
कालव्यालमुखग्रासत्रासनिर्णाशहेतवे ।
श्रीमद्भागवतं शास्त्रं कलौ कीरेण भाषितम् ॥
तोता बड़ा मीठा बोलता है । किन्तु
बोलता वही है , जो उसे सिखाया जाता है । तो
श्रीशुकदेवजी महाराज भी जगत् में कल्याणकारी भागवतरूपी फल प्रदान तो किया , पर यह मनमुखी फल नहीं है । उन्हें भी
आचार्यपरम्परा से जो प्राप्त हुआ , वही
उन्होंने संसार को दिया । जब महाराज परीक्षित के सामने मृत्यु का भय उपस्थित हुआ , सात दिन में मरना सुनिश्चित हो गया ; तो वे अपने कल्याण का मार्ग खोजने लगे
। उसी समय महामुनि शुकदेवजी ने ही श्रीमद्भागवतसंहिता के द्वारा परीक्षित को
भयमुक्त कर दिया । जैसे ही गंगा के तट पर शुकदेवजी भागवतसंहिता का प्रवचन करने के
लिए विराजमान हुए , तो देवताओं को पता चल गया ।
सुधाकुम्भं
गृहीत्वैव देवास्तत्र समागमन् ( भा.मा. 1/13 )
सभी देवतालोग अमृत का कलश लेकर आये और शुकदेवजी को प्रणाम करके अमृत
का कलश सामने रख दिया । देवता बोले , महाराज
! हमने जैसे सुना कि परीक्षित के सामने मृत्यु का भय उपस्थित हुआ है , इसलिए आप उन्हें कथा सुनाने जा रहे हैं
। महाराजजी ! अमृत का कलश हम ले आयें हैं । परीक्षित को यह अमृत पिला दीजिये , तो वह मृत्युभय से मुक्त हो जायेंगे ।
शुकदेवजी को सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि देवतालोग इतने गये । घाटे का सौदा देवता
कभी नहीं करते । आज अपना अमृत रख दिया सामने कि ले लीजिए महाराज ! परीक्षित को
पिला दीजिए और इसके बदले में हम यह भागवतामृत चाहते हैं । शुकदेवजी हँसते हुए बोले
, अरे देवताओं ! तुम लोग श्रद्धा से
श्रोता बनकर आते , तो मैं अवश्य सुनाता । पर तुम तो
सौदागर बनकर आये हो । सौदागर ही नहीं , अपितु
ठग बनकर आये हो । क्योंकि कोई काँच का टुकड़ा देकर बदले में करोड़ों की कीमती
बहुमूल्य मणि माँगे , तो उसे सरासर ठग ही कहा जायेगा । कहाँ
काँच का टुकड़ा और कहाँ लाखों की मणि ? देवताओं
! तुम्हारा अमृत काँच है और मेरा कथामृत करोड़ों की मणि है । विनिमय बराबर की
वस्तुओं का होता है । पर काँच और मणि की तो कोई बराबरी नहीं है , इसलिए तुम ठग हो । क्व सुधा क्व कथा
लोके क्व काचः क्व मणिर्महान् । ब्रहारातो विचार्यैवं देवाजहास अभक्तांस्तांश्च
विज्ञाय न ददौ स कथामृतम् श्रीमद्भागवती वार्ता सुराणामपि दुर्लभा ॥ सूतजी कहते
हैं , हे ऋषियों ! यह देवदुर्लभ कथामृत है , क्योंकि देवताओं को शुकदेवजी ने डाँटकर
भगा दिया , पर नहीं दिया । विचार कीजिए कि कथामृत
और सुधामृत में कौन - सा अमृत श्रेष्ठ है ? सुधामृत
का यह वैशिष्ट्य है बड़े - बड़े पुण्यात्मा जब इस मृत्युलोक से देह त्यागकर स्वर्गलोक
में पहुँचते हैं , तब यह प्राप्त होता है । इसके विरुद्ध , कथामृत की यह विशेषता है कि कथामृत के
लिए तो कोई पुण्यात्मा हो ,
दुष्टात्मा हो , पतितात्मा हो , या पापात्मा हो - कोई कैसा भी हो , यह अमृत सबको पिलाया जाता है और सबके
लिए सुलभ है । तो पहली विशेषता यह सिद्ध हुई कि स्वर्ग का सुधामृत पक्षपाती है (
भेदभाव करता है ) और हरिकथामृत निष्पक्ष है , जो
आवे सबको मिलता है , अत : अभेदवादी है । दूसरी विशेषता क्या
है कि स्वर्ग का अमृत पीने वाले देवताओं के शनैः - शनैः सुकृत क्षीण होते चले जाते
हैं और पुण्य समाप्त होते ही वह धरातल पर गिर पड़ते हैं । क्षीणे पुण्ये
मृत्युलोकं विशन्ति हरिकथामृत की विशेषता है कि ' कल्मषापहम् '
- हरिकथामृत पापों
को नष्ट करने वाला है । स्वर्ग का सुधामृत पुण्यों को क्षीण करने वाला और
हरिकथामृत पापों को क्षीण करने वाला है । एक ओर स्वर्ग का अमृत पुण्यों को क्षीण
करके ऊपर से नीचे गिराता है । इसके विपरीत दूसरी ओर , हरिकथामृत पाप व कल्मषों को नष्ट करके
श्रीहरि के परमपद को प्रदान करवाता है । अब आप स्वयं ही निर्णय करें कि कौन - सा
अमृत श्रेष्ठ माने ? स्वर्ग सुधामृत दीर्घजीवी बनाता है , पर हरिकथामृत दिव्यजीवी बनाता है ।
स्वर्ग का सुधामृत अमरत्व प्रदान करता है , पर
हरिकथामृत अभयत्व प्रदान करता है ।





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