Type Here to Get Search Results !

होलाष्टक प्रारम्भ 7 मार्च से 14 मार्च तक

होलाष्टक: एक धार्मिक और ज्योतिषीय परिप्रेक्ष्य

भारत में होली का त्यौहार विशेष हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन होली से पूर्व आठ दिनों का एक विशेष कालखंड होता है जिसे होलाष्टक कहा जाता है। यह अवधि धार्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस समय को शुभ कार्यों के लिए वर्जित माना गया है, जबकि भक्तिभाव और साधना के लिए इसे उत्तम माना जाता है। होलाष्टक विशेष रूप से उत्तर भारत में अधिक प्रचलित है और इस दौरान कई धार्मिक परंपराओं का पालन किया जाता है।


होलाष्टक क्या है?

होलाष्टक शब्द दो भागों से मिलकर बना है—"होला" और "अष्टक"। "होला" का संबंध होली से है, जबकि "अष्टक" का अर्थ है आठ। इसका तात्पर्य यह है कि होली से ठीक आठ दिन पूर्व प्रारंभ होने वाली अवधि होलाष्टक कहलाती है।

होलाष्टक का कालखंड
होलाष्टक फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 7 मार्च से प्रारंभ होकर फाल्गुन पूर्णिमा (होलिका दहन) 14 मार्च तक रहता है। इस दौरान ग्रहों की स्थिति उग्र होती है, जिससे इसे शुभ कार्यों के लिए अनुपयुक्त माना जाता है।


होलाष्टक का धार्मिक महत्व

होलाष्टक का मुख्य धार्मिक महत्व भक्त प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि इसी अवधि के दौरान हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वह सुरक्षित रहे। इस काल के अंत में होलिका दहन हुआ और प्रह्लाद की विजय हुई।

प्रह्लाद और हिरण्यकश्यप की कथा

होलाष्टक का संबंध भगवान विष्णु के परम भक्त प्रह्लाद और उनके पिता हिरण्यकश्यप से है। हिरण्यकश्यप ने स्वयं को सर्वशक्तिमान घोषित कर दिया था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था।

जब प्रह्लाद ने पिता की आज्ञा मानने से इंकार कर दिया, तो हिरण्यकश्यप ने उसे मारने के कई प्रयास किए। इन आठ दिनों के दौरान प्रह्लाद को पहाड़ से गिराया गया, विष दिया गया, समुद्र में डुबोया गया और हाथियों से कुचलवाने की कोशिश की गई, लेकिन वह हर बार बच गए। अंततः फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हिरण्यकश्यप की बहन होलिका, जो अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त थी, प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जल गई और प्रह्लाद सुरक्षित बच गए। इस घटना की याद में होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन होली का पर्व मनाया जाता है।


ज्योतिषीय दृष्टिकोण से होलाष्टक

होलाष्टक को ज्योतिष शास्त्र में भी महत्वपूर्ण माना गया है। इस समय ग्रहों की स्थिति उग्र होती है, जिससे शुभ कार्यों की मनाही की जाती है।

ग्रहों की स्थिति

होलाष्टक के आठ दिनों में आठ प्रमुख ग्रहों का प्रभाव माना जाता है—

  1. अष्टमी – चंद्रमा
  2. नवमी – सूर्य
  3. दशमी – शनि
  4. एकादशी – शुक्र
  5. द्वादशी – गुरु
  6. त्रयोदशी – बुध
  7. चतुर्दशी – मंगल
  8. पूर्णिमा – राहु

इन दिनों में ग्रहों की स्थिति अस्थिर रहती है, जिससे विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश, नामकरण और अन्य शुभ कार्य करने की मनाही होती है।


होलाष्टक में क्या करें और क्या न करें?

होलाष्टक में वर्जित कार्य

  • विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, यज्ञोपवीत, नव निर्माण आदि शुभ कार्य नहीं किए जाते।
  • इस दौरान नए व्यापार या नौकरी की शुरुआत नहीं की जाती।
  • किसी भी प्रकार की महत्वपूर्ण यात्रा करने से बचना चाहिए।
  • भूमि, वाहन या आभूषण खरीदने की मनाही होती है।

होलाष्टक में अनुशंसित कार्य

  • धार्मिक और आध्यात्मिक गतिविधियों में संलग्न रहना चाहिए।
  • भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करना शुभ माना जाता है।
  • होली के दौरान होलिका दहन की तैयारी शुरू की जाती है।
  • गरीबों को दान देना शुभ फल प्रदान करता है।
  • भजन-कीर्तन, सत्संग और ध्यान का विशेष महत्व होता है।

होलाष्टक के दौरान विभिन्न राज्यों में परंपराएँ

उत्तर भारत में होलाष्टक

उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होलाष्टक का विशेष महत्व है। इन राज्यों में इस दौरान होलिका दहन की तैयारी शुरू हो जाती है और विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं।

वृंदावन और मथुरा में होलाष्टक

मथुरा और वृंदावन में होली विशेष रूप से प्रसिद्ध है। होलाष्टक प्रारंभ होते ही वहाँ फूलों की होली, लट्ठमार होली और रंगभरी एकादशी जैसी धार्मिक परंपराएँ शुरू हो जाती हैं।

पंजाब और हरियाणा में होलाष्टक

पंजाब और हरियाणा में इस दौरान भक्तिभाव से कथा, कीर्तन और भजन किए जाते हैं। किसान इस समय नई फसल की कटाई की तैयारी भी करते हैं।

नेपाल में होलाष्टक

नेपाल में भी होलाष्टक को विशेष रूप से मनाया जाता है। काठमांडू और अन्य धार्मिक स्थलों पर इस दौरान विशेष पूजा-पाठ और होली महोत्सव की शुरुआत हो जाती है।


होलाष्टक का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

होलाष्टक के दौरान मौसम में परिवर्तन होता है। सर्दी समाप्त होकर गर्मी का आगमन होता है, जिससे कई प्रकार की बीमारियाँ फैलने लगती हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से इस दौरान अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।

वैज्ञानिक कारण:

  1. मौसम परिवर्तन: सर्दी से गर्मी की ओर जाने का यह काल संक्रमण काल होता है, जिसमें बीमारियों का खतरा अधिक होता है।
  2. शारीरिक और मानसिक अस्थिरता: इस समय लोगों में चिड़चिड़ापन और मानसिक तनाव बढ़ सकता है, इसलिए धार्मिक अनुष्ठानों को महत्व दिया गया है।
  3. सामाजिक समरसता: इस दौरान लोग सामूहिक रूप से होली की तैयारियों में जुटते हैं, जिससे समाज में भाईचारा बढ़ता है।

निष्कर्ष

होलाष्टक भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह एक धार्मिक, ज्योतिषीय और वैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण कालखंड है, जिसमें शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है और धार्मिक क्रियाकलापों पर जोर दिया जाता है।

यह समय भक्तिभाव से जुड़ने, आध्यात्मिक उन्नति करने और समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलाने का अवसर प्रदान करता है। अंततः होलिका दहन के साथ इस नकारात्मक ऊर्जा का समापन होता है और रंगों की होली के माध्यम से प्रेम और आनंद का संचार होता है।

 आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)

👉 "पूजा पाठ, ग्रह अनुष्ठान, शादी विवाह, पार्थिव शिव पूजन, रुद्राभिषेक, ग्रह प्रवेश, वास्तु शांति, पितृदोष,  कालसर्पदोष निवारण इत्यादि के लिए सम्पर्क करें वैदिक ब्राह्मण ज्योतिषाचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री जी से मोबाइल नम्वर - 

+91 9410305042  

+91 9411315042 


👉 भारतीय हिन्दू त्यौहारों से सम्बन्धित लैटस्ट अपडेट पाने के लिए -

"शिव शक्ति ज्योतिष केन्द्र" व्हाट्सप्प ग्रुप जॉइन करें - यहां क्लिक करें। 

"शिव शक्ति ज्योतिष केन्द्र" व्हाट्सप्प चैनल फॉलो करें - यहां क्लिक करें। 

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad