
अजा एकादशी व्रत 10 सितम्बर 2023
(स्मार्त्त) गृहस्थियों एवं (वैष्णव) संन्यासियों - दोनों (सभी) के लिए अजा एकादशी व्रत 10 सितम्बर 2023 को लिया जाएग
ब्रह्मवैवर्त पुराणमें श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर महाराज के संवाद में अन्नदा
एकादशी के महात्म्य का वर्णन किया गया है।
युधिष्ठीर महाराजने पूछा "हे कृष्ण ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में आनेवाली एकादशी
का नाम क्या है? कृपया
विस्तारसे आप वर्णन करे।
भगवान् श्रीकृष्णने कहा , " हे राजन् ! सब पापोंको नष्ट करनेवाली इस एकादशी का नाम
अन्नदा है। इस व्रत का पालन करके जो कोई भी भगवान् ऋषिकेश की पूजा करता है वह सब
पापोंसे मुक्त होता है ।"
बहुत पहले हरिश्चंद्र नामक एक सम्राट थे । वह बहुत ही सत्यवादी थे अनजानें में
किए गए पाप के कारण और अपने वचन की पूर्ति के लिए उन्होंने अपना राज्य गँवाया इतना
ही नहीं ,
पत्नी तथा पुत्र को भी बेचना पडा । हे राजन् ! उस पुण्यवान
राजाको चांडाल के पास सेवक बनकर रहना पड़ा । फिर भी उसने सत्य की राह नही छोडी ।
चांडाल के आदेश पर मजदूरी करके वह राजा मृत शरीर के वस्त्र इकठ्ठे करते थे । इस
प्रकार शुद्र काम करते हुए भी वह सत्यवादी ही रहे । अपने आचारण से उनका कभी पतन
नही हुआ इसी तरह उन्होंने बहुत वर्ष निकाले ।
एक दिन राजा अपनी दुर्भाग्य पर विचार कर रहे थे कि मुझे अब क्या करना चाहिए ? कहाँ जाना चाहिए ? इससे मेरा छुटकारा कब होगा ? राजा की ऐसी दुर्दशा देखकर गौतम ऋषि पास आए । ऋषिको देखकर
राजाको विचार आया कि केवल लोककल्याण हेतु ब्रह्मदेव ने ब्राह्मणोंको निर्माण किया
है । ऋषिको प्रणाम करके राजाने अपनी दुःखद परिस्थिती बताई ।
राजा की दुर्दशा देखकर गौतम ऋषिने विस्मय से कहा , राजन् ! आपके अच्छे कर्मोंसे जल्दी शह ही श्रावण मास के
कृष्ण पक्ष की अन्नदा एकादशी आ रही है । इस दिन व्रतका आप पालन करें और जागरण करे
। आप सभी विपत्तियोंसे मुक्त हो जाओगे । हे राजन् ! केवल आपके लिए मैं यहाँ आया था
।
राजा को उपदेश देकर गौतम ऋषि अंतर्धान हो गए । राजाने इस व्रत का पालन किया और
वे सभी विषाद से मुक्त हुए ।
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा हे
नृपेंद्र ! अनेक वर्षों तक भोगनेवाले दुख इस अद्भुत व्रत के प्रभाव से फौरन नष्ट
हो जाते है । इस व्रत के प्रभाव से राजा हरिश्चंद्र को उनकी पत्नी तथा मृत पुत्र
जीवित होकर वापस मिला । उनका राज भी उन्हें प्राप्त हुआ अनेक वर्षों के पश्चात
राजा हरिश्चंद्र , उनके सम्बन्धी और उनकी प्रजा इन्होंने भगवद्धामकी प्राप्ति की । हे राजन ! जो
कोई भी इस व्रत का पालन करता है उसे आध्यात्मिक जगत् की प्राप्ति होगी ।
जो काई भी इस व्रत का महात्म्य श्रद्धा से सुनेगा अथवा पढेगा उसे अश्वमेध यज्ञ
करने का पुण्य प्राप्त होता है।
अजा एकादशी पारण
अजा एकादशी 10 सितम्बर 2023 को
11सितम्बर को पारण (व्रत खोलने का) समय - 06:25 AM से 08:53 AM
एकादशी तिथि प्रारम्भ
– 09 सितम्बर 2023 को 07:17 PM बजे
एकादशी तिथि समाप्त – 10 सितम्बर 2023 को 09:27 PM बजे
हेमाद्री के अनुसार जिनके पुत्र हैं उन्हें कृष्ण पक्ष की एकादशी व्रत नहीं करना चाहिए
एकादशी भारतीय हिन्दू धर्म का एक प्रमुख (उपवास) व्रत है यह एकादशी व्रत माह में दो बार आता है पहली पूर्णिमा के बाद और दूसरी अमावस्या के बाद आती है|
एकादशी व्रत परिचय
एकादशियों के महात्म्य का वर्णन
एकादशी व्रत विधि
दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग विलास से भी दूर रहें। प्रात : एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें नीयू जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें। वृक्ष से पता तोड़ना भी वर्जित है , अतः स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करे यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें । प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि : आज मैं चोर पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा और न ही किसीका दिल दुखाऊँगा गौ ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करूँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करूँगा राम, कृष्ण, नारायण इत्यादि विष्णुसहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाऊँगा। ऐसी प्रतिज्ञा करके श्रीविष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि : ' हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ है अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।' मौन , जप शास्त्र पठन कीर्तन रात्रि जागरण एकादशी यत में विशेष लाभ पँहुचाते हैं।
एकादशी के दिन अशुद्ध द्रव्य से बने पेय न पीयें। कोल्ड ड्रिंक् एसिड आदि डाले हुए फलों के डिब्बाबंद रस को न पीयें दो बार भोजन न करें। आइसक्रीम व तली हुई चीजें न खायें। फल अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा थोड़े दूध या जल पर रहना विशेष लाभदायक है। के (दशमी, एकादशी और द्वादशी) इन तीन दिनों में कॉसे के बर्तन, मांस, प्याज, लहसुन, मसूर, उडद, चने , कोदो (एक प्रकार का धान) साक, शहद, तेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन) - इनका सेवन न करें । व्रत के पहले दिन (दशमी को) और दूसरे दिन (द्वादशी को) हविष्यान्न (जौ, गेहूँ, मूंग, सैंधा नमक, कालीमिर्च, शर्करा और गोघृत आदि) का एक बार भोजन करें।
फलाहारी को गोभी, गाजर, शलजम, पालक, कुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए। आम, अंगूर, केला, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए।
जुआ, निद्र , पान, परायी निन्दा, चुगली, चोरी , हिंसा, मैथुन, क्रोध तथा झूठ, कपटादि अन्य कुकर्मो से नितान्त दूर रहना चाहिए। बैल की पीठ पर सवारी न करें।
भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायें , इससे चीटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटायें। मधुर बोलें, अधिक न बोले, अधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं। सत्य भाषण करना चाहिए। इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसीका दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए।
एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए और श्रीगंगाजी में पुष्प (अस्थि) प्रवाहित करने पर भी एकादशी व्रत रखकर व्रत फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए प्राणिमात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसीसे छल कपट नहीं करना चाहिए। अपना अपमान करने या कटु वचन बोलनेवाले पर भूलकर भी क्रोध नहीं करें। सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है। मन में दया रखनी चाहिए। इस विधि से व्रत करनेवाला उत्तम फल को प्राप्त करता है । द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्न, दक्षिणादि से प्रसन्न कर उनकी परिक्रमा कर लेनी चाहिए व्रत खोलने की विधि : द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए ।' मेरे सात जन्मों के शारीरिक, वाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए " - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए।
महत्व
सब धर्मों के ज्ञाता वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रसादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये।
महर्षियों ने कहा : प्रहादजी । आप कोई ऐसा साधन बताइये , जिससे ज्ञान ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है।
उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रहादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों। जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया था , उसका वर्णन करता हूँ सुनिये।
महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है उसे मेरा भक्त जानना चाहिए।
जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है वह मेरा विशेष भक्त है। मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं। अतः मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए। जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं उन्हें पाखण्डी जानना चाहिए| जो एकादशी को जागरण करते और गाते हैं उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिराव यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैं उनको भी वही फल प्राप्त होता है। जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं।
जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैं वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते वे धन्य और पुण्यात्मा हैं। जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं , वे ही धन्य हैं। जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैं उन्होंने यज्ञ, दान, गयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया। षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं। जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसने पुन : प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है , वह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है। जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है। जो एकादशी के दिन ऋषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं।
य : पुन : पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्।
द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापतः।
स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण : त्वयम्।
जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है वह उस परम धाम में जाता है जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं।
पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं। मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है , उसका पुण्य कितना है यह भी नहीं जानता। कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के समीप गीत, नृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय विष्णुसहस्रनाम, गीता तथा श्रीमद्भागवत का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है।
जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है , उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता। जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता है, उसका पुन : इस संसार में जन्म नहीं होता। स्नान, चन्दन, लेप, धूप, दीप, नैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है। कार्तिकेय। जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता है वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे। एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं। जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं वे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं। जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र दशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं।
जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय देवताओं का पूजन , यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहाँ भागवत शास्त्र है भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
👉 "पूजा पाठ, ग्रह अनुष्ठान, शादी विवाह, पार्थिव शिव पूजन, रुद्राभिषेक, ग्रह प्रवेश, वास्तु शांति, पितृदोष, कालसर्पदोष निवारण इत्यादि के लिए सम्पर्क करें वैदिक ब्राह्मण ज्योतिषाचार्य दिनेश पाण्डेय जी से मोबाइल नम्वर - +919410305042, +919411315042"![]()





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