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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत और जन्मोत्सव (शास्त्रीय निर्णय)

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रत और जन्मोत्सव (शास्त्रीय निर्णय)

(i) 18 अगस्त - गुरुवार , अर्धरात्रि - व्यापिनी अष्टमी (स्मार्त्त) गृहस्थियों के लिए 
(ii) 19 अगस्त - शुक्रवार , उदयकालिक अष्टमी (वैष्णव) संन्यासियों के लिए 
       इस वर्ष भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म से सम्बन्धित भाद्रपद - कृष्ण - अष्टमी तिथि सम्बन्ध में स्मार्त्त एवं वैष्णव सम्प्रदाय के अनुयायियों में मतान्तर होगा । परम्परया इस व्रत के विषय में दो मत हैं। 
उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल, जम्मू - कश्मीर, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान आदि के करोड़ों स्मार्च धर्मावलम्बी गृहस्थी लोग अर्द्धरात्रि - व्यापिनी एवं सप्तमीयुता अष्टमी में व्रत उपवास एवं उत्सव करते हैं। क्योंकि इनके अनुसार भगवान् श्रीकृष्ण का अवतरण अर्द्धरात्रि के समय (रोहिणी नक्षत्र एवं वृष राशिस्थ चन्द्रमाकालीन) भाद्रपदकृष्ण अष्टमी तिथि में हुआ था । 
कृष्ण जन्माष्टमीऽयं निशीथव्यापिनी ग्राह्या । पूर्वदिन एव निशीथयोगे पूर्वा ॥ 
परन्तु वैष्णवमत वाले लोग विशेषकर मथुरा - वृन्दावन सहित उ.प्र ., बिहार , महाराष्ट्र
- आदि प्रदेशों में उदयकालिक अष्टमी (नवमीयुता) के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव, व्रतादि करने में विश्वास रखते हैं (चाहे उस दिन अर्द्धरात्रि के समय अष्टमी हो या न हो) 
'स्मार्तानां गृहिणी पूर्वा पोष्या, निष्काम वनस्थेविधवाभिः वैष्णवैश्च परै व पोष्या ।। 
वैष्णवास्तु अर्धरात्रि व्यापिनीमपि रोहिणी युतामपि सप्तमी विद्धां अष्टमी परित्यज्य नवमीयुतैव ग्राह्या ।। ' (धर्मसिन्धु) 
        परन्तु अधिकांश शास्त्रकारों ने अर्द्धरात्रि - व्यापिनी अष्टमी में ही व्रत , पूजन एवं उत्सव मनाने की पुष्टि की है । श्रीमद्भागवत् , श्रीविष्णु पुराण, वायु - पुराण, अग्नि पुराण, भविष्यादि पुराण भी तो अर्द्धरात्रि - व्यापिनी अष्टमी में ही श्रीकृष्ण - भगवान् के जन्म की पुष्टि करते हैं 'गतेऽर्धरात्रसमये सुप्ते सर्वजने निशि ॥ भाद्रेमास्य - सिते पक्षेऽष्टम्यां ब्रह्मर्क्षसंयुजि सर्वग्रहशुभे काले - प्रसन्नहृदयाशये आविरासं निजेनैव रुपेण हि अवनीपते ।।' (भविष्यपुराण) तिथि - निर्णय अनुसार भी जन्माष्टमी में अर्धरात्रि को ही मुख्य निर्णयक तत्त्व माना है - रोहिणी नक्षत्र मुख्य निर्णायक नहीं है। अष्टमी तिथि चाहे शुद्धा (सूर्योदय से अर्धरात्रि तक) हो अथवा सप्तमीविद्धा पूर्व (पहिले) दिन चन्द्रोदय - व्यापिनी को ही व्रत करना युक्तिसंगत है -
'केंचित् अर्द्धरात्रि एव मुख्य निर्णायकः। रोहिणी योगस्तु तने निर्णयासभ्भवे निर्णायकः । तन्मते तादृश शुद्धा - विद्धा विषये पूर्वदिने एव व्रतम् ।।' इसप्रकार सिद्धान्त रूप में तत्काल - व्यापिनी (अर्द्धरात्रि के समय रहने वाली) तिथि अधिक शास्त्रसम्मत एवं मान्य रहेगी। सिद्धान्तग्रन्थों में भी अधिकांशतः व्रत, पर्व , त्यौहारों कर्मकाल (व्रत , पर्व से सम्बद्ध विशेष पूजनादि कार्य किए जाते हैं , उस व्रत - पर्व का कर्मकाल कहलाता है ।) विद्यमान् तिथि के दिन ही करने के निर्देश दिए गए हैं कर्मणो यस्य यः कालस्तत् कालव्यापिनी तिथिः । तस्य कर्माणि कुर्वीत् ।। अर्थात् जो तिथि कर्म समय तक जिस दिन रहे , वही ग्रहण करनी चाहिए। श्रीकृष्ण का जन्म अर्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी में हुआ था , अतः जन्माष्टमी व्रत का कर्मकाल (श्रीकृष्ण की विशेष पूजा , श्रीकृष्ण के निमित्त व्रत , बालरूप पूजा , झूला झुलाना , चन्द्र को अर्घ्यदान , जागरण आदि) अर्धरात्रि ही है , अतएव जन्माष्टमी व्रत रखने के लिए अर्धरात्रि में अष्टमी का होना अनिवार्य है। अर्धरात्रि के समय नवमी तिथि का कोई औचित्य नहीं है । पहले दिन अर्धरात्रि व्याप्त अष्टमी को छोड़कर व्रत उस दिन करना , जिस अर्धरात्रि के समय अष्टमी व्याप्त नहीं कर रही अपितु वहाँ नवमी तिथि है (जोकि जन्माष्टमी का घटक तत्त्व नहीं है) , किसी भी दृष्टि से शास्त्र - सम्मत् एवं तर्क - संगत नहीं है। ध्यान रहे, भगवान् श्रीकृष्ण की जन्म - स्थली मथुरा - वृन्दावन में वर्षों की परम्परानुसार जन्मोत्सव सूर्योदयकालिक एवं नवमीविद्धा अष्टमी में मनाने की परम्परा है , जबकि उत्तरी भारत में लगभग सभी प्रान्तों में सैंकड़ों वर्षों से अर्द्धरात्रि एवं चन्द्रोदयव्यापिनी जन्माष्टमी में व्रतादि ग्रहण करने की परम्परा है । वास्तव में , श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत तथा जन्मोत्सव दो अलग - अलग स्थितियां हैं । - इस वर्ष (वि . संवत् 2079) 18 अगस्त, गुरुवार, 2022 ई. को रात्रि 21 घं. 22 मिं . बाद अर्द्धरात्रि, कृतिका नक्षत्र व मेष राशिस्थ चन्द्रोदय कालीन श्रीकृष्ण | जन्माष्टमी के व्रत , उत्सवादि का माहात्म्य होगा। जबकि 19 अगस्त, शुक्रवार को अष्टमी रात्रि 11 बजे (23:00) तक ही होगी तथा अर्द्धरात्रि में कृतिका नक्षत्र, वृष राशि तथा नवमी तिथि में चन्द्रोदय होगा। अतएव व्रत, संकीर्तन व उत्सव के लिए 18 अगस्त , गुरुवार ही उत्तम दिन रहेगा । इस प्रकार 18 अगस्त , गुरुवार को ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का कर्मकाल ( अर्द्धरात्रि अष्टमी , चन्द्रोदय - काल ) है । इसलिए इसी समय से पूर्व श्रीकृष्ण के निमित्त व्रत , बालरूप पूजा , झूला - झुलाना , चन्द्र को अर्घ्य - दान , जागरण - कीर्तन का विधान होगा । हमारे मतानुसार 19 अगस्त , शुक्रवार को भी श्रीकृष्ण - स्तोत्र पाठ , ध्यान कीर्तनादि करके इन पुण्यसुअवसरों का लाभ उठाना चाहिए । व्रत एवं जन्मोत्सव  18 अगस्त , गुरुवार को ही श्रेष्ठ एवं उत्तम रहेगा ।
भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 18 अगस्त 2022 गुरुवार की रात 9 बजकर 21 मिनट से शुरू हो रही है जबकि अष्टमी तिथि 19 अगस्त को रात 10 बजकर 50 पर समाप्त होगी. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री कृष्ण का जन्म भादों के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्य रात्रि में हुआ था. इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और जन्मोत्सव 18 अगस्त को मनाया जाएगा. जबकि कुछ लोगों का कहना है कि अष्टमी तिथि की उदया तिथि 19 अगस्त को है. इस लिए उदया तिथि के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और पूजन 19 अगस्त को रखना चाहिए (स्मार्त्त) गृहस्थियों के लिए 18 अगस्त को जन्माष्टमी व्रत और जन्मोत्सव मनाएंगे, जबकि केवल वृंदावन में यह उत्सव 19 अगस्त को मनाया जाएगा
अत: निष्कर्स :- कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और जन्मोत्सव 18 अगस्त को मनाया जाएगा

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