
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा व्रत कथा 13 मार्च 2025
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा का व्रत हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है, जिसे होली का पर्व भी कहा जाता है। यह व्रत भक्त प्रह्लाद, होलिका, और भगवान विष्णु की कथा से जुड़ा हुआ है। इस दिन उपवास, दान, पूजन और होलिका दहन से विशेष फल की प्राप्ति होती है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है।
पौराणिक कथा
बहुत समय पहले की बात है। हिरण्यकशिपु नाम का एक असुर राजा था, जो अत्यंत शक्तिशाली और अहंकारी था। उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया था कि उसे न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न किसी अस्त्र से, न किसी शस्त्र से, न किसी मानव से, न किसी पशु से मारा जा सकता है। इस वरदान के कारण वह अमरता का अभिमान करने लगा और स्वयं को भगवान मानने लगा। उसने अपने राज्य में विष्णु भक्ति पर प्रतिबंध लगा दिया और जो कोई भी भगवान विष्णु की आराधना करता, उसे कठोर दंड दिया जाता।
हिरण्यकशिपु का एक पुत्र था, जिसका नाम प्रह्लाद था। वह अत्यंत ही भक्त और सच्चरित्र बालक था। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था और सदैव उनकी भक्ति में लीन रहता था। जब हिरण्यकशिपु को यह पता चला कि उसका पुत्र विष्णु का अनन्य भक्त है, तो उसे बहुत क्रोध आया। उसने अपने पुत्र को कई प्रकार से समझाने और धमकाने का प्रयास किया, लेकिन प्रह्लाद अपनी भक्ति से विचलित नहीं हुआ।
प्रह्लाद की कठिन परीक्षा
हिरण्यकशिपु ने अपने सेवकों को आदेश दिया कि वे प्रह्लाद को विष दे दें। किंतु विष भी विष्णु-कृपा से अमृत बन गया और प्रह्लाद को कोई हानि नहीं हुई। फिर राजा ने उसे विशाल पर्वत से नीचे फेंकने का आदेश दिया, परंतु भगवान विष्णु ने उसे बचा लिया। जब यह सब उपाय असफल हो गए, तो हिरण्यकशिपु ने अपनी बहन होलिका की सहायता ली।
होलिका दहन की कथा
होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। हिरण्यकशिपु ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए, ताकि प्रह्लाद जलकर भस्म हो जाए। होलिका ने ऐसा ही किया। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर जलती अग्नि में बैठ गई। परंतु भगवान विष्णु की कृपा से होलिका का वरदान निष्फल हो गया। वह स्वयं जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। यह घटना यह सिद्ध करती है कि बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की विजय होती है।
भगवान विष्णु का नरसिंह अवतार
जब हिरण्यकशिपु को यह एहसास हुआ कि उसका पुत्र किसी भी प्रकार से नष्ट नहीं हो रहा, तो वह स्वयं उसे मारने के लिए तैयार हुआ। एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से क्रोधित होकर पूछा, "तेरा विष्णु कहां है? क्या वह इस खंभे में भी है?" प्रह्लाद ने निर्भीक होकर उत्तर दिया, "हाँ, भगवान हर जगह हैं।" यह सुनकर हिरण्यकशिपु ने क्रोध में आकर खंभे पर प्रहार किया।
तभी खंभे से भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार में प्रकट होकर हिरण्यकशिपु का संहार किया। उन्होंने उसे संध्या के समय, द्वार की देहली पर, अपने नाखूनों से मार डाला। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की और अधर्म पर धर्म की विजय हुई।
होलिका दहन का महत्व
इस कथा के प्रतीक रूप में आज भी फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है। इस दिन लोग लकड़ियों, उपलों और गोबर से होलिका तैयार करते हैं और उसमें अग्नि प्रज्वलित करके बुराइयों के नाश की प्रार्थना करते हैं। यह पर्व यह सिखाता है कि अहंकार और अधर्म का अंत निश्चित है, और जो भगवान की भक्ति में लीन रहता है, उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं।
व्रत विधि
- स्नान और संकल्प – इस दिन प्रातःकाल पवित्र नदी में स्नान करके व्रत का संकल्प लिया जाता है।
- पूजन – भगवान विष्णु, प्रह्लाद और होलिका का पूजन किया जाता है।
- होलिका दहन – सायंकाल शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है।
- दान-पुण्य – इस दिन अन्न, वस्त्र, धन और जरूरतमंदों की सहायता करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- रंगों की होली – अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है, जो प्रेम, आनंद और सौहार्द का प्रतीक है।
उपसंहार
फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा का व्रत धर्म, भक्ति और सत्य की विजय का प्रतीक है। यह व्रत न केवल भक्त प्रह्लाद की अटूट आस्था को दर्शाता है, बल्कि यह भी सिखाता है कि बुराई का अंत निश्चित है। इस पर्व के माध्यम से हम सीख सकते हैं कि हमें अहंकार, अधर्म और अन्याय का विरोध करना चाहिए और सच्चाई, ईमानदारी और भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिए।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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