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नव सम्वत्सर नल का फल और माहात्म्य

नव सम्वत्सर नल  का फल और माहात्म्य 

भारत की गौरवमयी सभ्यता एवं संस्कृति में सम्वत्सर का विशेष महत्त्व है । हिन्दुओं के प्राय : सभी शुभ संस्कारों ( विवाह - मुण्डनादि ) एवं मन्त्र - जपादि अनुष्ठानों में संकल्पादि समय सम्वत् के नाम का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता है । चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नवीन सम्वत् का प्रारम्भ होता है । सत्ययुग का आरम्भ भी इसी दिन हुआ माना जाता है तथा ब्रह्मा जी ने सृष्टि का आरम्भ भी चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को किया था । " चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा संसर्ज प्रथमेऽहनि ( ब्रह्मपुराण ) । " सम्भवतः इसी कारण इसे स्वयं सिद्ध मुहूर्त्त माना जाता है । इस दिन किए गए जप - दानादि शुभ कर्मों के प्रभाव से वर्ष भर धन - सम्पदा एवं सुख शान्ति बनी रहती है । 

संवत् 2079 में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा , 2 अप्रैल , 2022 ई . शनिवार से ' नल ' नामक नया संवत्सर प्रारम्भ होगा । 

नव सम्वत्सर के आगमन पर प्रात : तैलाभ्यंग , नित्य कर्मों से निपटकर आसन , पाद्य , अर्घ्य , वस्त्र , यज्ञोपवीत , गन्ध , अक्षत , पुष्प , धूप - दीप , ताम्बुल , नैवेद्य , फल , आदि से सम्वत्सर पूजन एवं फल श्रवणादि , नवरात्र घट - स्थापन , मिट्टी के पात्र में रखी रेत - मिट्टी में जौं - गेहूँ आदि बीज बोना , ओंकार सहित श्री गणेश , ब्रह्मा , विष्णु , शिव एवं श्री दुर्गा - इन पंचदेवों तथा नवग्रहों की स्वयं अथवा किसी सुयोग्य ब्राह्मणों द्वारा पूजार्चना करवा कर उन्हें क्षीर सहित सात्त्विक भोजन करवाकर उनका ' पंचांगदिवाकर ' , सहित यथाशक्ति अन्न , वस्त्र , फल एवं धनादि देकर सत्कार करना चाहिए । 

पूजन के समय भगवान् ब्रह्मा एवं विष्णु की मूर्तियों के समक्ष पुष्पाक्षत , नैवेद्य , अर्घ्य गंगा जल आदि लेकर निम्न मन्त्र पढ़ें 

ॐ ब्रह्मणे नमः से ब्रह्मा जी का आवाहन तथा बहुरूपाय विष्णवे परमात्मने नमः परमात्म विष्णुमावाहयामि स्थापयामि च । फिर सम्वत्सर की मूर्ति अथवा प्रतीक रूप में सुपारी रखकर निम्न मन्त्रों से पूजन एवं प्रार्थना करें 

"भगवंतस्त्वत्प्रसादेन वर्ष क्षेममिहास्तु मे । संवत्सरोपसर्गा मे विलयं यान्त्वशेषतः । " ॐ सम्वत्सराय नमः , चैत्राय नमः , वसन्ताय नमः । आदि नाम - मन्त्रों से पूजन करके विद्वान् ब्राह्मण का अर्चन करें । तथा क्षीर सहित भोजन करवाकर यथाशक्ति वस्त्र , फलों नया पंचाँग दिवाकर आदि का दान करें ।

तदुपरान्त स्वास्ती वाचन , शान्ति पाठ आदि मांगलिक मन्त्रों का पाठ करने के पश्चात् सूर्य देव को ताम्र बर्तन से मन्त्र - पूर्वक तीन बार अर्घ्य देकर गायत्री मन्त्र का जाप करना चाहिए । तत्पश्चात् दिवाकर पंचाँग में किसी ब्राह्मण के श्री मुख से सम्वत् का नाम , सम्वत् का वास , सवारी राजा , मन्त्री आदि का फल श्रवण करना चाहिए चैत्र , प्रतिपदा से लेकर नवमी तक भगवान् विष्णु , शिव एवं श्री दुर्गा के समक्ष नित्य ज्योति जलाकर श्रद्धानुसार श्री दुर्गासप्तशती का जप पाठ करने का विधान है । 

चैत्र प्रतिपदा से नवमी तक प्रतिदिन प्रातः कटु नीम की कोमल पत्तियाँ व पुष्पों का चूर्ण बनाकर , उसमें काली मिर्च , हींग , सेंधा नमक , ईमली , अजवायन , जीरा तथा शक्कर या चीनी बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बनाकर भगवान् को भोग लगाकर ग्रहण करने से वर्षभर आरोग्यता बनी रहती है तथा रक्त विकार , त्वचा , कुष्ठ आदि रोगों का भय नहीं रहता ।

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