
ग्रस्तोदय खग्रास चन्द्रग्रहण 8 नवम्बर 2022
यह खग्रास चन्द्रद्रहण 8 नवम्बर , 2022 ई. को सम्पूर्ण भारत में ग्रस्तोदय रूप में दिखाई देगा । अर्थात् भारत के किसी भी नगर में जब 8 नवम्बर , 2022 ई . को सायंकाल चन्द्रोदय होगा , उससे काफी समय पहले ही चन्द्रग्रहण प्रारम्भ हो चुका होगा।
इस ग्रहण का प्रारम्भ तथा खग्रास - प्रारम्भ भारत के किसी भी नगर / राज्य में दिखाई नहीं देगा , केवल उत्तर पूर्वी भारत में खग्रास समाप्ति (17 घं. - 12 मिं.) से पूर्व जहाँ चन्द्रोदय होगा , वहाँ इस ग्रहण की खग्रास समाप्ति एवं कुछ सुदूर पूर्वी क्षेत्रों में (16 घं. - 29 मि. से पहले) ग्रहणमध्य भी कुछ मिनट के लिए दृश्य होगा। शेष भारत ( उत्तर - दक्षिण ) में तो जब चन्द्रोदय होगा, तब तक खग्रास समाप्त (17 घं.- 12 मि. के बाद) हो चुका होगा तथा केवल ग्रहण समाप्ति ही दृष्टिगोचर होगी। अतएव, भारत में इस ग्रहण का खण्डग्रास रूप ही दिखाई देगा भूगोल पर इस ग्रहण के स्पर्शादि काल (भा. स्टैं. टा.) इस प्रकार हैं -
ग्रहण (स्पर्श) प्रारम्भ 14 घं. - 39 मि.
खग्रास प्रारम्भ 15 घं. - 46 मि.
ग्रहण मध्य (परमग्रास) 16 घं. - 29 मि.
खग्रास समाप्त 17 घं. - 12 मि.
ग्रहण (मोक्ष) समाप्त 18 घं. - 19 मि.
चन्द्रमालिन्य प्रारम्भ (Enters Penumbra) = 3-40 मि. तथा चन्द्र क्रान्ति निर्मल (Leaves Penumbra 19 घं. -28 मि.)
पर्वकाल 3 घं. - 40 मि. ग्रहण का ग्रासमान = 1.363
भारत में स्थानीय चन्द्रोदय से ही इस ग्रहण का प्रारम्भ माना जाएगा क्योंकि भारत में मुख्यतः चन्द्रोदय के बाद इस ग्रहण की समाप्ति ही देखी जा सकेगी।
भारत के अतिरिक्त यह ग्रहण कहाँ दिखाई देगा ?
यह खग्रास चन्द्रग्रहण दक्षिणी अमरीका , उत्तरी अमरीका, आस्ट्रेलिया, एशिया तथा प्रशान्त महासागर में दिखाई देगा।
इस ग्रहण की खग्रास आकृति उत्तर - पश्चिमी कैनेडा में दिखाई देगी। इस ग्रहण का आरम्भ चन्द्रास्त के समय अर्जेन्टीना के पश्चिमी क्षेत्रों, चिली, बोल्विया ब्राजील के पश्चिमी क्षेत्रों तथा उत्तरी एटलांटिक महासागर में दिखाई देगा। जबकि भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, उज़बेकिस्तान तथा पूर्वी रूस में चन्द्रोदय के समय, इस ग्रहण की समाप्ति दृश्य होगी।
ग्रहण का पर्वकाल - चन्द्रग्रहण में स्नानदान, जपादि का विशेष माहात्म्य होता है। ग्रस्तोदय ग्रहण में चन्द्रोदय से ग्रहण समाप्ति तक के काल को 'पर्वकाल' माना जाता है। धर्मपरायण लोगों को चन्द्रोदय को ही ग्रहण - आरम्भ मानकर सभी धार्मिक क्रियाओं का सम्पादन व अनुष्ठान करना चाहिए।
ध्यान दें, यह ग्रहण कार्तिक पूर्णिमा, को घटित हो रहा है। इसलिए यहाँ कार्तिक पूर्णिमा के स्नान का महत्त्व और भी विशेष हो जाएगा।
ग्रहण का सूतक - इस ग्रहण का सूतक 8 नवम्बर, 2022 ई को प्रातः सूर्योदय के साथ ही प्रारंभ हो जाएगा। सामान्यतः चंद्र ग्रहण का सूतक स्पर्श से 9 घंटे पूर्व माना जाता है जो (प्रातः 5:38) से सूतक प्रारंभ होगा परंतु ग्रस्तोदय चंद्र ग्रहण होने से पूर्ववर्ती पूरे दिन में ग्रहण का सूतक माना गया है। शुद्ध (ग्रहण मोक्ष के बाद) चंद्र - बिंब के दर्शन तथा तर्पण करने के बाद ही सभी धार्मिक कार्य करने चाहिए।
ग्रहणकाल तथा बाद में क्या करें, क्या न करें ?
ग्रहण के सूतक और ग्रहणकाल में स्नान, दान, जप - पाठ , मन्त्र - स्तोत्र पाठ एवं अनुष्ठान तीर्थस्नान , ध्यान, हवनादि शुभ कृत्यों का सम्पादन करना कल्याणकारी होता है । जब ग्रहण का प्रारम्भ हो , तो स्नान - जप , मध्यकाल में होम, देवपूजा और ग्रहण का मोक्ष समीप होने पर दान तथा पूर्ण मोक्ष होने पर स्नान करना चाहिए।
स्पर्शे स्नानं जपं कुर्यान्मध्ये होमं सुराचर्नम्।
मुच्यमाने सदा दानं विमुक्तौ स्नानमाचरेत् ॥
सूर्य ग्रहणकाल में भगवान् सूर्य की पूजा , आदित्यहृदय स्तोत्र , सूर्याष्टक स्तोत्र आदि सूर्य - स्तोत्रों का पाठ करना चाहिए । पका हुआ अन्न , कटी हुई सब्जी ग्रहणकाल में दूषित हो जाते हैं , उन्हें नहीं रखना चाहिए । परन्तु तेल या घी में पका ( तला हुआ ) अन्न , घी , तेल दूध , दही , लस्सी , मक्खन , पनीर , आचार , चटनी , मुरब्बा आदि में तेल या कुशातृण रख देने से ये ग्रहणकाल में दूषित नहीं होते । सूखे खाद्य पदार्थों में तिल या कुशा डालने की आवश्यकता नहीं । (मन्वर्थ मुक्तावली) यथा-
अन्नं पक्वमिह त्याज्यं स्नानं सवसनं ग्रहे।
वारितक्रारनालादि तिलैदंभौर्न दुष्यते॥
ध्यान रहे , ग्रस्त सूर्यबिम्ब को नंगी आँखों से कदापि न देखें। वैल्डिंग वाले काले ग्लास में से इसे देख सकते हैं । ग्रहण के समय तथा ग्रहण की समाप्ति पर गर्म पानी से स्नान करना निषिद्ध है । - न स्नायादुष्णतोयेन नास्पृशं स्पर्शयेत्तथा ।। रोगी , वृद्ध , गर्भवती स्त्रियों , बालकों के लिए निषेध नहीं है। ग्रहणकाल में सोना, खाना - पीना, तैलमर्दन , मैथुन , मूत्र , पुरीषोत्सर्ग निषिद्ध है । नाखुन भी नहीं काटने चाहिए। सूर्य ग्रहण पर हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, प्रयागादि तीर्थों पर स्नान, दान, तर्पणादि का विशेष माहात्म्य होता है।
पुत्रजन्मनि यज्ञे च तथा सङ्क्रमणे रवेः।
राहोश्च दर्शने कार्यं प्रशस्तं नान्यथा निशि॥ (वसिष्ठ)
अर्थात् पुत्र की उत्पत्ति , यज्ञ , सूर्य - संक्रान्ति और सूर्य - चन्द्र के ग्रहण में रात में भी स्नान करना चाहिए।
सूतक एवं ग्रहणकाल में मूर्त्ति स्पर्श करना , अनावश्यक खाना - पीना , मैथुन , निद्रा , नाखुन - काटना , तैलाभ्यंग वर्जित है। झूठ - कपटादि , वृथा - अलाप , मूत्र - पुरीषोत्सर्ग से परहेज़ करना चाहिए। सूतककाल में बाल , वृद्ध , रोगी एवं गर्भवती स्त्रियों को यथानुकूल भोजन या दवाई आदि लेने में दोष नहीं । ग्रहण / सूतक से पहिले ही दूध / दही , आचार , चटनी , मुरब्बा में कुशतृण रख देना श्रेयस्कर होता है । इससे ये दूषित नहीं होते । सूखे खाद्य - पदार्थों में कुशा डालने की आवश्यकता नहीं।
ग्रहण में गर्भवती महिलाएं इन बातों का रखें विशेष ध्यान
ग्रहण के वक्त गर्भवती महिलाओं को कुछ विशेष बातों का खास ख्याल रखना चाहिए, नहीं तो, इस दौरान लापरवाही बरतने पर शिशु के स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है।
1. मान्यता है कि ग्रहण गर्भवती महिलाओं के लिए अशुभ प्रभाव वाला देने वाला होता है, इसलिए ग्रहण की अवधि में इनको घर में रहने की सलाह दी जाती है।
2. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को सब्जी काटना, कपड़े सीना आदि कार्यों में धारदार उपकरणों का उपयोग करने से बचना चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु को शारीरिक दोष हो सकता है।
3. ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं को सोना, खाना पकाना और सजना-संवरना नहीं चाहिए।
ग्रहण के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए गर्भवती महिला को तुलसी का पत्ता जीभ पर रखकर हनुमान चालीसा और दुर्गा स्तुति का पाठ करना चाहिए।
5. इस दौरान देव मंत्रों के उच्चारण से भी ग्रहण के दुष्प्रभाव से रक्षा होती है।
6. ग्रहण की समाप्ति के बाद गर्भवती महिला को पवित्र जल से स्नान करना चाहिए, नहीं तो उसके शिशु को त्वचा संबधी रोग होने की आशंका होती है।
7. ग्रहण के दौरान मानसिक रूप से मंत्र जाप का बड़ा महत्व है। गर्भवती महिलाएं इस दौरान मंत्र जाप कर अपनी रक्षा कर सकती है। इससे स्वयं के और गर्भस्थ शिशु के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक और उत्तम असर पड़ता है।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (उत्तराखण्ड & मुम्बई)
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