मोहिनी एकादशी व्रत 8 मई 2025
सूर्य पुराण में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली मोहिनी एकादशी की महिमा का वर्णन है। महाराज युधिष्ठिरने भगवान् श्रीकृष्ण को पूछा, "हे जनार्दन! वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है ? इस व्रतका पालन कैसे करे ? इसे करने से क्या पुण्य प्राप्त होता है, कृपया आप विस्तारसे कहिए।" भगवान् श्रीकृष्णने कहा, "हे धर्मपुत्र! ध्यान से सुनिए! जो कथा वशिष्ठ मुनि ने प्रभू रामचंद्रको सुनायी थी वह मै आपको कहता हूँ ।"
पूर्व कालमें प्रभु रामचंद्र वशिष्ठ महाराज को पूछने लगे, "हे आदरणीय ऋषिवर ! सीताजी के विरह से मैं अत्यंत निराश हूँ कृपया आप हमें ऐसा व्रत बताईये जिसके प्रभाव से सब पापोंसे और दुःखोसे मुक्ति मिले।"
प्रभु रामचंद्रजीके आध्यात्मिक गुरु वशिष्ठजी ने कहा, “प्रिय राम! आप बहुत बुद्धिमान है! आपके पवित्र नाम से ही सभी प्राणियोंके दुःख दूर होते है, उनका जीवन मंगलमय होता है। फिर भी सभी जीवोंके उद्धार के लिए पूछा गया यह प्रश्न प्रशंसनीय है। अब मैं आपको इस व्रतकी विस्तारपूर्वक कथा कहता हूँ । वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में मोहिनी एकादशी आती है। वो बहुत ही मंगलकारक है, इस व्रत के पालन से व्यक्ति संसारके दुःखोसे, अनेक पापोंसे तथा भौतिक भ्रमसे मुक्त होता है।
"प्राचीन काल में सरस्वती नदी के किनारे रम्य भद्रावती नामक राज्य था । धृतिमान नामक राजा वहाँ राज्य करता था। चंद्रवंशमें जन्मा यह राजा सहिष्णु और सत्यवादी था। उसी शहरमें धनपाल नामक एक वैश्य था जो बहुत ही पुण्यवान वैष्णव था। जनहित हेतू उस भक्त धनपाल ने नगर
में अनेक धर्मशाला, रुग्णालय, बडे मार्ग, पाठशाला, बाजार और भगवान् विष्णुके मंदिर की स्थापना की थी। पीने के पानी के कुएँ, शुद्ध जल का तालाब तथा अन्नछत्र पूरे नगर में बनाए थे । इस प्रकार जनकल्याण के लिए अपने धन का उपयोग योग्य तरीके से करते हुए अपना नाम धनपाल सचमुच सार्थक किया। सबका हित चिंतनेवाला, सब के उपर प्रेम रखनेवाले इस वैष्णव के पाँच पुत्र थे। समन, द्युतिमन, मेधवी, सुकीर्ति और धृष्टबुद्धि ये उनके नाम थे । इन सभी में धृष्टबुद्धी बहुत पापी और दुराचारी था। दुष्ट व्यक्तियों का संग, व्यभिचारी स्त्रियोंका संग, निष्पाप पशु की हत्या, मांस, मदिरापान करना इन सब पाप कृत्योंसे वह अत्यंत पापी और दुराचारी बना था अपने परिवार के लिए वो कलंक था। देवता, ब्राह्मण, बुजुर्ग तथा अतिथियोंको कभी आदर नही देता, सदा पाप करने में रत था।
एक दिन मार्गपर वेश्या के कंधेपर हाथ रखकर जाते हुए उसे उसके पिता धनपालने देखा और उन्हे बहुत दुःख हुआ। उसी दिन उन्होने धृष्टबुद्धीको घरसे बाहर निकाला। इसलिए धृष्टबुद्धी अपने माता-पिता, भाई, रिश्तेदार और वैश्य समाज से अलग हुआ और हर एक के तिरस्कार का विषय बना। पिताके निकालने से धृष्टबुद्धी घर से बाहर जाकर ज्यादा पापकृत्योंमें व्यस्त हुआ। खुदके वस्त्र और धन बेचकर जो भी मिला वो सभी उसने पापकृत्योंमें लगाया। अंत में जब धन खत्म हुआ तो निर्धनता के कारण उसकी हालत भिखारी जैसी हुई। अन्न न मिलने से उसका शरीर कमजोर हो गया, उसके सभी धूर्त मित्रोंने बहाने बनाकर उसका त्याग किया।
धृष्टबुद्धी को अतिशय चिंता हो रही थी, भुख से वह व्याकुल हो रहा था। अब मुझे क्या करना चाहिए। अन्न और धन कहाँ से प्राप्त होगा ? इन प्रश्नोंको सोचकर वह अशांत हो रहा था। आखिर उसने चोरी करने का निश्चय किया और शुरुआत भी की। बहुत बार राजा के सिपाही उसे पकड़ने के बाद भी, उसके पिता का मान और बढप्पन देखकर छोड़ देते। फिर भी उसने चोरी करना बंद नहीं किया। एक बार विशेष चोरी करते समय वह पकड़ा गया। तब राजाने उसे कहा, “हे मूर्ख, आज तुम इस राज्यमें नही रह सकते क्योंकि तुम महापापी हो। मैं तुम्हे अभी छोड रहा हूँ, तुरंत इस राज्य के बाहर चले जाओ तुम्हे जहाँ जाना है तुम जा सकते हो। फिर से सजा मिलने के भय से धृष्टबुद्धी राज्य के बाहर गहन वन में गया। अविवेक के कारण निष्पाप प्राणियोंकी हत्त्या करके उनका कच्चा मांस वह खाने लगा। किसी शिकारी की भाँति हाथ में धनुष्य लेकर वह वन में पापकृत्य करते भटकने लगा।
धृष्टबुद्धी हर समय दुःखी और चिंतित रहता। परंतु एक दिन उसके पिछले जन्म के पुण्यकर्म के प्रभावसे, वह एक ऋषिके आश्रम में पहुँचा। उस आश्रम में कौण्डिण्य नामक बडे तपस्वी रहते थे। वैशाख मास था और कौण्डिण्य मुनी गंगास्नान से लौट रहे थे । दुःखोंसे परेशान धृष्टबुद्धी ने अनजाने में ऋषिके वस्त्रसे टपकते जल को स्पर्श किया और आश्चर्यम्! वह अपने सभी पापोंसे मुक्त हो गया। उसी समय उसने ऋषिको दंडवत प्रणाम करके विनम्रता से पूछा, "हे ऋषिवर! मै बहुत पापी व्यक्ति हूँ । ऐसा कौनसा भी पाप नहीं है जो मैने नहीं किया हो कृपया ऐसा व्रत बताईये जिसके प्रभावसे मैं सभी पापोंसे मुक्त हो जाऊँ। अपर्याद पापकृत्यों के कारण मैं अपने कुटुंब से, मित्रोंसे, समाज से दूर हो गया हूँ साथ ही मैं मानसिक दुःख के खाई में गिरा हूँ।"
यह सब सुनते ही परदुखदुखी होनेवाले कौण्डिण्य ऋषिने कहा, “सुनो! मेरु पर्वतसे भी अधिक प्रचंड पापों की राशि को नष्ट करनेवाले व्रत के बारे में मै तुम्हे कहता हूँ । उस व्रत के पालनसे कुछ ही क्षणोंमे तुम्हारे पापों का नाश हो जाएगा। वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का पालन करते ही तुम सभी पापोंसे मुक्त हो जाओगे।"
ऋषि के आदेश से धृष्टबुद्धीने इस व्रतका कठोर पालन किया। हे राजन! इस व्रत के पालन से वह सभी पापोंसे मुक्त होकर दिव्य शरीर प्राप्त करके गरुडपर सवार होकर विष्णुलोक चला गया। हे रामचंद्र ! इस व्रत से सभी पापोंसे, भ्रमसे व्यक्ति मुक्त होता है। इस व्रत से प्राप्त होनेवाला फल तीर्थमें स्नान करनेसे अथवा यज्ञ करनेसे प्राप्त होनेवाले से भी श्रेष्ठ है ।
आचार्य दिनेश पाण्डेय शास्त्री (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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