विनायक चतुर्थी व्रत 16 नवम्बर 2023
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी कहते हैं इस दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने से विशेष शुभ फल की प्राप्ति होती है एवं सभी प्रकार की कामनाएं पूर्ण होती है। जो श्रद्धालु जन विनायक चतुर्थी का व्रत रखते हैं वे श्रद्धालु दोपहर में गणेश जी की विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करेंगे।
हिन्दु कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती है। हिन्दु धर्मग्रन्थों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान गणेश की तिथि है। अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं।
हालाँकि विनायक चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य विनायक चतुर्थी का व्रत भाद्रपद के महीने में होता है। भाद्रपद के दौरान पड़ने वाली विनायक चतुर्थी को गणेश चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। सम्पूर्ण विश्व में गणेश चतुर्थी को भगवान गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।
विनायक चतुर्थी मैं चंद्र दर्शन निषेध
विनायक चतुर्थी मैं चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विनायक चतुर्थी को चंद्र दर्शन करने से कलंक लगता है।
विनायक चतुर्थी पूजा - विधि
सुबह उठ कर स्नान करें। स्नान करने के बाद घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें। भगवान गणेश को स्नान कराएं। स्नान के बाद भगवान गणेश को साफ वस्त्र पहनाएं। भगवान गणेश को सिंदूर का तिलक लगाएं। सिंदूर का तिलक अपने माथे में भी लगाना चाहिए। गणेश भगवान को दुर्वा अतिप्रिय होता है। भगवान गणेश को दुर्वा अर्पित करना चाहिए। गणेश जी को लड्डू, मोदक का भोग लगाएं। गणेश जी की आरती करें।
विनायक चतुर्थी की कथा
एकबार माता पार्वती एक बालक की मूर्ति बनाकर उसमें जान फूंकती हैं।
इसके बाद वे कंदरा में स्थित कुंड में स्नान करने के लिए चली जाती हैं। लेकिन जाने
से पहले माता अपने पुत्र को आदेश देती हैं कि किसी भी परिस्थिति में किसी भी
व्यक्ति को कंदरा में प्रवेश नहीं करने देना। बालक अपनी माता के आदेश का पालन करने
के लिए कंदरा के द्वार पर पहरा देने लगता है। कुछ समय बीत जाने के पश्चात भगवान
शिव वहां पहुंचते हैं भगवान शिव जैसे ही कंदरा के अंदर जाने लगते हैं तो वह बालक
उन्हें रोक देता है। महादेव बालक को समझाने का प्रयास करते हैं । लेकिन वह उनकी एक
नहीं सुनता है जिससे क्रोधित होकर भगवान शिव त्रिशूल से बालक का शीश धड़ से अलग कर
देते हैं।
इस घटना का पता जब माता पार्वती को हुआ तो वह स्नान करके कंदरा से बाहर आती हैं और देखती हैं कि उनका पुत्र धरती पर प्राण विहीन पड़ा है। उसका शीश उसके धड़ से अलग कटा हुआ है। यह दृष्य देखकर माता क्रोधित होती हैं । जिसे देखकर सभी देवी - देवता भयभीत हो जाते हैं। तब भगवान शिव अपने गणों को आदेश देते कि ऐसे बालक का सिर ले आओ जिसकी माता की पीठ उसके बालक की ओर हो । शिवगण एक हथनी के बालक का शीश लेकर आते हैं। भगवान शिव गज के शीश को बालक के धड़ से जोड़कर उसे जीवित कर देते हैं। इसके बाद माता पार्वती शिवजी से कहती हैं कि यह शीश गज का है जिसके कारण सब मेरे पुत्र का उपहास करेंगे। तब भगवान शिव बालक को वरदान देते हैं कि आज से संसार इन्हें गणपति के नाम से जानेगा। इसके साथ ही सभी देव भी उन्हें वरदान देते हैं कि आज से वह प्रथम पूज्य हैं।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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