Type Here to Get Search Results !

फूलदेई त्यौहार 15 मार्च 2023

फूलदेई त्यौहार 15 मार्च 2023

 

उत्तराखंड राज्य न केवल प्राकृतिक परिदृश्य और प्राकृतिक सौंदर्य से समृद्ध है बल्कि इस प्रदेश की अपनी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है. यहॉ की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराएं मुख्य रूप से धर्म और प्रकृति में निहित हैं. यहॉ के हर त्योहर में प्रकृति का महत्व झलकता है. इसी क्रम मे एक त्योहार है- फूलदेई
फूलदेई भारत के उत्तराखण्ड राज्य का एक स्थानीय त्यौहार हैजो चैत्र माह के आगमन पर मनाया जाता है. सम्पूर्ण उत्तराखंड में इस चैत्र महीने के प्रारम्भ होते ही अनेक पुष्प खिल जाते हैंजिनमें फ्यूंलीलाईग्वीर्यालकिनगोड़हिसरबुराँस आदि प्रमुख हैं चैत्र की पहली गते से छोटे-छोटे बच्चे हाथों में कैंणी (बारीक बांस की बनी टोकरी) लेकर प्रातः काल 4-5 बजे के लगभग अपने खेतों में या आँगन में जाकर फूलों को एकत्र करते हैं . अनन्तर सर्वप्रथम गाँव के मंदिर की देहली पर फूल श्रध्दा के साथ चढ़ाए जाते हैं . तत्पश्चात अपने घरों की सभी देहलियों पर इन पुष्पों को चढ़ाया जाता है
इसे गढ्वाल मे घोघा कहा जाता है. पहाड के लोगों का जीवन प्रकृति पर बहुत निर्भर होता हैइसलिये इनके त्यौहार किसी न किसी रुप में प्रकृति से जुड़े होते हैं. प्रकृति ने जो उपहार उन्हें दिया हैउसे वरदान के रूप मे स्वीकर करते है और उसके प्रति आभार वे अपने लोक त्यौहारों के माध्यम से प्रकट करते है

फूलदेई लोकपर्व है

चैत के महीने की संक्रांति को जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है सर्दियों के मुश्किल दिन बीत जाते हैं उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर ओढ़ने लगते हैं तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया जाता है। ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है।


फूल और चावलों को गांव के घर की देहरी यानी मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं। इस दौरान एक गाना भी गाया जाता है- फूलदेई, छम्मा देई...जतुकै देला, उतुकै सही...दैणी द्वार, भर भकार

फूलदेई त्योहार का संबंध भी प्रकृति के साथ जुडा है. यह बसंत ऋतु के स्वागत का प्रतीक हैबसंत ऋतु में चारो और रंग बिरंगे फूल खिल जाते हैबसन्त के आगमन से पूरा पहाड़ बुरांस और की लालिमा और गांव आडूखुबानी के गुलाबी-सफेद रंगो से भर जाता है. फिर चैत्र महीने के पहले दिन इतने सुंदर उपहार देंने के लिये गांव के सारे बच्चों के माध्यम से प्रकृति मां का धन्यवाद अदा किया जाता है. इस दिन छोटे बच्चे खासकर लड़कियां सुबह ही उठकर जंगलों की ओर चले जाते हैं और वहां से प्योली/फ्यूंलीबुरांसबासिंग आदि जंगली फूलो के अलावा आडूखुबानीपुलम के फूलों को चुनकर लाते हैं. फिर बच्चे एक थाली या बास की टोकरी में चावलगुड़, खेतों और जंगल से तोड़ कर लाये ताजे फूलों को सजाकर बच्चे बारी-बारी से मंदिर - गांव मे घर-घर पर जाते है और हर घर की देहरी पर फूल डालते है हुए यह गीत गाते है :-
फूल देईछम्मा देई,
देणी द्वारभर भकार,
ये देली स बारम्बार नमस्कार,
फूले द्वार……फूल देई-छ्म्मा देई.

गडवाल में इस दिन घोघा देवता की पूजा की जाती है और फूलों की थाली और डलिया लेकर बच्चो की टोली पूरे गांव मे घर-घर पर जाती है और हर घर की देहरी पर फूल डालते हैवे घर की समृद्धि के लिए अपनी शुभकामनाएं देते हैं. ये फूल अच्छे भाग्य के संकेत माने जाते हैं. महिलाए घर आये बच्चों का स्वागत करती हैउन्हे उपहार मे चावलगुड़और कुछ पैसे और आशीर्वाद देते है. इस तरह से यह त्योहार आठ दिन तक चलता है. आठ्वें दिन सारे बच्चे किसी एक घर या किसी सामुहिक स्थान पर उपहार मे मिले गुड़ चावल दाल आदि से हलवा और अन्य पारम्परिक व्यंजन बनाते है. इसमे बडे लोग भी उनकी मदद करते है. इस प्रसाद से सबसे पहले देवता को चढाया जाता है बाद में सभी को बॉटा जाता है. बच्चे बडे स्वाद से ये पकवान खाते हैं और सब गांव वालों को खिलाते है

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

Top Post Ad

Below Post Ad