परिवर्तिनी एकादशी, जिसे वामन एकादशी या जयंती एकादशी भी कहा जाता है, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह एकादशी विशेष रूप से भगवान विष्णु के वामन अवतार से जुड़ी है। इस दिन भगवान विष्णु योग-निद्रा में होते हैं और अपनी करवट बदलते हैं, इसलिए इसे परिवर्तिनी (करवट लेने वाली) एकादशी कहा जाता है।
पौराणिक कथा:
सत्ययुग में एक शक्तिशाली और अत्याचारी राक्षस राजा बलि ने अपनी ताकत और भक्ति के बल पर स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल पर अधिकार कर लिया था। उसकी भक्ति और तपस्या से सभी देवता भयभीत हो गए और स्वर्गलोक से भागकर भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। राजा बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया था, और देवताओं को उनके स्थान से वंचित कर दिया।
देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण किया। वामन रूप में भगवान विष्णु ने एक छोटे ब्राह्मण बालक का रूप लिया और राजा बलि के पास भिक्षा मांगने पहुंचे। राजा बलि, जो बहुत दानवीर था, उसने वामन से भिक्षा मांगने का आग्रह किया। वामन भगवान ने राजा से तीन पग भूमि दान में मांगी।
बलि ने वामन की बात मान ली और तीन पग भूमि देने का वचन दे दिया। तब भगवान वामन ने अपना रूप विशाल कर लिया और एक पग में स्वर्ग लोक, दूसरे पग में पृथ्वी को नाप लिया। तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान न बचा, तो बलि ने अपने सिर पर भगवान का पग रखने का आग्रह किया। वामन भगवान ने बलि के सिर पर तीसरा पग रखकर उसे पाताल लोक में भेज दिया और उसे पाताल का अधिपति बना दिया।
बलि की दानशीलता और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया कि वह हर वर्ष चार महीने तक उसके साथ रहेंगे। यह घटना चातुर्मास के समय को दर्शाती है, जो भगवान विष्णु की योग-निद्रा का समय माना जाता है।
परिवर्तिनी एकादशी का महत्व:
परिवर्तिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, और इस दिन व्रत करने से सभी पापों का नाश होता है। इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, और मनुष्य को मोक्ष का मार्ग प्राप्त होता है। व्रत करने वाले भक्तों के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का वास होता है।
व्रत विधि:
परिवर्तिनी एकादशी के दिन व्रत रखने वाले भक्त सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की पूजा करते हैं। व्रत रखने के दौरान भक्त दिनभर फलाहार करते हैं और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हैं। रात्रि में जागरण करते हुए भगवान विष्णु के नाम का स्मरण करते हैं। अगले दिन द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करके भोजन ग्रहण करते हैं और ब्राह्मणों को दान देते हैं।
यह व्रत भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने और जीवन में आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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🙏🙏एकादशी के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी दी है पंडित जी 🙏🙏
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