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आश्विन नवरात्रि, महानवमी 4 अक्टूबर 2022 |
महानवमी हिन्दू धर्म में बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की नवमी या फिर मार्गशीर्ष माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को 'महानवमी' कहा जाता है। नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्रि' में नवमी की तिथि 'महानवमी' कहलाती है। इस दिन देवी दुर्गा के नौवें स्वरूप माँ सिद्धिदात्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है। यह दुर्गापूजा उत्सव ही है।महानवमी के दिन भक्तजन कुमारी कन्याओं को अपने घर बुलाकर भोजन कराते हैं तथा दान आदि देकर पुण्य लाभ अर्जित करते हैं।
आश्विन शुक्ल पक्ष नवमी के दिन महानवमी होती है। यह दो प्रकार की है (1)- पूजा एवं उपवास के लिए। (2)- बलिदान के लिए।
पूजा - उपवासार्थ
अष्टमीविद्धा नवमी और बलिदान के लिए दशमीविद्धा नवमी ली जाती है। परन्तु यदि नवमी
अष्टमी वाले दिन सायंकाल के समय सूर्यास्त से पहिले तीन मुहूर्त्त से कम हो तो
अगले दिन ही पूजा और उपवास करें।
धर्मसिन्धु का यह
वाक्य है- "महानवमी तु बलिदान
व्यतिरिक्तविषये पूजोपोषणादौ अष्टमीविद्धा ग्राह्या ।। सा च यदि अष्टमी दिने सायं
त्रिमुहूर्त्ता स्यात्तदैव ग्राह्या ।। त्रिमुहूर्त्तन्यूनत्वे परैव ग्राह्या ।।
नवमी प्रयुक्त महाबलिदाने तु दशमीविद्धा ।।"
इस वर्ष 3 अक्टूबर 2022 ई. को नवमी अष्टमी - विद्धा नहीं है, क्योंकि वह (नवमी) सूर्यास्त से पहिले त्रिमुहूर्त्त - व्याप्त नहीं है।
अतः इस
शास्त्रनिर्देशानुसार इस वर्ष पूजा - उपवास एवं बलिदानार्थ तथा होमादि के लिए
महानवमी 4 अक्टूबर मंगलवार, 2022 ई. को मनाई जाएगी।
माँ सिद्धिदात्री
हिन्दू
धर्म में विशेष रूप से पूजनीय और नौ दिनों तक चलने वाले 'नवरात्रि' का समापन महानवमी पर होता है। नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र के व्रत
में हर तरफ़ भक्तिमय माहौल रहता है। नवमी के दिन माता सिद्धिदात्री की पूजा होती
है। माँ दुर्गा अपने नौवें स्वरूप में सिद्धिदात्री के नाम से जानी जाती हैं। आदि
शक्ति भगवती का नवम रूप सिद्धिदात्री है, जिनकी चार
भुजाएँ हैं। उनका आसन कमल है। दाहिनी ओर नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा, बाई ओर से नीचे वाले हाथ
में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प है। माँ सिद्धिदात्री सुर और असुर दोनों के
लिए पूजनीय हैं। जैसा कि माँ के नाम से ही प्रतीत होता है, माँ सभी इच्छाओं और मांगों को पूरा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि देवी
का यह रूप यदि भक्तों पर प्रसन्न हो जाता है, तो उसे 26
वरदान मिलते हैं। हिमालय के नंदा पर्वत पर सिद्धिदात्री का पवित्र तीर्थ स्थान है।
कन्या पूजन
'नवरात्रि' के दिनों में कन्या पूजन का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार,
10 साल तक
के कन्या को मां दुर्गा का ही स्वरूप मानते हैं। इसी कारण नवरात्रि के दिनों भक्तजन
अष्टमी, नवमी एवं दशमी तिथि के दिन विधिवत तरीके से कन्या पूजन एवं भोजन कराया जाता है और
उन्हें दक्षिणा देकर आशिर्वाद मांगा जाता है। कन्या पूजन करने से मां दुर्गा अतिशीघ्र प्रसन्न होती है
और सभी भक्तों की मनोकामनाएं को पूर्ण करती है।
'नवरात्रि' में कन्या पूजन करते समय यह विशेष ध्यान रखना चाहिए की कन्या की आयु 2 वर्ष से कम और 10 वर्ष से अधिक नही होनी चाहिए।
'नवरात्रि' में कन्या की आयु के अनुसार कन्या पूजन करने से निम्नवत फल की प्राप्ति होती हैं।
कुमारी - दो साल की कन्या को कुमारी कहा गया है। इस स्वरूप के पूजन से
सभी तरह के दुखों और दरिद्रता का नाश होता है।
'त्रिमूर्ति' - तीन वर्ष की कन्या 'त्रिमूर्ति' मानी जाती है। इनके पूजन से
धन-धान्य का आगमन और संपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।
'कल्याणी' - चार वर्ष की कन्या 'कल्याणी' के नाम से संबोधित की जाती है। 'कल्याणी' की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति
होती है।
'रोहिणी' - पाँच वर्ष की कन्या 'रोहिणी' कही जाती है। इसके पूजन से व्यक्ति
रोग-मुक्त होता है।
'कालिका' - छ:वर्ष की कन्या 'कालिका' की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।
'चण्डिका' - सात वर्ष की कन्या 'चण्डिका' के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।
'शाम्भवी' - आठ वर्ष की कन्या 'शाम्भवी' की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा
लोकप्रियता प्राप्त होती है।
'दुर्गा' - नौ वर्ष की कन्या 'दुर्गा' की अर्चना से शत्रु का संहार होता है
तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।
'सुभद्रा' - दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' कही जाती है। 'सुभद्रा' के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
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