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जन्म नक्षत्र एंव विवाह में सम - विषम वर्षों का विचार

जन्म नक्षत्र विचार

जातक का जन्म नक्षत्र अन्न प्राशन उपनयन मुंडन ( चूड़ाकरण ) राज्याभिषेक जन्मदिनादि कृत्यों में प्रशस्त माना गया है परन्तु यात्रा सीमान्तोन्नयन तथा विवाहादि कार्यों में जन्म नक्षत्र अनिष्टकर होता है
बालान्नभुक्तौ व्रतबन्धनेऽपि राज्याभिषेके खलुजन्मधिण्यम्।
शुभं तु अनिष्टं सततं विवाह सीमन्त यात्रादिषु मंगलेषु ॥ -वसिष्ठ
मतान्तर से ज्योतिर्निबन्ध एवं मुहूर्त दीपिकानुसार केवल चूड़ाकरण (मुण्डन) औषध सेवन विवाद यात्रा और कर्णवेध में ही जन्म - नक्षत्र का निषेध कहते है अन्य सभी कार्यों में जन्म नक्षत्र शुभ कहा है
जन्म नक्षत्रगश्चन्द्र : प्रशस्त : सर्वकर्मसु ।
क्षौर भैषजविवादध्वकर्त्तनेषु विवर्जयेत् ।। ( मुहूर्त दीपिका )
परन्तु जन्म नक्षत्र से २५ वां तथा २७ वां नक्षत्र शुभ कार्यों में त्याज्य माना जाता है।
जन्म मास अग्रज (बड़े) लड़के या लड़की का विवाह जन्म नक्षत्र एवं जन्म मास में करने का निर्विवादेन निषेध माना गया है

न जन्ममासे जन्मः न जन्मदिवसेऽपि वा।
आद्य गर्भ सुतस्याथ दुहितुर्वा करग्रहः ॥ -नारद
परन्तु अनुज लड़के या लड़की का विवाह जन्म मास में ग्रहणीय माना गया है
विवुधैः प्रशस्यते चेत् द्वितीयजनुषोः सुतप्रदः -मुहूर्त चिंतामणि

विवाह में सम - विषम वर्षों का विचार
सम वर्षों (१८ २० २२ २४ आदि) में कन्या का विवाह और विषम वर्षों (१, ९ २१ २३ २५ आदि) में लड़के (पुत्र) का विवाह शुभ माना गया है।
अर्थात् इन वर्षों में कन्या या पुत्र का विवाह करना उनके वैवाहिक जीवन में सुख सौहार्द आदि की दृष्टि से कल्याणकारी होता है। इसके विपरीत वर्षों (अर्थात् कन्या का विषम वर्षों में तथा लड़के का सम वर्षों) में करना दु : खरोग एवं कष्टप्रद होता है
। (ज्योतिष तत्त्व प्रकाश)

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