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सफला एकादशी व्रत 26 दिसम्बर 2024


सफला एकादशी व्रत 26 दिसम्बर 2024

ब्रह्मांड पुराण में भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवाद में सफला एकादशी का महात्म्य बताया गया है, युधिष्ठिर महाराज ने पूछा, हे स्वामिन् ! पौष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम क्या है यह व्रत किस प्रकार करते हैं किस देवताकी पूजा करते है ? इस के बारें में आप विस्तारसे कहिए।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, "राजेन्द्र! बहुत बड़े-बड़े यज्ञ करने से जो आनंद प्राप्त होता है उससे अधिक आनंद इस व्रत का पालन करनेवाले से मुझे होता है। यथाशक्ति विधिपूर्वक हर एक व्यक्ति को यह व्रत करना चाहिए! भगवान् नारायण की पूजा करें। जिस तरह सर्पों में शेषनाग, पक्षियों में गरूड, देवताओं में श्रीविष्णु और मानवों मे ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सब व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है। हे राजन! सफला एकादशी के दिन नाममंत्र का उच्चारण करते हुए नारियल, सुपारी, आम, नींबू, अनार, आवला, लवंग, बेर आदि फलोंको अर्पण करके श्रीहलि की पूजा करनी चाहिए! धूप-दीपसे भगवानकी अर्चना करनी चाहिए! सफला एकादशी को विशेष करके दीपदान करने का भी विधान है! रात को वैष्णवों के साथ भगवत् कथा, कीर्तन करते हुए जागरण करे! हजारों वर्षों की तपस्या से भी इस रात्रि के जागरण के फल की तुलना नही की जा सकती।

"हे नृपश्रेष्ठ! अब इस सफला एकादशी की शुभदायी कथा सुनो! प्राचीन काल में चम्पावती नामक सुंदर नगरी महाराज माहिष्मताकी राजधानी थी उन्हें पांच पुत्र थे ! ज्येष्ठ पुत्र हमेशा पाप कर्म करते हुए परस्त्री संग और वेश्या सक्त था। अपने पिता का धन पापकर्मों में नष्ट किया।

वह दुराचारी ब्राह्मण, वैष्णव, देवताओं की निंदा करता था। उसके इन पापकर्मों को देखकर राजा ने उसका नाम लुम्भक रखा ! कुछ दिनों पश्चात पिता और दूसरे भाईयों ने उसे राज्यसे निकाल दिया ! लुभ्भक गहन वन में चला गया वन में रहते हुए लुभ्भक यात्रियों को लूटने लगा एक दिन नगर में चोरी करने लुम्भक गया, तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया अपने पिता का नाम कहने पर सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया! वह वापस व फलहार पर जीवन निर्वाह करने लगा वह दुष्ट प्राचीन बरगद पेड़ के निचे विश्राम करता था, वह पेड अत्यंत प्राचीन होते हुए उस वनमें उस वृक्ष को महान देवता माना जाता था। 

बहुत दिनों पश्चात संचित पुण्य प्रभावसे उसने एक दिन अनजाने एकादशी व्रत का पालन किया ! पौष महीने की कृष्ण पक्ष की दशमी को लुम्भक वृक्ष के फल खाकर और वस्त्रहीन रहनेसे रातभर ठंडी में सो नहीं सका ! लगभग वह बेहोश हो चुका था ! 'सफला एकादशी दिन भी वह बेहोश ही रहा। दोपहर में उसे होश आया। उठकर अथक प्रयास से चलते हुए, भुख से व्याकुल वह गहन वन में गया। जब फलोंको साथ वह लौटा तब सूर्यास्त हो रहा था। इसलिए उस फलको वृक्ष के मूलमें रखा और प्रार्थना की, कि भगवान् लक्ष्मीपति विष्णु इन फलोंका स्वीकार करें। ऐसा कहकर लुम्भक उस रात भी नही सोया। इससे अनजाने में उसने व्रतपालन किया।

उस समय आकाशवाणी हुई, "हे राजकुमार! 'सफला एकादशी के फल के प्रसाद से तुम्हे राज्य और पुत्र प्राप्ति होगी।” तब उसका मन परिवर्तन हुआ। उस समय से उसने अपनी बुद्धि भगवान् विष्णुके भजन में लगायी। उसके बाद वह अपने पिताश्री के पास लौट गया, पिताने उसे राज्य दिया, अनुरूप राजकन्या के साथ विवाह करके बहुत वर्षों तक उत्तम राज्य करता रहा। भगवान विष्णु के वरदान से उसे 'मनोज' नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। मनोज जब राज्य संभालने योग्य हुआ तब लुम्भक ने आसक्ति रहित होकर राज्य त्याग दिया और भगवान् श्रीकृष्ण के शरणागत हो गया। इस प्रकार से सफला एकादशी के व्रत प्रभाव से इस जन्म में उसे सुख प्राप्त हुआ साथ ही मृत्यु पश्चात मोक्ष की भी प्राप्ति हु। सफला एकादशी के पालन से तथा महिमा सुनने मनुष्य को राजसूय यज्ञ की प्राप्ति होती है।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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