऋषि ने गंगा को अपने कान से प्रवाहित कर मुक्त किया।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जाह्नु ऋषि ने वैशाख शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को अपने कान से गंगा को मुक्त किया था। अतः इस कथा के कारण इस दिन को जाह्नु सप्तमी के नाम से भी जाना जाता है। देवी गंगा को ऋषि जाह्नु की पुत्री जाह्नवी के रूप में भी जाना जाता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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