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शरद पूर्णिमा व्रत 16 अक्टूबर 2024

शरद पूर्णिमा व्रत 16 अक्टूबर 2024

शरद पूर्णिमा हिंदू धर्म में एक प्रमुख और अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार अश्विन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है, जो सितंबर-अक्टूबर के बीच आता है। इस पर्व को धार्मिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से खास माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है, और उसकी किरणों में विशेष औषधीय गुण होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं।

धार्मिक महत्व

शरद पूर्णिमा का धार्मिक महत्व अत्यधिक व्यापक और गहरा है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ वृंदावन में महारास रचाया था। यह रासलीला भगवान कृष्ण और गोपियों के प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से प्रत्येक गोपी के साथ नृत्य किया था। इस रात को 'रास पूर्णिमा' भी कहा जाता है और इसे गोपियों और भगवान कृष्ण के अद्वितीय प्रेम की अनूठी रात माना जाता है।

इसके अलावा, शरद पूर्णिमा को देवी लक्ष्मी की उपासना का विशेष दिन भी माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, देवी लक्ष्मी इस रात पृथ्वी पर विचरण करती हैं और जो जागरण करके उनकी पूजा-अर्चना करता है, उसे धन-धान्य से समृद्ध करती हैं। इसलिए इसे "कोजागरी पूर्णिमा" भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है "कौन जाग रहा है।" यह व्रत विशेष रूप से वैभव, समृद्धि और सुख-शांति की प्राप्ति के लिए किया जाता है।

सांस्कृतिक महत्व

शरद पूर्णिमा का सांस्कृतिक महत्व भी बहुत गहरा है। यह त्योहार कृषि और ग्रामीण जीवन से गहरे जुड़ा हुआ है। इस समय फसलें पकने लगती हैं और किसानों के लिए यह उत्सव खुशी और समृद्धि का प्रतीक होता है। कई जगहों पर इस दिन विशेष प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें संगीत, नृत्य, और अन्य लोक कलाओं का प्रदर्शन होता है। ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में शरद पूर्णिमा को विशेष उत्साह के साथ मनाया जाता है।

भारत के विभिन्न राज्यों में इस पर्व को अलग-अलग तरीकों से मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल में इसे "लक्ष्मी पूजा" के रूप में मनाया जाता है, जबकि महाराष्ट्र और गुजरात में लोग रातभर जागकर चावल और दूध से बने खीर का सेवन करते हैं। माना जाता है कि चंद्रमा की किरणों के नीचे रखी गई खीर में औषधीय गुण समाहित हो जाते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है।

व्रत और उपवास की परंपरा

शरद पूर्णिमा पर व्रत रखने की परंपरा भी बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन भक्तजन उपवास करते हैं और रात को चंद्र दर्शन के बाद ही कुछ ग्रहण करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन उपवास करने से शरीर और मन दोनों की शुद्धि होती है और देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इस दिन विशेष रूप से दूध, चावल और मिठाई का सेवन किया जाता है। खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा के पीछे मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों से खीर में औषधीय गुण आते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए उत्तम होते हैं।

वैज्ञानिक महत्व

शरद पूर्णिमा के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के अलावा इसका वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के बहुत करीब होता है और उसकी किरणों में विशेष प्रकार की ऊर्जा होती है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की रोशनी में काफी परिवर्तन होता है, और इस दौरान चंद्रमा से निकलने वाली किरणों का मनुष्य के शरीर और मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

कई आयुर्वेदिक विशेषज्ञ मानते हैं कि शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की किरणें शरीर पर ठंडक और शांति का अनुभव कराती हैं, जिससे मानसिक तनाव कम होता है। चंद्रमा की ठंडी किरणें तंत्रिका तंत्र को शांत करती हैं और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं। इस दिन चंद्रमा की रोशनी में खीर रखने और उसका सेवन करने का वैज्ञानिक आधार भी यही है कि चंद्रमा की ऊर्जा से युक्त खीर स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है। इसे खाने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है।

चंद्रमा और 16 कलाएं

हिंदू धर्म में चंद्रमा की सोलह कलाओं का विशेष महत्व है, और शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण सोलह कलाओं से युक्त होता है। चंद्रमा की इन सोलह कलाओं का उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है। हर कला एक विशेष गुण और ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है, जो जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रभावित करती है। इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष रूप से शीतल और शांत होती हैं, जिससे शरीर और मन को शांति और ठंडक का अनुभव होता है।

भगवान श्रीकृष्ण को भी सोलह कलाओं का पूर्ण अवतार माना जाता है, और इसलिए शरद पूर्णिमा की रात भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई है। उनके जीवन के विभिन्न आयामों और उनके दिव्य व्यक्तित्व को समझने के लिए इन सोलह कलाओं का महत्व होता है। वेदों में कहा गया है कि इस दिन ध्यान और साधना करने से आत्मिक उन्नति होती है और मनुष्य को मानसिक शांति प्राप्त होती है।

लोक मान्यताएं और रीति-रिवाज

शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई लोक मान्यताएं और परंपराएं भी प्रचलित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की रोशनी में जितनी देर बैठा जाएगा, उतनी अधिक सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होगी। कई जगहों पर महिलाएं इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपनी संतानों के स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना करती हैं। रातभर जागरण और भजन-कीर्तन की परंपरा भी शरद पूर्णिमा के पर्व से जुड़ी है।

इसके अलावा, इस दिन को प्रेम, सौंदर्य और आनंद का प्रतीक भी माना जाता है। चंद्रमा की रोशनी में परिवार और मित्रों के साथ समय बिताना, विशेष भोज का आयोजन करना और खुले आकाश के नीचे उत्सव मनाना शरद पूर्णिमा की विशेषता होती है।

निष्कर्ष

शरद पूर्णिमा भारतीय संस्कृति और धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण पर्व है, जो आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विशेष महत्व रखता है। इस दिन को उपवास, पूजा, और चंद्र दर्शन के साथ मनाया जाता है, और इसे मानसिक, शारीरिक और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करने का अवसर माना जाता है। शरद पूर्णिमा केवल एक धार्मिक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि यह हमें प्रकृति और चंद्रमा की शक्तियों के प्रति जागरूक करता है।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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