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कपालभाति प्राणायाम कैसे करें ? जाने लाभ और सावधानियां

कपालभाति प्राणायाम कैसे करें ? जाने लाभ और सावधानियां

कपालभाति कपाल अर्थात् मस्तिष्क और भाति का अर्थ होता है दीप्ति , आभा , ओज , तेज , कान्ति प्रकाश आदि । जिस प्राणायाम के करने से मस्तिष्क याने माथे पर आभा , ओज व तेज बढ़ता हो वह प्राणायाम है कपालभाति । इस प्राणायाम की विधि भस्त्रिका से थोड़ी अलग है । भस्त्रिका में रेचक व पूरक में समानरूप से श्वास प्रश्वास पर दबाव डालते हैं , जबकि कपालभाति में मात्र रेचक अर्थात् श्वास को शक्ति पूर्वक बाहर छोड़ने में ही पूरा ध्यान दिया जाता है । श्वास को भरने के लिए प्रयत्न नहीं करते , अपितु सहज रूप से जितना श्वास अन्दर चला जाता है जाने देते हैं पूरी एकाग्रता श्वास को बाहर छोड़ने में ही होती है । ऐसा करते हुए स्वाभाविक रूप से पेट में भी आकुंचन व प्रसारण की क्रिया होती है तथा मूलाधार , स्वाधिष्ठान व मणिपूर चक्र पर विशेष बल पड़ता है । इस प्राणायाम को न्यूनतम 10 से 15 मिनट तक अवश्य ही करना चाहिए । 

कपालभाति प्राणायाम को करते समय मन में ऐसा विचार करना चाहिए कि जैसे ही मैं श्वास को बाहर छोड़ रहा हूँ इस प्रश्वास के साथ मेरे शरीर के समस्त रोग बाहर निकल रहे हैं , नष्ट हो रहे हैं । जिसको जो शारीरिक रोग हो उस दोष या विकार , काम , क्रोध , लोभ , मोह ईर्ष्या , राग , द्वेष आदि को बाहर छोड़ने की भावना करते हुए रेचक करना चाहिए । इस प्रकार रोग के नष्ट होने का विचार करें तथा जिसको जो भी मानसिक विकार हो उसके भी नष्ट होने का विचार श्वास छोड़ते वक्त करने से भी विशेष लाभ होता है । 

पांच मिनट से प्रारम्भ करके पन्द्रह - बीस मिनट तक इस प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए । प्रारम्भ में कपालभाति प्राणायाम करते हुए जब - जब थकान अनुभव हो तब - तब बीच - बीच में विश्राम कर लेवें । एक से दो माह के अभ्यास के बाद इस प्राणायाम को पाँच मिनट तक बिना रुके किया जा सकता है । प्रारम्भ में पेट या कमर में दर्द हो सकता है । वह धीरे - धीरे अपने आप मिट जायेगा । ग्रीष्म ऋतु में पित्त प्रकृति वाले करीब 2-3 मिनट से इसका अभ्यास प्रारम्भ करें । 

● मस्तिष्क व मुखमण्डल पर ओज , तेज , आभा व सौन्दर्य बढ़ता है । 

● समस्त कफ रोग , दमा , श्वास , एलर्जी , साइनस आदि रोग नष्ट हो जाते हैं । 

● हृदय , फेफड़ों एवं मस्तिष्क के समस्त रोग दूर होते हैं । 

● मोटापा , मधुमेह , गैस , कब्ज , अम्लपित , किडनी व प्रोस्टेट से सम्बन्धित सभी रोग निश्चित रूप से दूर होते हैं । 

● कब्ज जैसा खतरनाक रोग इस प्राणायाम के नियमित रूप से लगभग 10-15 मिनट तक प्रतिदिन करने से मिट्ट में 4 से 8 किलो तक कम किया जा सकता है । हृदय की शिराओं में आए हुए अवरोध ( ब्लोकेज ) खुल जाता है । मधुमेह बिना औषधि के नियमित किया जा सकता है तथा पेट आदि का बढ़ा हुआ र एक माह हैं । 

● मन स्थिर शान्त व प्रसन्न रहता है । नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते हैं । जिससे डिप्रेशन आदि रोगों से छुटका मिलता है ।  

● चक्रों का शोधन तथा मूलाधार चक्र से लेकर सहस्रार चक्र पर्यन्त समस्त चक्रों में एक दिव्य शक्ति का संचरण होने लगता है । 

 इस प्राणायाम के करने से आमाशय , अग्न्याशय ( पेन्क्रियाज ) , यकृत , प्लीहा , आन्त्र , प्रोस्टेट एवं किडनी का आरोग्य विशेष रूप से बढ़ता है । पेट के लिए बहुत से आसन करने पर भी जो लाभ नहीं हो पाता , मात्र इस प्राणायाम के करने से ही सब आसनों से भी अधिक लाभ हो जाता है । दुर्बल आँतों को सबल बनाने के लिए भी यह प्राणायाम सर्वोत्तम है।

बाह्य प्राणायाम ( त्रिबन्ध के साथ ) 

सिद्धासन या पद्मासन में विधिपूर्वक बैठकर श्वास को एक ही बार में यथाशक्ति बाहर निकाल दीजिए । श्वास बाहर निकालकर मूलबंध , उड्डीयान बंध व जालन्धर बन्ध लगाकर श्वास को यथाशक्ति बाहर ही रोककर रखें । 

जब श्वास लेने की इच्छा हो तब बन्धों को हटाते हुए धीरे - धीरे श्वास लीजिए । 

श्वास भीतर लेकर उसे बिना रोके ही पुनः पूर्ववत श्वसन क्रिया कीजिए । इस प्रकार इसे 3 से लेकर 21 बार तक कर सकते हैं । 

इस प्राणायाम में भी उक्त कपालभाति के समान श्वास को बाहर फेंकते हुए समस्त विकारों , दोषों को भी बाहर फेंका जा रहा है इस प्रकार की मानसिक चिन्तन धारा बहनी चाहिए । विचार शक्ति जितनी अधिक प्रबल होगी कष्ट उतनी ही प्रबलता से दूर होंगे यह निश्चित जानिए मन का शिव संकल्प युक्त होना हर प्रकार की का संहारक और शीघ्र सुफलदायक होता है। 

लाभ 

इससे मन की चंचलता दूर होती है । जठराग्नि प्रदीप्त होती है । उदर रोगों में लाभप्रद है । बुद्धि सूक्ष्म व तीव्र होती है । शरीर का शोधक है । वीर्य की ऊर्ध्व गति करके स्वप्न दोष , शीघ्रपतन आदि धातु - विकारों की निवृत्ति करता है .. समस्त स्त्री रोगों - बन्धत्व प्रदर व गर्भाशय गत दोष में भी यह प्राणायाम अत्यन्त लाभप्रद है । बाह्य प्राणायाम करने से पेट के सभी अवयवों पर विशेष बल पड़ता है तथा प्रारम्भ में पेट के कमजोर या रोगग्रस्त भाग में हल्का दर्द सा भी अनुभव होता है । अतः पेट को विश्राम तथा आरोग्य देने के लिए त्रिबन्ध पूर्वक यह प्राणायाम करना चाहिए।

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