हरिप्रबोधिनी एकादशी व्रत 23 नवम्बर 2023
स्कन्द पुराणमें ब्रह्मदेव तथा नारदमुनी के संवादों में हरिप्रबोधिनी एकादशी की महिमा कही गयी है।
एक बार ब्रह्मदेव देवर्षि नारद को कहने लगे हे ऋषिवर ! सभी को पुण्य आनंद और मोक्ष प्रदान करने वाली हरिप्रबोधिनी एकादशी के बारे में तुम्हे कहता हूँ ।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में यह एकादशी आती है। इस एकादशी के व्रत से
मिलने वाला सहस्र अश्वमेध यज्ञ या सौ राजसूय यज्ञ करके मिलनेवाले पुण्य से भी कई
गुना अधिक है।
यह सुनने के पश्चात नारदजी ने पूछा हे पिताश्री ! एक समय खाने से अथवा पूर्ण उपवास करके
प्राप्त होनेवाले फल के विषय में कृपया आप बताईये। ब्रह्मदेव ने कहा
एकादशी को एक समय खाने से उसके केवल एक जन्म के पाप नष्ट
होते है। जो केवल रसाहार करता है उसके दो जन्मोंके पापोंका नाश होता है । पर जो
पूरा दिन उपवास करता है उसके सात जन्मों के पाप नष्ट होते है ।
हे पुत्र ! हरिप्रबोधिनी एकादशी के पालन से त्रिभुवन में अनिक्षित न मिलनेवाला और बहुत ही दुर्लभ ऐसा पुण्य प्राप्त होता है।
मंदार पर्वत के समान पाप भी इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते है। इस दिन के
पुण्य की तुलना सिर्फ सुमेरु पर्वत से ही की जा सकती है। जो विष्णु की भक्ति नहीं
करते ,
परखी भोग करते हैं, जो नास्तिक है, वेदोंका अपमान करते है, जो मूखं है उनके लिए धार्मिक तत्व का प्रश्न ही नहीं आता।
इसीलिए किसी को भी पाप नहीं करना चाहिए सिर्फ पुण्य कर्म ही करना चाहिए। पुण्य
कर्मों में लगने से धार्मिक तत्वों का नाश नहीं होता। जो भी निश्चयपूर्वक हरिप्रबोधिनी एकादशी का पालन करता है उसे सौ जन्मोंके पापों से मुक्ति मिलती है। जो भी रात को
जागरण करता है उसके भूत- वर्तमान भविष्य की पिढियाँ वैकुंठ प्राप्त करती है।
हे नारद ! जो भी कार्तिक मास में विष्णुकी पूजा तथा एकादशी व्रत का एकादशी_महात्म्य पालन नहीं करता निश्चितरूपसे हर एक को कार्तिक मास
में विष्णु की उपासना करनी चाहिए । इस मास में अन्यद्वारा बनाया अन्न न खाने से
चंद्रायण व्रत का पुण्य मिलता है। कार्तिक मास में जो भी भगवान् विष्णु के
गुणोंका ,
लीला का श्रवण करता है उसे १०० गाय दान करने का पुण्य
प्राप्त होता है । नियमित वैदिक शास्त्रों का अध्ययन करनेसे हजारों यज्ञों का फल
मिलता है । जो भगवद् कथा के अवण के पश्चात वक्ता को दक्षिणा देता है उसे बैकुंठ की
प्राप्ति होती है।
नारदमुनि ने कहा हे स्वामी ! कृपया यह एकादशी कैसी करनी चाहिए इस विषय में
आप हमें बताईये। पितामह ब्रह्मदेव ने कहा हे द्विजश्रेष्ठ ! प्रातः काल स्नान के पश्चात भगवान् केशव
की उपासना करे। इस तरह व्रत धारण करे कि हे अरविंदाक्ष ! एकादशीको में अन्न ग्रहण नहीं करूँगा।
केवल द्वादशी को ही अन्न ग्रहण करूँगा। हे अच्युत ! कृपया आप मेरी रक्षा करे।
ब्रह्मदेव ने आगे कहा संपूर्ण दिन भक्तिभावसे व्रत का पालन करना चाहिए। रातमें
भगवान् विष्णु के पास बैठकर भजन - कीर्तन - लीला का श्रवण करके जागरण करना चाहिए।
एकादशी दिन लोभ की वृत्ति का त्याग करना चाहिए । जो भी पुण्यवान इस प्रकार से व्रत
का पालन करता है, उसे अंतिम ध्येय की प्राप्ति होती है जो कोई भी इस दिन भगवान जनार्दन को कदंब
के फूल अर्पण करता है, उसे कभी यमलोक नहीं जाना पडता जो गरुडध्वज भगवान विष्णुको कार्तिक मास में
गुलाब के फूल अर्पण करता है उसे निश्चित ही मुक्ति प्राप्त होती है।
जो कोई भी अशोक वृक्ष के फूल भगवान् को अर्पण करता है उसे सूर्य - चंद्र होने
तक दुख भोगना नहीं पड़ता। शमी वृक्ष के पत्तों से जो भगवान् की पूजा करता है , उसे यमराज कभी दंड नहीं देते। वर्षाऋतु में जो जगदीश्वर
विष्णुकी पूजा चंपक फूलों से करता है उसका भौतिक विश्वमें जन्म नहीं होता। जो
पीले रंग के केतकी के फूलों से भगवान् विष्णुकी पूजा करता है, वह करोडों जन्म में किए हुए पापों से मुक्त होता है।
सहस्र दल लाल रंग के कमल के फूलों से जो भगवान जगन्नाथ की पूजा करते हैं, वह भगवान् के श्वेतदीप नामक धाम की प्राप्ति करते है। हे
द्विजश्रेष्ठ ! एकादशी के रात को जागरण करना चाहिए। द्वादशी के दिन विष्णु की
पूजा करके ब्राह्मणकों भोजन खिलाकर व्रत पूर्ण करे अपनी क्षमता के अनुसार
आध्यात्मिक गुरु की पूजा करके दक्षिणा देनी चाहिए। इससे भगवान् प्रसन्न होते है।
एकादशी व्रत पारण
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहते हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद ही होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारण हरि वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत खोलने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतीक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत खोलने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत खोलने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
एकादशी व्रत परिचय
भगवान श्री
कृष्णचन्द्र अर्जुन से बोले कि एक बार नैमिषारण्य में शौनक आदि अट्ठासी हजार ऋषि
एकत्रित हुये, उन्होंने सूतजी से प्रार्थना की हे सूतजी ! कृपाकर एकादशियों का महात्म्य
सुनाने की कृपा करें । सूतजी बोले- हे महर्षियों ! एक वर्ष में बारह महीने होते
हैं और एक महीने में दो एकादशी होती हैं एक वर्ष में चौबीस एकादशी हुई। जिस वर्ष
अधिक मास पड़ता है उस वर्ष दो एकादशी और बढ़ जाती हैं। इस तरह कुल छब्बीस एकादशी
होती हैं। उनके नाम ये हैं -
1- उत्पन्ना, 2 - मोक्षदा (मोक्ष को देने वाली), 3- सफला (सफलता देने वाली) 4 - पुत्रदा (पुत्र को देने वाली), 5 - षटतिला, 6- जया 7- विजया, 8- आमलकी, 9- पापमोचनी (पापों को नष्ट करने वाली), 10- कामदा, 11 बरुथनी, 12 - मोहनी, 13 - अपरा, 14 निर्जला, 15 - योगिनी, 16 - देवशयनी , 17 कामिका, 18 पुत्रदा, 19- अजा, 20 परिवर्तिनी, 21 इन्दिरा, 22- पाशांकुशा, 23 - रमा, 24- देवोत्थानी एवं अधिक मास की दोनों एकादशियों के नाम 25- पद्मिनी और 26 - परमा हैं । ये सब एकादशी यथानाम तथाफल देने वाली है।
एकादशियों के महात्म्य का वर्णन
जो पुण्य चन्द्र
या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है , तथा जो पुण्य अन्न दान , जल ढान , स्वर्ण दान , भूमि दान गौ दान , कन्या दान तथा अश्वमेघादि यज्ञ करने से होता है । जो पुण्य तीर्थ यात्रा तथा
कठिन तपस्या करने से होता है , उससे अधिक पुण्य एकादशी व्रत रखने से होता है ।
एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है , अन्तड़ियों की मैल दूर हो जाती है , हृदय शुद्ध हो जाता है , श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है । प्रभु को
प्रसन्न करने का मुख्य साधन एकादशी।
एकादशी व्रत करने वाले के पितृ कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं , एकादशी व्रत करने वाले के दस पुरखे पितृ पक्ष के और दस पुरखे मातृ पक्ष के और दस पुरखे पत्नी पक्ष के बैकुण्ठ को जाते हैं । दूध , पुत्र , धन और कीर्ति को बढ़ाने वाला एकादशी का व्रत है , एकादशी का जन्म भगवान् के शरीर से हुआ है , प्रभु के समान पतित पावनी है , अतः आपको लाखों प्रणाम हैं।
महत्व
सब धर्मों के ज्ञाता वेद और शास्त्रों के
अर्थज्ञान में पारंगत सबके हृदय में रमण करनेवाले श्रीविष्णु के तत्त्व को
जाननेवाले तथा भगवत्परायण प्रसादजी जब सुखपूर्वक बैठे हुए समय उनके समीप स्वधर्म
का पालन करनेवाले महर्षि कुछ पूछने के लिए आये।
महर्षियों ने कहा : प्रहादजी ।
आप कोई ऐसा साधन बताइये , जिससे ज्ञान ध्यान और इन्द्रियनिग्रह के बिना
ही अनायास भगवान विष्णु का परम पद प्राप्त हो जाता है।
उनके ऐसा कहने पर संपूर्ण लोकों के हित के लिए
उद्यत रहनेवाले विष्णुभक्त महाभाग प्रहादजी ने संक्षेप में इस प्रकार कहा : महर्षियों।
जो अठारह पुराणों का सार से भी सारतर तत्त्व है जिसे कार्तिकेयजी के पूछने पर
भगवान शंकर ने उन्हें बताया था , उसका वर्णन करता हूँ सुनिये।
महादेवजी कार्तिकेय से बोले : जो कलि में
एकादशी की रात में जागरण करते समय वैष्णव शास्त्र का पाठ करता है उसके कोटि जन्मों
के किये हुए चार प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो एकादशी के दिन वैष्णव शास्त्र
का उपदेश करता है उसे मेरा भक्त जानना चाहिए।
जिसे एकादशी के जागरण में निद्रा नहीं आती तथा
जो उत्साहपूर्वक नाचता और गाता है वह मेरा विशेष भक्त है। मैं उसे उत्तम ज्ञान
देता हूँ और भगवान विष्णु मोक्ष प्रदान करते हैं। अतः मेरे भक्त को विशेष रुप से
जागरण करना चाहिए। जो भगवान विष्णु से वैर करते हैं उन्हें पाखण्डी जानना चाहिए| जो एकादशी
को जागरण करते और गाते हैं उन्हें आधे निमेष में अग्निष्टोम तथा अतिराव यज्ञ के
समान फल प्राप्त होता है। जो रात्रि जागरण में बारंबार भगवान विष्णु के मुखारविंद
का दर्शन करते हैं उनको भी वही फल प्राप्त होता है। जो मानव द्वादशी तिथि को भगवान
विष्णु के आगे जागरण करते हैं वे यमराज के पाश से मुक्त हो जाते हैं।
जो द्वादशी को जागरण करते समय गीता शास्त्र से
मनोविनोद करते हैं वे भी यमराज के बन्धन से मुक्त हो जाते हैं। जो प्राणत्याग हो
जाने पर भी द्वादशी का जागरण नहीं छोड़ते वे धन्य और पुण्यात्मा हैं। जिनके वंश के
लोग एकादशी की रात में जागरण करते हैं , वे ही धन्य हैं। जिन्होंने एकादशी को जागरण
किया हैं उन्होंने यज्ञ, दान, गयाश्राद्ध
और नित्य प्रयागस्नान कर लिया । उन्हें संन्यासियों का पुण्य भी मिल गया और उनके
द्वारा इष्टापूर्त कर्मों का भी भलीभाँति पालन हो गया। षडानन ! भगवान विष्णु के
भक्त जागरणसहित एकादशी व्रत करते हैं इसलिए वे मुझे सदा ही विशेष प्रिय हैं। जिसने
वर्द्धिनी एकादशी की रात में जागरण किया है उसने पुन : प्राप्त होनेवाले शरीर को
स्वयं ही भस्म कर दिया । जिसने त्रिस्पृशा एकादशी को रात में जागरण किया है , वह भगवान
विष्णु के स्वरुप में लीन हो जाता है। जिसने हरिबोधिनी एकादशी की रात में जागरण
किया है उसके स्थूल सूक्ष्म सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो द्वादशी की रात में
जागरण तथा ताल स्वर के साथ संगीत का आयोजन करता है उसे महान पुण्य की प्राप्ति
होती है। जो एकादशी के दिन ऋषियों द्वारा बनाये हुए दिव्य स्तोत्रों से ऋग्वेद, यजुर्वेद
तथा सामवेद के वैष्णव मन्त्रों से संस्कृत और प्राकृत के अन्य स्तोत्रों से व गीत
वाद्य आदि के द्वारा भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करता है उसे भगवान विष्णु भी
परमानन्द प्रदान करते हैं।
य : पुन : पठते रात्रौ गातां नामसहस्रकम्।
द्वादश्यां पुरतो विष्णोर्वैष्णवानां समापतः।
स गच्छेत्परम स्थान यत्र नारायण : त्वयम्।
जो एकादशी की रात में भगवान विष्णु के आगे
वैष्णव भक्तों के समीप गीता और विष्णुसहस्रनाम का पाठ करता है वह उस परम धाम में
जाता है जहाँ साक्षात् भगवान नारायण विराजमान हैं।
पुण्यमय भागवत तथा स्कन्दपुराण भगवान विष्णु को
प्रिय हैं। मथुरा और व्रज में भगवान विष्णु के बालचरित्र का जो वर्णन किया गया है
उसे जो एकादशी की रात में भगवान केशव का पूजन करके पढ़ता है , उसका पुण्य
कितना है यह भी नहीं जानता। कदाचित् भगवान विष्णु जानते हों । बेटा ! भगवान के
समीप गीत, नृत्य तथा
स्तोत्रपाठ आदि से जो फल होता है वही कलि में श्रीहरि के समीप जागरण करते समय विष्णुसहस्रनाम, गीता तथा
श्रीमद्भागवत का पाठ करने से सहस्र गुना होकर मिलता है।
जो श्रीहरि के समीप जागरण करते समय रात में
दीपक जलाता है , उसका पुण्य सौ कल्पों में भी नष्ट नहीं होता।
जो जागरणकाल में मंजरीसहित तुलसीदल से भक्तिपूर्वक श्रीहरि का पूजन करता है, उसका पुन :
इस संसार में जन्म नहीं होता। स्नान, चन्दन, लेप, धूप, दीप, नैवेघ और ताम्बूल यह सब जागरणकाल में भगवान को
समर्पित किया जाय तो उससे अक्षय पुण्य होता है। कार्तिकेय। जो भक्त मेरा ध्यान
करना चाहता है वह एकादशी की रात्रि में श्रीहरि के समीप भक्तिपूर्वक जागरण करे।
एकादशी के दिन जो लोग जागरण करते हैं उनके शरीर में इन्द्र आदि देवता आकर स्थित
होते हैं। जो जागरणकाल में महाभारत का पाठ करते हैं वे उस परम धाम में जाते हैं
जहाँ संन्यासी महात्मा जाया करते हैं। जो उस समय श्रीरामचन्द्रजी का चरित्र दशकण्ठ
वध पढ़ते हैं वे योगवेत्ताओं की गति को प्राप्त होते हैं।
जिन्होंने श्रीहरि के समीप जागरण किया है उन्होंने चारों वेदों का स्वाध्याय देवताओं का पूजन , यज्ञों का अनुष्ठान तथा सब तीर्थों में स्नान कर लिया। श्रीकृष्ण से बढ़कर कोई देवता नहीं है और एकादशी व्रत के समान दूसरा कोई व्रत नहीं है। जहाँ भागवत शास्त्र है भगवान विष्णु के लिए जहाँ जागरण किया जाता है और जहाँ शालग्राम शिला स्थित होती है वहाँ साक्षात् भगवान विष्णु उपस्थित होते हैं।
आचार्य दिनेश पाण्डेय (मुम्बई & उत्तराखण्ड)
👉 "पूजा पाठ, ग्रह अनुष्ठान, शादी विवाह, पार्थिव शिव पूजन, रुद्राभिषेक, ग्रह प्रवेश, वास्तु शांति, पितृदोष, कालसर्पदोष निवारण इत्यादि के लिए सम्पर्क करें वैदिक ब्राह्मण ज्योतिषाचार्य दिनेश पाण्डेय जी से मोबाइल नम्वर - +919410305042, +919411315042"
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