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पवित्रा एकादशी व्रत 27 अगस्त 2023 माहात्म्य एवं व्रत कथा

 

पवित्रा एकादशी व्रत 27 अगस्त 2023  माहात्म्य एवं व्रत कथा 

भविष्योत्तर पुराणमें पवित्रा एकादशी का महात्मय भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज बुधिष्ठिर के संवादों में मिलता है।

एक बार युधिष्ठिर महाराजने श्रीकृष्ण को पूछा" हे मधुसूदन ! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम , उसका महात्य क्या है ? इस बारेमें कृपया आप विस्तारसे वर्णन करे।

"भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा, " इस एकादशी का नाम 'पवित्रा' है। जो भी इस व्रत की महिमा को श्रवण करेगा उसे 'वाजपेय' यज्ञ के फल की प्राप्ति होगी। "बहुत वर्षों पहले द्वापर युग के प्रारंभिक कालमें महीजित नामक राजा महिष्मतीपुर नामक राज्य पर राज करते थे। अपनी संतान की तरह प्रजा का रक्षण करते थे। एक बार उन्होंने प्रजाको राजसभामें बुलाया और कहा, " प्रजाजन ! मैंने कभी भी किसी भी प्रकारका पापकर्म नहीं किया अन्यायसे कभी धन ग्रहण नहीं किया। प्रजापर अन्याय नही किया।

ब्राह्मणोंकी अथवा देवताओंकी संपत्ति नहीं छिनी कानून सबके लिए एक समान है। उपयुक्त समय पर गुनाहों के लिए मैंने अपने रिश्तेदारोंको भी दंड दिया है । धार्मिक और पवित्र मेरे शत्रुको भी मैंने उपयुक्त आदर और सम्मान भी दिया है।

हे ब्राह्मणों ! इस धार्मिक मार्ग का आचरण करते हुए भी मुझे पुत्रप्राप्ति नहीं हुई। कृपया आप इसपर विचार करके मुझे मार्गदर्शित करे। " राजाका कथन सुनने के पश्चात सभी ब्राह्मणोंने इकठ्ठा होकर विचार किया और अनेक आश्रमको भेट देते हुए भूत , वर्तमान और भविष्य जाननेवाले ऋषियोंको इसका कारण पूछने का निर्णय लिया। इसलिए उन्होंने वन में जाकर अनेक आश्रमको भेट दी अंत में भ्रमण करते हुए लोमश ऋषिके पास पहुंचे । वे बहुत ही कठोर तपस्या कर रहे थे। उनका शरीर आध्यात्मिक था। वे आनंद से परिपूर्ण थे और कठोर उपवासोंका पालन करते थे। वे आत्मसंयमी और सभी शाखाकेज्ञाता थे। उनका आयुमान ब्रह्मदेव जितना ही है , बहुत ही तेजस्वी , उनके शरीरपर असंख्य केश थे। जब ब्रह्मदेव का एक दिन अर्थात एक कल्प होता तो उनके शरीरका एक केश गिर पडता । इसीलिए उन्हें लोमश कहा जाता। वे त्रिकालज्ञ थे। लोमश ऋषिकों देखकर आनंदित हुए राजाके सलाहकारोंने नम्रतापूर्वक कहा  हमारे उत्तम भाग्यसे ही आप जैसे महात्मा के दर्शन हुए।

"लोमश ऋषिने पूछा" आप सभी कौन है ? यहाँ आनेका प्रयोजन क्या है ? मेरी स्तुति करनेका कारण क्या है । " ब्राह्मणोंने कहा , " हमारे ऊपर आई हुई विकट समस्या आए है। हे ऋषिवर ! हमारे राजा महीजित निपुत्रिक है उन्होंने संतान की तरह हमें पाला है राजा का दुःख हमसे नही देखा जाता। इसीलिए कठोर तपस्या करने के लिए हम यहाँ आए है। पर हमारे महद्भाग्यसे आप जैसे महात्मा की भेट हुई है। आप जैसे महान व्यक्ति के दर्शन से कार्य सिद्धि होती है। हे द्विजवर हमारे निपुत्र राजाको पुत्र होने के लिए आप हमें कृपया उपाय बताएँ। "यह सुनते ही लोमश ऋषि ध्यानस्थ हो गए और महीजित राजाके पिछले जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे , यह राजा पिछले जन्म में वैश्य था। व्यापार के लिए एक गांव से दूसरे गांव भटकता था। एक बार घुमते हुए वह प्यास से व्याकुल हुआ। उस दिन द्वादशी थी। प्यास से व्याकुल घुमते हुए एक तालाब के पास पहुँचे । पानी पीने के इच्छा से वो किनारे पर पहुंचे , इतने में नए बछड़े को जन्म देने के पश्चात गाय बछड़े के साथ आकर पानी पीने लगी। उन्होंने फौरन उसे दूर करके खुद पानी पीने लगे। यह बड़ा पाप उनसे हुआ। इस पाप के कारण उन्हें पुत्र प्राप्ति नहीं हो रही है । यह सुनकर राजाके सलाहकार ब्राह्मणोंने पूछा , " किस पुण्यसे अथवा व्रतसे राजा इस पाप से मुक्त होंगे? इस विषय में आप हमे बताइये।

"तभी लोमश ऋषिने कहा" श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली 'पवित्रा' नामकी एकादशी है। राजा और आप सब इस व्रत का पालन करें। उसके पश्चात आप सभी इस व्रत के पालन से मिलनेवाला सभी पुण्य राजाको दीजिए। उससे राजाको पुत्रप्राप्ति अवश्य होगी। "लोमश ऋषिकी यह बात सुनकर सभी प्रसन्न हुए। उनको आनंदपूर्वक प्रणाम किया। राजाके पास सभी लौट आए और सारा वृत्तांत राजाकों कह सुनाया। राजाने भी आनंद से सभी प्रजा के साथ पवित्रा एकादशी का पालन किया द्वादशी के दिन सभीने व्रत के प्रभाव से प्राप्त हुआ पुण्य राजाको प्रदान किया। कुछ दिनों पश्चात रानी को गर्भ धारणा हुई और उसने सुंदर पुत्र को जन्म दिया।

"हे युधिष्ठिर महाराज जो कोई भी इस व्रतका पालन करता है वह सभी पापोंसे मुक्त होकर इस जन्म में और अगले जन्म में सुख की प्राप्ति करता है। जो कोई भी इस व्रत का महात्म्य श्रद्धापूर्वक सुनेगा अथवा कहेगा, उसे इस जन्म में पुत्रप्राप्ति का सुख मिलता है तथा अगले जन्म में भगवधामकी प्राप्ति होगी।"

एकादशी व्रत परिचय 
भगवान श्री कृष्णचन्द्र अर्जुन से बोले कि एक बार नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि एकत्रित हुये , उन्होंने सूतजी से प्रार्थना की हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों का महात्म्य सुनाने की कृपा करें । सूतजी बोले- हे महर्षियों ! एक वर्ष में बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं , सो एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुई । जिस वर्ष में लौंद मास ( अधिक मास ) पड़ता है , उस वर्ष दो एकादशी और बढ़ जाती हैं । इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं । उनके नाम ये हैं - 
1- उत्पन्ना , 2 - मोक्षदा ( मोक्ष को देने वाली ) , 3- सफला ( सफलता देने वाली ) 4 - पुत्रदा ( पुत्र को देने वाली ) , 5 - षटतिला , 6- जया 7- विजया , 8- आमलकी , 9- पापमोचनी ( पापों को नष्ट करने वाली ) , 10- कामदा , 11 बरुथनी , 12 - मोहनी , 13 - अपरा , 14 निर्जला , 15 - योगिनी , 16 - देवशयनी , 17 कामिका , 18 पवित्रा, 19- अजा , 20 परिवर्तिनी , 21 इन्दिरा , 22- पाशांकुशा , 23 - रमा , 24- देवोत्थानी एवं अधिक मास की दोनों एकादशियों के नाम 25- पद्मिनी और 26 - परमा हैं । ये सब एकादशी यथानाम तथाफल देने वाली है। 

एकादशियों के महात्म्य का वर्णन 

सब धर्मों के ज्ञाता वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रसादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये।

महर्षियों ने कहा : प्रहादजी । आप कोई ऐसा साधन बताइये , जिससे ज्ञान ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है।

उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रहादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों। जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया था , उसका वर्णन करता हूँ सुनिये।

महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है उसे मेरा भक्त जानना चाहिए।


जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है वह मेरा विशेष भक्त है। मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं। अतः मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए। जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं उन्हें पाखण्डी जानना चाहिएजो एकादशी को जागरण करते और गाते हैं उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिराव यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैं उनको भी वही फल प्राप्त होता है। जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं।

जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैं वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते वे धन्य और पुण्यात्मा हैं। जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं , वे ही धन्य हैं। जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैं उन्होंने यज्ञदानगयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया। षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं। जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसने पुन : प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है , वह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है। जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है। जो एकादशी के दिन ऋषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से ऋग्वेदयजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं।

य : पुन : पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्।

द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापतः।

स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण : त्वयम्।

जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है वह उस परम धाम में जाता है जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं।

पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं। मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है , उसका पुण्य कितना है यह भी नहीं जानता। कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के समीप गीतनृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय  विष्णुसहस्रनामगीता तथा श्रीमद्भागवत का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है।

जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है , उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता। जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता हैउसका पुन : इस संसार में जन्म नहीं होता। स्नानचन्दनलेपधूपदीपनैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है। कार्तिकेय। जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता है वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे। एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं। जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं वे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं। जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र दशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं।

जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय देवताओं का पूजन , यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहाँ भागवत शास्त्र है भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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