सूतजी कहते हैं - शौनक ! जो श्रवण , कीर्तन और मनन - इन तीनों साधनोंके
अनुष्ठानमें समर्थ न हो ,
वह भगवान् शंकरके लिंग एवं मूर्तिकी
स्थापना करके नित्य उसकी पूजा करे तो संसार - सागरसे पार हो सकता है । वंचना अथवा
छल न करते
हुए अपनी शक्तिके अनुसार धनराशि ले जाय और उसे शिवलिंग अथवा शिवमूर्तिकी सेवाके
लिये अर्पित कर दे । साथ ही निरन्तर उस लिंग एवं मूर्तिकी पूजा भी करे । उसके लिये
भक्तिभावसे मण्डप , गोपुर , तीर्थ , मठ एवं क्षेत्रकी स्थापना करे तथा उत्सव रचाये । वस्त्र , गन्ध , पुष्प , धूप , दीप तथा पूआ और शाक आदि व्यंजनोंसे
युक्त भाँति - भाँतिके भक्ष्य - भोजन अन्न नैवेद्यके रूपमें समर्पित करे । छत्र , ध्वजा , व्यजन , चामर तथा अन्य अंगोंसहित राजोपचारकी
भाँति सब सामान भगवान् शिवके लिंग एवं मूर्तिको चढ़ाये । प्रदक्षिणा , नमस्कार तथा यथाशक्ति जप करे । आवाहनसे
लेकर विसर्जनतक सारा कार्य प्रतिदिन भक्तिभावसे सम्पन्न करे । इस प्रकार शिवलिंग
अथवा शिवमूर्तिमें भगवान् शंकरकी पूजा करनेवाला पुरुष श्रवणादि साधनोंका अनुष्ठान
न करे तो भी भगवान् शिवकी प्रसन्नतासे सिद्धि प्राप्त कर लेता है । पहलेके बहुत -
से महात्मा पुरुष लिंग तथा शिवमूर्तिकी पूजा करनेमात्रसे भवबन्धनसे मुक्त हो चुके
हैं । ऋषियोंने पूछा - मूर्तिमें ही सर्वत्र देवताओंकी पूजा होती है ( लिंगमें
नहीं ) , परंतु
भगवान् शिवकी पूजा सब जगह मूर्तिमें और लिंगमें भी क्यों की जाती है ? सूतजीने कहा - मुनीश्वरो ! तुम्हारा यह
प्रश्न तो बड़ा ही पवित्र और अत्यन्त अद्भुत है । इस विषयमें महादेवजी ही वक्ता हो
सकते हैं । दूसरा कोई पुरुष कभी और कहीं भी इसका प्रतिपादन नहीं कर सकता । इस
प्रश्नके समाधानके लिये भगवान् शिवने जो कुछ कहा है और उसे मैंने गुरुजीके मुखसे जिस प्रकार सुना
है , उसी
तरह क्रमशः वर्णन करूँगा । एकमात्र भगवान् शिव ही ब्रह्मरूप होनेके कारण ' निष्कल ' ( निराकार ) कहे गये हैं । रूपवान्
होनेके कारण उन्हें ' सकल ' भी कहा गया है । इसलिये वे सकल और निष्कल दोनों । शिवके निष्कल-
निराकार होनेके कारण ही उनकी पूजाका आधारभूत लिंग भी निराकार ही प्राप्त हुआ है ।
अर्थात् शिवलिंग शिवके निराकार स्वरूपका प्रतीक है । इसी तरह शिवके सकल या साकार
होनेके कारण उनकी पूजाका आधारभूत विग्रह साकार प्राप्त होता है अर्थात् शिवका
साकार विग्रह उनके साकार स्वरूपका प्रतीक होता है । सकल और अकल ( समस्त अंग
आकारसहित साकार और अंग - आकारसे सर्वथा रहित निराकार ) रूप होनेसे ही वे ' ब्रह्म ' शब्दसे कहे जानेवाले परमात्मा हैं ।
यही कारण है कि सब लोग लिंग ( निराकार ) और मूर्ति ( साकार ) दोनोंमें ही सदा
भगवान् शिवकी पूजा करते हैं । शिवसे भिन्न जो दूसरे - दूसरे देवता हैं , वे साक्षात् ब्रह्म नहीं हैं । इसलिये
कहीं भी उनके लिये निराकार लिंग नहीं उपलब्ध होता । पूर्वकालमें बुद्धिमान्
ब्रह्मपुत्र सनत्कुमार मुनिने मन्दराचलपर नन्दिकेश्वरसे इसी प्रकारका प्रश्न किया
था । सनत्कुमार बोले - भगवन् ! शिवसे भिन्न जो देवता हैं , उन सबकी पूजाके लिये सर्वत्र प्राय :
वेर ( मूर्ति ) -मात्र ही अधिक संख्यामें देखा और सुना जाता है । केवल भगवान्
शिवकी ही पूजामें लिंग और वेर दोनोंका उपयोग देखने में आता है । अतः कल्याणमय
नन्दिकेश्वर ! इस विषयमें जो यह तत्त्वकी बात हो , उसे मुझे इस प्रकार बताइये , जिससे अच्छी तरह समझमें आ जाय ।
नन्दिकेश्वरने कहा - निष्पाप ब्रह्मकुमार ! आपके इस प्रश्नका हम - जैसे लोगोंके
द्वारा कोई उत्तर नहीं दिया जा सकता ; क्योंकि गोपनीय विषय है और लिंग
साक्षात् ब्रह्मका प्रतीक है तथापि आप शिवभक्त हैं । इसलिये इस विषयमें भगवान्
शिवने जो कुछ बताया है , उसे ही आपके समक्ष कहता हूँ । भगवान् शिव ब्रह्मस्वरूप और निष्कल (
निराकार ) हैं ; इसलिये
उन्हींकी पूजामें निष्कल लिंगका उपयोग होता है । सम्पूर्ण वेदोंका यही मत है ।
सनत्कुमार बोले – महाभाग योगीन्द्र ! आपने भगवान् शिव तथा दूसरे देवताओंके पूजनमें
लिंग और वेरके प्रचारका जो रहस्य विभागपूर्वक बताया है , वह यथार्थ है । इसलिये लिंग और वेरकी
आदि उत्पत्तिका जो उत्तम वृत्तान्त है , उसीको मैं इस समय सुनना चाहता हूँ । लिंगके प्राकट्यका
रहस्य सूचित करनेवाला प्रसंग मुझे सुनाइये । इसके उत्तरमें नन्दिकेश्वरने भगवान् महादेवके
निष्कल स्वरूप लिंगके आविर्भावका प्रसंग सुनाना आरम्भ किया । उन्होंने ब्रह्मा तथा
विष्णुके विवाद , देवताओंकी व्याकुलता एवं चिन्ता , देवताओंका दिव्य कैलास - शिखरपर गमन , उनके द्वारा चन्द्रशेखर महादेवका स्तवन
, देवताओंसे
प्रेरित हुए महादेवजीका ब्रह्मा और विष्णुके विवाद - स्थलमें आगमन तथा दोनोंके
बीचमें निष्कल आदि अन्तरहित भीषण अग्निस्तम्भके रूपमें उनका आविर्भाव आदि
प्रसंगोंकी कथा कही । तदनन्तर श्रीब्रह्मा और विष्णु दोनोंके द्वारा उस ज्योतिर्मय
स्तम्भकी ऊँचाई और गहराईका थाह लेनेकी चेष्टा एवं केतकीपुष्पके शाप - वरदान आदिके
प्रसंग भी सुनाये । ( अध्याय ५-८ )
महेश्वरका ब्रह्मा और विष्णुको लिंग पूजनका महत्त्व बताना
जुलाई 08, 2020
0
Tags






आपकी अमूल्य टिप्पणियों हमें उत्साह और ऊर्जा प्रदान करती हैं आपके विचारों और मार्गदर्शन का हम सदैव स्वागत करते हैं, कृपया एक टिप्पणी जरूर लिखें :-