
उत्तराखंड कुमाऊं की होली में 'चीर बंधन' का शुभ मुहूर्त
कुमाऊंनी होली में चीर बंधन का विशेष महत्व माना जाता है। होलाष्टक में एकादशी को शुभ मुहूर्त देखकर मंदिरों और सार्वजनिक स्थानों पर चीर बंधन किया जाता है।
'चीर बंधन' का शुभ मुहूर्त
कुमाऊं में चीर बंधन की भी अलग-अलग विशेष परंपराएं हैं। कुमाऊंनी होली में इनका विशेष महत्व माना जाता है। कुमाऊं में कुछ मंदिरों में होलिका अष्टमी के दिन चीर बंधन की प्रथा है, लेकिन ज्यादातर गांवों और शहरों में सार्वजनिक स्थानों पर शुभ मुहूर्त देखकर एकादशी को चीर बंधन किया जाता है। इसके लिए गांव के प्रत्येक घर से नए कपड़े के रंग-बिरंगे टुकड़े एक लंबी लकड़ी पर 'चीर' के रूप में बांधे जाते हैं। इस अवसर पर ‘कैलै बांधी चीर हो रघुनन्दन राजा’, ’सिद्धि को दाता गणपति बांधी चीर हो’ जैसी होलियां गाई जाती हैं। इस होली में गणपति के साथ सभी देवताओं का नाम लिया जाता है। कुमाऊं में 'चीर हरण' की भी प्रथा है। गांव में मौजूद चीर को अन्य ग्रामीणों की पहुंच से बचाने के लिए दिन-रात पहरा दिया जाता है कुछ गांवों में कपड़े की जगह लाल झंडा ‘निशान’ लगाने का प्रचलन है, जो यहां शादियों में इस्तेमाल होने वाले लाल और सफेद ‘निशान’ की तरह ही कुमाऊं में प्राचीन काल में राजशाही का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि कुछ गांवों को ये ‘निशान’ उस समय के राजाओं से मिले हैं और वे ही होली के दौरान पारंपरिक रूप से ‘निशान’ का इस्तेमाल करते हैं। यहां परिवार के सबसे बड़े सदस्य से लेकर सबसे छोटे पुरुष सदस्य तक सभी घरों में होली के गीत गाकर आशीर्वाद देने की भी अनूठी परंपरा है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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