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परिवर्तिनी (पार्श्व) एकादशी व्रत 25 सितम्बर 2023

 

परिवर्तिनी (पार्श्व) एकादशी व्रत 25 सितम्बर 2023

परिवर्तिनी (पार्श्व) एकादशी को वामन अथवा परिवर्तिनी एकादशी भी कहते है । ब्रह्मवैवर्त पुराणमें भगवान् श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवादमें इसकी महिमा का वर्णन है।

युधिष्ठिर महाराजने भगवान् श्रीकृष्ण को पूछा "हे जनार्दन ! भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में आनेवाली एकादशी का नाम क्या है ? इस व्रत करने की विधि और करने से प्राप्त होनेवाला फल इस बारें में कृपया विस्तारसे वर्णन करे।

भगवान् श्रीकृष्णने कहा हे राजन् ! इस एकादशी को पार्श्व कहते है। इस व्रतके पालनसे व्यक्ति सभी पापोंसे मुक्त होकर मुक्ति प्राप्त करता है। इस एकादशी के केवल महात्म्य श्रवण करने से ही व्यक्ति सभी पापोंसे मुक्त हो जाता है । वाजपेय यज्ञ करने से भी अधिक फल इस व्रत के पालन से प्राप्त होता है । इस एकादशी को जयन्ती एकादशी भी कहते है। इस दिन भगवान वामनदेव की उपासना करनी चाहिए । जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक जगत की प्राप्ति होती है । इस एकादशी के दिन भगवान मधुसूदन अपने बाएँ से दाएँ करवट लेते है । इसीलिए इस एकादशी को पार्श्व परिवर्तिनी एकादशी कहा जाता है।

युधिष्ठिर महाराजने पूछा हे जनार्दन ! मेरे कुछ प्रश्नोंका समाधान करे देवदेवेश्वर ! आप कैसे सोते है ? किस प्रकार से करवट बदलते है ? चातुर्मास्य का पालन किस प्रकार से करना चाहिए ? आप की निद्रा के समय दूसरे लोग क्या करते है ? आप बलि महाराज को बंधन में क्यों रखते है ? हे स्वामी ! मेरी ये सारी शंकाए आप कृपया दूर किजिए।

भगवान् श्रीकृष्णने कहा त्रेतायुग में दैत्य कुलमें जन्मा बलि नामक मेरा एक भक्त था अपने परिवार के साथ वो मेरी पूजा - अर्चना करता था । उसने ब्राह्मणोंकी पूजा और अनेक यज्ञ भी किए थे । जिससे एकादशी_महात्म् ५४ वो इतना शक्तिशाली बन गया कि उसने इंद्र को पराजित किया और स्वर्ग का राजा बन गया । सभी देवदेवता , ऋषि मेरे पास आए । उनके कल्याण के लिए मैने वामनावतार लिया और राजा बलि जहाँ पर यज्ञ कर रहा था वहाँ पहुँचा ।

बलिराजा के पास मैने तीन पग भूमि माँगी । इससे भी अधिक माँगने की बिनती बलिराजा ने मुझसे की । परंतु मैंने दृढ निश्चय से केवल तीन मग भूमि ही माँगी । दूसरा कौनसा भी विचार न करके उसने दान में ३ पग भूमि दे दी। तत्काल मैंने महाकाय रूप धारण किया जिसके एक पगमें सप्तपाताल दूसरे पग में आकाश के साथ सातों लोक को लिया और तीसरा पग रखने के लिए जगह मांगी । तीसरे पग के रूप में नम्रतापूर्वक बलिने अपना मस्तक आगे किया । उसके नम्रता से प्रसन्न होकर नित्य उसके साथ रहने का मैने आशिर्वाद दिया।

उसी एकादशी के दिन वामनदेव के विग्रह की स्थापना महाराज बलि के निवासपर हुई । मेरा दूसरा विग्रह क्षीरसागर में अनंत शेषपर स्थापन करते है । शयन एकादशी से उत्थान एकादशी तक मै निद्रावस्था में रहता हूँ । इन चार महीनों में हर एक को मेरी विशेष पूजा करनी चाहिए । चातुर्मास में आनेवाली सभी एकादशी का हर एक को दृढतापूर्वक पालन करना चाहिए। इस एकादशी के व्रत पालन से सहस्त्र अश्वमेध यज्ञ करने का फल मिलता है।

एकादशी व्रत परिचय 

भगवान श्री कृष्णचन्द्र अर्जुन से बोले कि एक बार नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि एकत्रित हुये , उन्होंने सूतजी से प्रार्थना की हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों का महात्म्य सुनाने की कृपा करें। सूतजी बोले- हे महर्षियों ! एक वर्ष में बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुई। जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी और बढ़ जाती हैं। इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं। उनके नाम ये हैं - 
1- उत्पन्ना , 2 - मोक्षदा (मोक्ष को देने वाली) , 3- सफला (सफलता देने वाली) 4 - पुत्रदा (पुत्र को देने वाली) , 5 - षटतिला , 6- जया 7- विजया , 8- आमलकी , 9- पापमोचनी ( पापों को नष्ट करने वाली ) , 10- कामदा , 11 बरुथनी , 12 - मोहनी , 13 - अपरा , 14 निर्जला , 15 - योगिनी , 16 - देवशयनी , 17 कामिका , 18 पुत्रदा , 19- अजा , 20 परिवर्तिनी , 21 इन्दिरा , 22- पाशांकुशा , 23 - रमा , 24- देवोत्थानी एवं अधिक मास की दोनों एकादशियों के नाम 25- पद्मिनी और 26 - परमा हैं । ये सब एकादशी यथानाम तथाफल देने वाली है। 

एकादशियों के महात्म्य का वर्णन 

जो पुण्य चन्द्र या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है , तथा जो पुण्य अन्न दान , जल ढान , स्वर्ण दान , भूमि दान गौ दान , कन्या दान तथा अश्वमेघादि यज्ञ करने से होता है । जो पुण्य तीर्थ यात्रा तथा कठिन तपस्या करने से होता है , उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से होता है । एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है , अन्तड़ियों की मैल दूर हो जाती है , हृदय शुद्ध हो जाता है , श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है । प्रभु को प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी। 
एकादशी व्रत करने वाले के पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं , एकादशी व्रत करने वाले के दस पुरखे पितृ पक्ष के और दस पुरखे मातृ पक्ष के और दस पुरखे पत्नी पक्ष के बैकुण्ठ को जाते हैं । दूध , पुत्र , धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला एकादशी का व्रत है , एकादशी का जन्म भगवान् के शरीर से हुआ है , प्रभु के समान पतित पावनी है , अतः आपको लाखों प्रणाम हैं।

एकादशी व्रत विधि

दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग विलास से भी दूर रहें। प्रात : एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें नीम  जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें। वृक्ष से पता तोड़ना भी वर्जित है , अतः स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करे यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें । प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि : आज मैं चोर पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा और न ही किसीका दिल दुखाऊँगा गौ ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करूँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करूँगा रामकृष्णनारायण इत्यादि विष्णुसहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाऊँगा। ऐसी प्रतिज्ञा करके श्रीविष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि : ' हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ है अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।मौन , जप शास्त्र पठन कीर्तन रात्रि जागरण एकादशी यत में विशेष लाभ पँहुचाते हैं।

एकादशी के दिन अशुद्ध द्रव्य से बने पेय न पीयें। कोल्ड ड्रिंक् एसिड आदि डाले हुए फलों के डिब्बाबंद रस को न पीयें दो बार भोजन न करें। आइसक्रीम व तली हुई चीजें न खायें। फल अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा थोड़े दूध या जल पर रहना विशेष लाभदायक है। के (दशमीएकादशी और द्वादशी) इन तीन दिनों में कॉसे के बर्तनमांसप्याजलहसुनमसूरउडदचने , कोदो (एक प्रकार का धान) साकशहदतेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन) - इनका सेवन न करें । व्रत के पहले दिन (दशमी को) और दूसरे दिन (द्वादशी को) हविष्यान्न (जौगेहूँमूंगसैंधा नमककालीमिर्चशर्करा और गोघृत आदि) का एक बार भोजन करें।

फलाहारी को गोभीगाजरशलजमपालककुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए। आमअंगूरकेलाबादामपिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए।

जुआनिद्र , पानपरायी निन्दाचुगलीचोरी , हिंसामैथुनक्रोध तथा झूठकपटादि अन्य कुकर्मो से नितान्त दूर रहना चाहिए। बैल की पीठ पर सवारी न करें।

भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायें , इससे चीटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटायें। मधुर बोलेंअधिक न बोलेअधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं। सत्य भाषण करना चाहिए। इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसीका दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए।

एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए और श्रीगंगाजी में पुष्प (अस्थि) प्रवाहित करने पर भी एकादशी व्रत रखकर व्रत फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए प्राणिमात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसीसे छल कपट नहीं करना चाहिए। अपना अपमान करने या कटु वचन बोलनेवाले पर भूलकर भी क्रोध नहीं करें। सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है। मन में दया रखनी चाहिए। इस विधि से व्रत करनेवाला उत्तम फल को प्राप्त करता है । द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्नदक्षिणादि से प्रसन्न कर उनकी परिक्रमा कर लेनी चाहिए व्रत खोलने की विधि : द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए ।मेरे सात जन्मों के शारीरिकवाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए " - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए।



महत्व 

सब धर्मों के ज्ञाता वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रसादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये।

महर्षियों ने कहा : प्रहादजी । आप कोई ऐसा साधन बताइये , जिससे ज्ञान ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है।

उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रहादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों। जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया था , उसका वर्णन करता हूँ सुनिये।

महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है उसे मेरा भक्त जानना चाहिए।


जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है वह मेरा विशेष भक्त है। मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं। अतः मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए। जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं उन्हें पाखण्डी जानना चाहिएजो एकादशी को जागरण करते और गाते हैं उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिराव यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैं उनको भी वही फल प्राप्त होता है। जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं।

जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैं वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते वे धन्य और पुण्यात्मा हैं। जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं , वे ही धन्य हैं। जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैं उन्होंने यज्ञदानगयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया। षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं। जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसने पुन : प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है , वह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है। जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है। जो एकादशी के दिन ऋषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से ऋग्वेदयजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं।

य : पुन : पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्।

द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापतः।

स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण : त्वयम्।

जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है वह उस परम धाम में जाता है जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं।

पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं। मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है , उसका पुण्य कितना है यह भी नहीं जानता। कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के समीप गीतनृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय  विष्णुसहस्रनामगीता तथा श्रीमद्भागवत का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है।

जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है , उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता। जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता हैउसका पुन : इस संसार में जन्म नहीं होता। स्नानचन्दनलेपधूपदीपनैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है। कार्तिकेय। जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता है वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे। एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं। जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं वे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं। जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र दशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं।

जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय देवताओं का पूजन , यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहाँ भागवत शास्त्र है भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं।



 आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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