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भाद्रपद पूर्णिमा व्रत 17 सितम्बर 2024 जानें धार्मिक महत्व

भाद्रपद पूर्णिमा, जिसे "भादो पूर्णिमा" के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह पर्व धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है और विशेष रूप से सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भाद्रपद माह में आने वाली इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है, क्योंकि इस दिन अनेक धार्मिक अनुष्ठान और व्रत किए जाते हैं। यह दिन न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि समाजिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।

भाद्रपद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व

भाद्रपद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है। इस दिन को भगवान विष्णु और विशेष रूप से उनके अवतार भगवान सत्यनारायण की पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। कई स्थानों पर सत्यनारायण व्रत कथा का आयोजन होता है। इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और संकटों से मुक्ति मिलती है। भक्त भगवान विष्णु की कथा सुनते हैं और उन्हें फल-फूल, नैवेद्य और पंचामृत अर्पित करते हैं। इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और व्यक्ति के जीवन में आने वाली कठिनाइयों का समाधान होता है।

सत्यनारायण व्रत की कथा

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सत्यनारायण व्रत कथा का विशेष महत्व है। इस कथा के अनुसार, एक समय की बात है जब एक गरीब ब्राह्मण भगवान विष्णु की शरण में जाता है और अपनी निर्धनता से मुक्ति की प्रार्थना करता है। भगवान विष्णु उसे सत्यनारायण व्रत करने की सलाह देते हैं और कहते हैं कि इस व्रत को करने से उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण होंगी। ब्राह्मण ने व्रत किया और कुछ ही समय में उसकी सभी परेशानियां दूर हो गईं। धीरे-धीरे इस व्रत की महिमा पूरे नगर में फैल गई और लोग इसे करने लगे।

कथा के अनुसार, सत्यनारायण व्रत करने से न केवल आर्थिक संकट दूर होते हैं बल्कि जीवन में स्थायित्व और समृद्धि आती है। इस दिन भगवान सत्यनारायण की पूजा और कथा सुनने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और सभी संकटों का निवारण होता है। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को व्रत के नियमों का पालन करना चाहिए और पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ पूजा करनी चाहिए।

चंद्रमा और समुद्र का संबंध

भाद्रपद पूर्णिमा का एक और महत्वपूर्ण पहलू इसका चंद्रमा और समुद्र से संबंध है। चंद्रमा और समुद्र का आपस में गहरा संबंध होता है। पूर्णिमा के दिन चंद्रमा की स्थिति समुद्र के ज्वार-भाटे को प्रभावित करती है। ऐसा माना जाता है कि पूर्णिमा के दिन समुद्र में ज्वार की गति तेज होती है, जिससे समुद्र तटों पर लहरें अधिक उग्र हो जाती हैं। इस प्राकृतिक घटना का धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से भी महत्व है, क्योंकि इसे जीवन में आने वाले बदलावों का प्रतीक माना जाता है।

पितरों का तर्पण और धार्मिक अनुष्ठान

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन पितरों का तर्पण करना भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। हिंदू धर्म में पितरों का तर्पण और श्राद्ध कर्म करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। इस दिन गंगा, यमुना, नर्मदा, गोदावरी आदि पवित्र नदियों में स्नान करके पितरों का तर्पण किया जाता है और उन्हें भोजन अर्पित किया जाता है। यह कर्म पितरों की संतुष्टि के लिए किया जाता है और इससे परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

रक्षाबंधन से संबंध

भाद्रपद पूर्णिमा का एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू इसका रक्षाबंधन से संबंध है। कई स्थानों पर रक्षाबंधन का पर्व भी इसी दिन मनाया जाता है। रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के प्रेम और स्नेह का प्रतीक होता है, जहां बहन अपने भाई की लंबी उम्र और सुरक्षा की कामना करती है और भाई उसकी रक्षा का वचन देता है। यह पर्व परिवारिक और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।

कृषि और पर्यावरण का महत्व

भाद्रपद पूर्णिमा का प्राकृतिक महत्व भी बहुत अधिक है। यह समय कृषि के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। भाद्रपद माह के अंत तक किसान अपनी फसल की बुआई कर चुके होते हैं और फसल की देखभाल कर रहे होते हैं। पूर्णिमा का यह समय मौसम में बदलाव का संकेत भी देता है, जिससे कृषि पर भी इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस समय किसानों के बीच विशेष उत्साह और उमंग का माहौल होता है, क्योंकि यह उनकी मेहनत का फल प्राप्त करने का समय होता है।

निष्कर्ष

भाद्रपद पूर्णिमा का पर्व धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। यह दिन भगवान विष्णु और सत्यनारायण की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है, और इस दिन व्रत करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इसके साथ ही, पितरों का तर्पण और रक्षाबंधन जैसे पर्व भी इस दिन को विशेष बनाते हैं।

भाद्रपद पूर्णिमा हमें यह सिखाती है कि जीवन में धर्म, समाज और प्रकृति के प्रति संतुलन बनाए रखना आवश्यक है। धर्म के माध्यम से आत्मिक शांति और समृद्धि प्राप्त की जा सकती है, जबकि समाज और पर्यावरण के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करके हम एक स्वस्थ और सुखी जीवन जी सकते हैं।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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