कन्या संक्रांति: ऋतु परिवर्तन और धार्मिक महत्ता का पर्व
कन्या संक्रांति हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य के कन्या राशि में प्रवेश करने के समय मनाया जाता है। इसे विशेष रूप से उत्तर भारत में धार्मिक, सांस्कृतिक और खगोलीय महत्व के लिए जाना जाता है। यह पर्व भाद्रपद या आश्विन माह में तब आता है जब सूर्य सिंह राशि को छोड़कर कन्या राशि में प्रवेश करता है।
खगोलीय महत्व
संक्रांति का शाब्दिक अर्थ है 'सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में संक्रमण'। सूर्य के बारह राशियों में भ्रमण के दौरान कुल बारह संक्रांतियाँ होती हैं, जिनमें से कन्या संक्रांति एक है। यह खगोलीय घटना सूर्य के वार्षिक पथ को निर्धारित करती है और इसे नई ऊर्जा और नए संकल्पों का समय माना जाता है।
धार्मिक महत्त्व
कन्या संक्रांति का धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है। इस दिन को विशेष रूप से सूर्य देव की पूजा के लिए उपयुक्त माना जाता है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और दान-पुण्य का कार्य करते हैं। कहा जाता है कि इस दिन किया गया दान कई गुना फलदायी होता है। इसके साथ ही, कन्या संक्रांति का पर्व सामाजिक और धार्मिक परंपराओं का भी प्रतीक है, जिसमें लोग अपने घरों की साफ-सफाई करते हैं, गरीबों को भोजन कराते हैं, और वस्त्र दान करते हैं।
सांस्कृतिक महत्त्व
भारत के विभिन्न हिस्सों में कन्या संक्रांति को अलग-अलग नामों से और भिन्न-भिन्न रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे फसलों की कटाई के मौसम की शुरुआत के रूप में भी देखा जाता है, जहां किसान भगवान को धन्यवाद देते हैं और नई फसलों की समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं। इस अवसर पर गांवों और कस्बों में मेलों का आयोजन होता है, जहां लोग अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं।
उपवास और दान का महत्त्व
कन्या संक्रांति पर व्रत और दान का विशेष महत्व होता है। लोग इस दिन व्रत रखते हैं और भगवान सूर्य की उपासना करते हैं। इसके साथ ही, जरूरतमंदों को दान देना भी एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। अन्न, वस्त्र, धन और तिल का दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन किया गया दान और पूजा व्यक्ति के पापों का नाश करता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पर्यावरण और प्रकृति से संबंध
कन्या संक्रांति का पर्व ऋतु परिवर्तन का भी संकेत देता है। यह समय मानसून के बादल छंटने और शरद ऋतु की शुरुआत का होता है। प्रकृति में यह समय नए उत्साह और ऊर्जा का होता है। किसान नई फसल की तैयारी करते हैं और धरती माता की पूजा कर उनके प्रति आभार व्यक्त करते हैं।
निष्कर्ष
कन्या संक्रांति न केवल धार्मिक बल्कि खगोलीय और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व हमें सूर्य की उपासना, दान, और सामाजिक जिम्मेदारियों का पालन करने का अवसर प्रदान करता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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