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रमा एकादशी व्रत 9 नवम्बर 2023

 

रमा एकादशी व्रत 9 नवम्बर 2023

कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली रमा एकादशी का महात्म्य ब्रह्मवैवर्त पुराण में श्रीकृष्ण और महाराज युधिष्ठिर के संवादों में वर्णन हुआ है।

एक बार युधिष्ठिर महाराज ने पूछा हे जनार्दन ! कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी का नाम और महात्म्य कृपया विस्तार से वर्णन करे।

भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा नृपेंद्र सब पाप नाशनी इस एकादशी को 'रमा' कहते है । बहुत वर्ष पहले मुचुकुंद नामका राजा था । उसकी देवराज इंद्र से अच्छी मित्रता थी। वरुण, कुबेर, यमराज, अग्नि ये भी उसके अच्छे मित्र थे। सभी धार्मिक तत्त्वों का पालन करते हुए वह अपने प्रजापर राज्य कर रहा था। कुछ वर्षों के बाद राजा को पुत्री हुई जिसका नाम चंद्रभागा रखा गया। योग्य समय के उपरांत उसका विवाह चंद्रसेन राजा के पुत्र शोभन से हुआ। एक बार शोभन अपने ससुराल आया था , उसी दिन ही एकादशी थी।

चंद्रभागा घबराकर विचार करने लगी हे भगवान ! अब क्या होगा ? मेरे पति बहुत ही कमजोर है , उनसे भुख सहन नहीं होती । मेरे पिताश्री बहुत ही कठोर है। दशमी के दिन ही अपनी प्रजा में सेवकोंको भेजकर एकादशीको अन्न कोई भी नही खाए यह आदेश देते है।

शोभन ने इस नियम के बारे में सुना और पत्नी को कहा हे प्रिये ! अब मैं क्या करूँ ? मेरे प्राण बचाने के लिए और राजाज्ञा को मानने के लिए मुझे क्या करना चाहिए, चंद्रभागाने कहा स्वामी ! मनुष्य तो क्या हाथी, अश्व तथा अन्य प्राणियोंको भी आज हमारे पिताजी के साम्राज्य में कुछ भी खाने नहीं दिया जाता। अगर आपको कुछ खाना है तो आपके घर आपको लौटना पड़ेगा । इसीलिए योग्य विचार करके आप उचित निर्णय लीजिए । अपनी पत्नी की बात सुनकर शोभनने कहा तुमने सत्य कथन किया है । परंतु आज एकादशी व्रत करनेकी मेरी इच्छा है, मेरे भाग्य में जो होगा वही होगा । इस प्रकार सोचकर शोभनने उस दिन एकादशी व्रत किया । पर भूख - प्यास से वह व्याकुल होने लगा । सूर्यास्त के समय धर्मपरायण जीवात्मा और वैष्णव प्रसन्न हुए । भगवान् के नामसंकीर्तनमें उन्होंने रातभर जागरण किया । परंतु भूख के कारण शोभनने अपना शरीर त्याग दिया । सूर्योदय के पूर्व ही मुचुकुंद राजाने शोभन के शरीर का अंतिम संस्कार भी कर दिया । लेकिन चंद्रभागा को सती जाने की अनुमति नही दी । पती के श्राद्ध के पश्चात चंद्रभागा अपने पिता के घर रहने लगी।

रमा एकादशी के पालन से शोभन मंदार पर्वत के शिखरपर बसनेवाले देवपुरी राज्य का राजा बना। रत्नों से सुशोभित सुवर्ण के खंबे और अमूल्य हीरेमोतीयोंसे जडित राजभवनमें वह रहने लगा । अनेक आभूषणोंसे युक्त शोभन बहुत सारे गंधर्व और अप्सराओं के द्वारे सेवित था । मुचुकुंदपुर का सोमशर्मा नामक ब्राह्मण तीर्थों की यात्रा करते हुए अचानक एक दिन देवपुरी में पहुँचा । शोभनको अपने राजा का जामाता समझकर वो उनके पास गया ।

ब्राह्मणको अपने सामने देखकर राजा अपने सिंहासन से उठे और प्रणाम करके ब्राह्मण के सामने खड़े रहे । उसके पश्चात राजाने ब्राह्मण का राजा मुचुकुंद का , चंद्रभागा तथा मुचुकुंदपुर की प्रजाका कुशल - मंगल पूछा । सभी लोग सुखसे और शांतिसे रह रहे है ऐसा ब्राह्मणने उत्तर दिया।

आश्चर्यसे ब्राह्मणने राजा को पूछा हे राजन् ! इतनी सुंदर नगरी मैंने कभी नही देखी । ऐसा राज्य आपको कैसे प्राप्त हुआ, इस विषय में आप हमें बताईए।  

तभी राजाने कहा रमा एकादशी का व्रत करनेसे यह अशाश्वतराज्य मुझे मिला है । लेकिन ये राज्य किस प्रकार शाश्वत होगा इस विषय में आप मेरा मार्गदर्शन करे । शायद अश्रद्धा से मैंने इस व्रत का पालन किया होगा । इसीलिए यह अशाश्वत राज्य मुझे मिला है । कृपया आप सब ये चंद्रभागा को कहिए । मेरे मत के अनुसार केवल वह इस राज्यको शाश्वत बना सकती है। यह सुनकर वह ब्राह्मण मुचुकुंदुपरी में लौट आया। चंद्रभागा को पूरा वृत्तांत कथन किया । सब सुनकर चंद्रभागाने कहा हे ब्राह्मणदेव ! आप जो भी कुछ कह रहे है वो मुझे केवल एक स्वप्न के भांति प्रतीत हो रहा है।

ब्राह्मणने कहा हे राजकन्ये ! मैंने स्वयं तुम्हारे पतिको देवपूरी में देखा है । उसका राज्य सूर्य के समान तेजस्वी है । उस राज्य को शाश्वत बनाने की बिनती तुम्हारे पति ने की है। चंद्रभागा ने कहा हे ब्राह्मण ! मै एकादशी महात्म्य अपने पुण्य के प्रभावसे वो राज्य शाश्वत बना दूँगी। आप मुझे वहाँ ले चलिए अलग हुए दोनोंको पुनः मिलानेका पुण्य आपको प्राप्त होगा। उसके पश्चात सोम शर्मा ब्राह्मणने चंद्रभागाको मंदार पर्वत पर वामदेव के आश्रम में ले गए और उन्हें पूरा वृत्तांत सुनाया। वामदेवने चंद्रभागाको वैदिक मंत्र की दीक्षा दी। वामदेव से प्राप्त मंत्र के प्रभावसे तथा रमा एकादशी के पालन से चंद्रभागाको दिव्य शरीर प्राप्त हुआ। उसके बाद वह अपने पति के सामने गई। अपनी पत्नी को देखते ही शोभन को प्रसन्नता हुई।

चंद्रभागाने कहा कृपया आपके हित के लिए मेरे दो वचनोंको सुनिए। अपने आठ वर्ष की आयु से मैं रमा एकादशी का पालन कर रही हूँ । इस व्रत पालन के प्रभाव से आपका प्रलयतक शाश्वत और समृद्ध रहेगा। उसके बाद वह अपने पति के साथ आनंदपूर्वक रहने लगी।

इसीलिए हे राजन ! रमा एकादशी ये कामधेनू अथवा चिंतामणी समान सभी की सभी इच्छाएँ पूर्ति  करनेवाली है। भगवान् श्रीकृष्ण ने आगे कहा हे राजन् ! इस प्रकार मैंने तुम्हें इस एकादशी के महात्म्य का वर्णन किया है। कृष्ण पक्ष की तथा शुक्ल पक्ष की दोनों भी एकादशी का व्रत पालन करनेवाले को मुक्ति मिलती है। जो भी इस व्रत की महिमा सुनता है वह सभी पापोंसें मुक्त होकर अंत समय में वैकुंठ धाम को जाता है ।

एकादशी व्रत पारण

एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है।  एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत खोलने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत खोलने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत खोलने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।

एकादशी व्रत परिचय 

भगवान श्री कृष्णचन्द्र अर्जुन से बोले कि एक बार नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि एकत्रित हुये , उन्होंने सूतजी से प्रार्थना की हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों का महात्म्य सुनाने की कृपा करें । सूतजी बोले- हे महर्षियों ! एक वर्ष में बारह महीने होते हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुई। जिस वर्ष अधिक मास पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी और बढ़ जाती हैं। इस तरह कुल छब्बीस एकादशी होती हैं। उनके नाम ये हैं - 

1- उत्पन्ना , 2 - मोक्षदा (मोक्ष को देने वाली) , 3- सफला (सफलता देने वाली) 4 - पुत्रदा (पुत्र को देने वाली) , 5 - षटतिला , 6- जया 7- विजया , 8- आमलकी , 9- पापमोचनी ( पापों को नष्ट करने वाली ) , 10- कामदा , 11 बरुथनी , 12 - मोहनी , 13 - अपरा , 14 निर्जला , 15 - योगिनी , 16 - देवशयनी , 17 कामिका , 18 पुत्रदा , 19- अजा , 20 परिवर्तिनी , 21 इन्दिरा , 22- पाशांकुशा , 23 - रमा , 24- देवोत्थानी एवं अधिक मास की दोनों एकादशियों के नाम 25- पद्मिनी और 26 - परमा हैं । ये सब एकादशी यथानाम तथाफल देने वाली है। 

एकादशियों के महात्म्य का वर्णन 

जो पुण्य चन्द्र या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है, तथा जो पुण्य अन्न दान , जल दान , स्वर्ण दान , भूमि दान गौ दान , कन्या दान तथा अश्वमेघादि यज्ञ करने से होता है। जो पुण्य तीर्थ यात्रा तथा कठिन तपस्या करने से मिलता है, उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से प्राप्त हो जाता है। एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है, अन्तड़ियों की मैल दूर हो जाती है, हृदय शुद्ध हो जाता है, श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है। प्रभु को प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी व्रत है। 

एकादशी व्रत करने वाले के पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं , एकादशी व्रत करने वाले के दस पुरखे पितृ पक्ष के और दस पुरखे मातृ पक्ष के और दस पुरखे पत्नी पक्ष के बैकुण्ठ को जाते हैं । दूध , पुत्र , धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला एकादशी का व्रत है , एकादशी का जन्म भगवान् के शरीर से हुआ है


एकादशी व्रत विधि

दशमी की रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें तथा भोग विलास से भी दूर रहें। प्रात : एकादशी को लकड़ी का दातुन तथा पेस्ट का उपयोग न करें नीयू  जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें और उँगली से कंठ शुद्ध कर लें। वृक्ष से पता तोड़ना भी वर्जित है , अतः स्वयं गिरे हुए पत्ते का सेवन करे यदि यह सम्भव न हो तो पानी से बारह कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितादि से श्रवण करें । प्रभु के सामने इस प्रकार प्रण करना चाहिए कि : आज मैं चोर पाखण्डी और दुराचारी मनुष्य से बात नहीं करूंगा और न ही किसीका दिल दुखाऊँगा गौ ब्राह्मण आदि को फलाहार व अन्नादि देकर प्रसन्न करूँगा। रात्रि को जागरण कर कीर्तन करूँगा ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादश अक्षर मंत्र अथवा गुरुमंत्र का जाप करूँगा रामकृष्णनारायण इत्यादि विष्णुसहस्रनाम को कण्ठ का भूषण बनाऊँगा। ऐसी प्रतिज्ञा करके श्रीविष्णु भगवान का स्मरण कर प्रार्थना करें कि : ' हे त्रिलोकपति ! मेरी लाज आपके हाथ है अतः मुझे इस प्रण को पूरा करने की शक्ति प्रदान करें।मौन , जप शास्त्र पठन कीर्तन रात्रि जागरण एकादशी यत में विशेष लाभ पँहुचाते हैं।

एकादशी के दिन अशुद्ध द्रव्य से बने पेय न पीयें। कोल्ड ड्रिंक् एसिड आदि डाले हुए फलों के डिब्बाबंद रस को न पीयें दो बार भोजन न करें। आइसक्रीम व तली हुई चीजें न खायें। फल अथवा घर में निकाला हुआ फल का रस अथवा थोड़े दूध या जल पर रहना विशेष लाभदायक है। के (दशमीएकादशी और द्वादशी) इन तीन दिनों में कॉसे के बर्तनमांसप्याजलहसुनमसूरउडदचने , कोदो (एक प्रकार का धान) साकशहदतेल और अत्यम्बुपान (अधिक जल का सेवन) - इनका सेवन न करें । व्रत के पहले दिन (दशमी को) और दूसरे दिन (द्वादशी को) हविष्यान्न (जौगेहूँमूंगसैंधा नमककालीमिर्चशर्करा और गोघृत आदि) का एक बार भोजन करें।

फलाहारी को गोभीगाजरशलजमपालककुलफा का साग इत्यादि सेवन नहीं करना चाहिए। आमअंगूरकेलाबादामपिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करना चाहिए।

जुआनिद्र , पानपरायी निन्दाचुगलीचोरी , हिंसामैथुनक्रोध तथा झूठकपटादि अन्य कुकर्मो से नितान्त दूर रहना चाहिए। बैल की पीठ पर सवारी न करें।

भूलवश किसी निन्दक से बात हो जाय तो इस दोष को दूर करने के लिए भगवान सूर्य के दर्शन तथा धूप दीप से श्रीहरि की पूजा कर क्षमा मांग लेनी चाहिए एकादशी के दिन घर में झाडू नहीं लगायें , इससे चीटी आदि सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है। इस दिन बाल नहीं कटायें। मधुर बोलेंअधिक न बोलेअधिक बोलने से न बोलने योग्य वचन भी निकल जाते हैं। सत्य भाषण करना चाहिए। इस दिन यथाशक्ति अन्नदान करें किन्तु स्वयं किसीका दिया हुआ अन्न कदापि ग्रहण न करें। प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए।

एकादशी के दिन किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाय तो उस दिन व्रत रखकर उसका फल संकल्प करके मृतक को देना चाहिए और श्रीगंगाजी में पुष्प (अस्थि) प्रवाहित करने पर भी एकादशी व्रत रखकर व्रत फल प्राणी के निमित्त दे देना चाहिए प्राणिमात्र को अन्तर्यामी का अवतार समझकर किसीसे छल कपट नहीं करना चाहिए। अपना अपमान करने या कटु वचन बोलनेवाले पर भूलकर भी क्रोध नहीं करें। सन्तोष का फल सर्वदा मधुर होता है। मन में दया रखनी चाहिए। इस विधि से व्रत करनेवाला उत्तम फल को प्राप्त करता है । द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्टान्नदक्षिणादि से प्रसन्न कर उनकी परिक्रमा कर लेनी चाहिए व्रत खोलने की विधि : द्वादशी को सेवापूजा की जगह पर बैठकर भुने हुए सात चनों के चौदह टुकड़े करके अपने सिर के पीछे फेंकना चाहिए ।मेरे सात जन्मों के शारीरिकवाचिक और मानसिक पाप नष्ट हुए " - यह भावना करके सात अंजलि जल पीना और चने के सात दाने खाकर व्रत खोलना चाहिए।

 

 

महत्व 

सब धर्मों के ज्ञाता वेद और शास्त्रों के अर्थज्ञान में पारंगत सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रसादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए समय उनके समीप स्वधर्म का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये।

महर्षियों ने कहा : प्रहादजी । आप कोई ऐसा साधन बताइये , जिससे ज्ञान ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है।

उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रहादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों। जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर भगवान शंकर ने उन्हें बताया था , उसका वर्णन करता हूँ सुनिये।

महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है उसके कोटि जन्मों के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र का उपदेश करता है उसे मेरा भक्त जानना चाहिए।

 

जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है वह मेरा विशेष भक्त है। मैं उसे उत्तम ज्ञान देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं। अतः मेरे भक्त को विशेष रुप से जागरण करना चाहिए। जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं उन्हें पाखण्डी जानना चाहिएजो एकादशी को जागरण करते और गाते हैं उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिराव यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है। जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद का दर्शन करते हैं उनको भी वही फल प्राप्त होता है। जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान विष्णु के आगे जागरण करते हैं वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं।

जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से मनोविनोद करते हैं वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। जो प्राणत्याग हो जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते वे धन्य और पुण्यात्मा हैं। जिनके वंश के लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं , वे ही धन्य हैं। जिन्होंने एकादशी को जागरण किया हैं उन्होंने यज्ञदानगयाश्राद्ध और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया। षडानन ! भगवान विष्णु के भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं। जिसने वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसने पुन : प्राप्त होनेवाले शरीर को स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है , वह भगवान विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है। जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो द्वादशी की रात में जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है उसे महान पुण्य की प्राप्ति होती है। जो एकादशी के दिन ऋषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से ऋग्वेदयजुर्वेद तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी परमानन्द प्रदान करते हैं।

य : पुन : पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्।

द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापतः।

स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण : त्वयम्।

जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है वह उस परम धाम में जाता है जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं।

पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को प्रिय हैं। मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है , उसका पुण्य कितना है यह भी नहीं जानता। कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के समीप गीतनृत्य तथा स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय  विष्णुसहस्रनामगीता तथा श्रीमद्भागवत का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है।

 

 

जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में दीपक जलाता है , उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता। जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता हैउसका पुन : इस संसार में जन्म नहीं होता। स्नानचन्दनलेपधूपदीपनैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है। कार्तिकेय। जो भक्त मेरा ध्यान करना चाहता है वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे। एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित होते हैं। जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं वे उस परम धाम में जाते हैं जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं। जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र दशकण्ठ वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं।

जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय देवताओं का पूजन , यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहाँ भागवत शास्त्र है भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं।


 आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)


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