
होलिका दहन मुहूर्त 13 मार्च 2025
होलिका दहन हिंदुओं का एक प्रमुख पर्व है जिसमें होली के एक दिन पहले यानी फाल्गुन पूर्णिमा को संध्या के समय होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है होलीका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन के मुहूर्त के लिए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिये -
भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो परन्तु भद्रा मध्य रात्रि से पहले ही समाप्त हो जाए तो प्रदोष के पश्चात जब भद्रा समाप्त हो तब होलिका दहन करना चाहिये। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक व्याप्त हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूँछ के दौरान होलिका दहन किया जा सकता है। परन्तु भद्रा मुख में होलिका दहन कदाचित नहीं करना चाहिये। धर्मसिन्धु में भी इस मान्यता का समर्थन किया गया है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार भद्रा मुख में किया होली दहन अनिष्ट का स्वागत करने के जैसा है जिसका परिणाम न केवल दहन करने वाले को बल्कि शहर और देशवासियों को भी भुगतना पड़ सकता है। किसी-किसी साल भद्रा पूँछ प्रदोष के बाद और मध्य रात्रि के बीच व्याप्त ही नहीं होती तो ऐसी स्थिति में प्रदोष के समय होलिका दहन किया जा सकता है। कभी दुर्लभ स्थिति में यदि प्रदोष और भद्रा पूँछ दोनों में ही होलिका दहन सम्भव न हो तो प्रदोष के पश्चात होलिका दहन करना चाहिये।
इसवर्ष (वि. संवत् 2081 में) भी गतवर्ष की भान्ति होलिका दहन के समय सम्बन्धी संशय रहेगा। लगभग गतवर्ष जैसी परिस्थितियां बन रही हैं। पुनः स्पष्टीकरण लिख रहे हैं-
प्रदोष-व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भद्रा-रहितकाल में होलिका दहन किया जाता है। यथा-'सा प्रदोषव्यापिनी भद्रारहित ग्राह्या ।। (धर्मसिन्धुः)
यदि प्रदोषकाल के समय भद्रा हो तो दूसरे दिन प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा में होलिका-दहन करना चाहिए। यदि दूसरे दिन पूर्णिमा प्रदोष व्यापिनी न हो, तो पहिले दिन भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन करें। परन्तु यदि उस दिन (पहिले दिन) भद्रा निशीथ (अर्द्धरात्रि) के बाद या निशीथ में समाप्त हो रही हो, तो भद्रा के मुखकाल को छोड़कर भद्राकाल में ही निशीथ से पहिले होलिकादहन कर लेना चाहिए, क्योंकि निशीथ के अनन्तर होलिकादहन करने का निषेध है-
'परदिने प्रदोष-स्पर्शाभावे पूर्वदिने यदि निशीथात्प्राक्-भद्रासमाप्तिः तदा भद्रावसानोत्तरमेव होलिका-दीपनम् । निशीथोत्तरं भद्रा-समाप्तौ भद्रामुखं त्यक्त्त्वा भद्रायामेव।' (धर्मसिन्धुः)
इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा (सं. 2081 वि.) केवल 13 मार्च, 2025 ई. को ही प्रदोषव्यापिनी है। 14 मार्च को तो वह प्रदोषकाल को बिल्कुल भी स्पर्श नहीं कर रही। 13 मार्च को भद्रा अर्द्धरात्रि (24-37 मि.) से पहिले 23 घं 31 मिं. पर समाप्त हो रही है।
अतः होलिकादीपन 13 मार्च, बृहस्पतिवार, 2025 ई. को रात्रि 23 बजकर 31 मिनट के बाद और निशीथ (24 बजकर 37 मिनट) से पहिले ही करना शास्त्रसम्मत होगा।
ध्यान दें- इसदिन (13 मार्च, 2025 ई.) भद्रामुखकाल 20 बजकर 18 मिनट से 22 बजकर 27 मिनट तक रहेगा । तथा भद्रा-पुच्छकाल 19 बजकर 00 मिनट से 20 बजकर 18 मिनट तक रहेगा।
अतएव आवश्यक परिस्थितिवश भद्रामुखकाल को त्यागकर भद्रापुच्छकाल में 07:00 PM से 08:18 PM तक होलिका दहन किया जा सकता है।
परन्तु शास्त्र-निर्देशानुसार भद्रा बाद (23 बजकर 31 मिनट) तथा निशीथकाल से पहिले (24 बजकर 37 मिनट तक) ही होलिका दहन करना चाहिए।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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